Commercial Property: प्रॉपर्टी में निवेश को सुरक्षित विकल्प माना जाता है क्योंकि प्रॉपर्टी के भाव कभी कम नहीं होते. रिहायशी के मुकाबले कमर्शियल प्रॉपर्टी में निवेश करने से ज्यादा किराया मिलता है, इसलिए कई लोग ऑफिस, दुकान या गोदाम जैसी कमर्शियल प्रॉपर्टी खरीद कर उसे रेंट पर देना पसंद करते हैं. आज हम आपको कमर्शियल प्रॉपर्टी के साथ जुड़े टैक्स संबंधित पहलुओं को समझाने जा रहे हैं.
हाउस प्रॉपर्टी से होने वाली आमदनी
आपके पास चाहे रेजिडेंशियल प्रॉपर्टी हो या कमर्शियल, यदि ऐसी संपत्ति पर आपका मालिकाना हक है और वहां से किराया मिल रहा है तो आपको ‘इनकम फ्रॉम हाउस प्रॉपर्टी’ के तहत टैक्स चुकाना पड़ेगा.
अन्य जरियों से होने वाली कमाई
अगर प्रॉपर्टी पर आपका मालिकाना हक नहीं है और आपने उसे किराये पर दे रखा है तो ऐसी कमर्शियल प्रॉपर्टी के किराये से होने वाली आय को ‘इनकम फ्रॉम अदर सोर्स’ के तहत टैक्सेबल माना जाएगा.
टैक्स डिडक्शन
आपको ‘इनकम फ्रॉम हाउस प्रॉपर्टी’ के तहत रेंटल इनकम गिनने में कुछ कटौती के लाभ मिलते हैं. पहली कटौती स्टैंडर्ड डिडक्शन के रूप में होती है जो ऐसी संपत्ति के लिए मिले किराये पर 30 फीसदी की दर से उपलब्ध होती है. आपके स्वामित्व वाली और किराये पर दी गई कमर्शियल या रेजिडेंशियल प्रोपर्टी पर स्टैंडर्ड डिडक्शन उपलब्ध है.
इसके अलावा रिपेयर वगैरह को भी स्टैंडर्ड डिडक्शन में कवर किया गया है. कमर्शियल प्रॉपर्टी की खरीद, निर्माण, मरम्मत या पुनर्निर्माण के लिए उधार लिए किसी भी पैसे को लेकर भुगतान किए गए ब्याज के संबंध में कटौती क्लेम कर सकते हैं.
इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 24(बी) के तहत ब्याज पर कटौती सभी तरह की प्रॉपर्टीज पर उपलब्ध है चाहे वो रिहायशी हो या फिर कमर्शियल. लोन के लिए भुगतान किए गए प्रोसेसिंग फीस या प्रीपेमेंट चार्जेज पर भी ब्याज के तहत दावा किया जा सकता है.
आप न सिर्फ बैंक से उधार लिए गए पैसों पर आप ब्याज पर छूट का दावा कर सकते हैं, बल्कि दोस्तों या रिश्तेदारों से उधार लिए गए पैसों पर भी आपको यह सुविधा मिलेगी.
किराये पर दी गई कमर्शियल प्रॉपर्टी के मामले में, हालांकि आप स्टैंडर्ड डिडक्शन के बाद किराये की आय के खिलाफ पूर्ण ब्याज का दावा कर सकते हैं, लेकिन उसमें कुछ शर्तों का पालन होना जरूरी है.
कमर्शियल प्रॉपर्टी बेचने पर टैक्स
आपके स्वामित्व वाली और आपके बिजनेस में इस्तेमाल होने वाली कमर्शियल प्रॉपर्टी बेचने से यदि फायदा होता है तो उसे शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स ही माना जाएगा, भले ही आपकी होल्डिंग अवधि कितनी भी हो.
यदि प्रॉपर्टी पर 24 महीनों से ज्यादा समय से कब्जा है तो आप रेजिडेंशियल प्रॉपर्टी में निवेश करके सेक्शन 54F के तहत छूट का दावा कर सकते हैं. इसके अलावा आप बॉन्ड में निवेश करके धारा 54EC के तहत भी छूट का दावा कर सकते हैं.
अगर आपने कमर्शियल प्रॉपर्टी किराये पर दे रखी है और उसे बेच रहे हैं तो जो फायदा होगा, वह कैपिटल गेन्स बन जाता है, अगर यह संपत्ति 24 महीने से अधिक समय तक आपके पास है और उसे बेचने से केपिटल गेन्स होता है तो उसे लॉन्ग-टर्म केपिटल गेन्स माना जाएगा और इस पर 20 फीसदी टैक्स चुकाना होगा.
आप 54F के तहत आवासीय घर में निवेश करके या धारा 54EC के तहत कैपिटल गेन्स बॉन्ड्स में निवेश करके टैक्स बचा सकते हैं.
लेकिन, अगर प्रॉपर्टी को 24 महीने से पहले ही बेच दिया जाता है तो वह टैक्सेबल बन जाएगा क्योंकि शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन्स पर नॉर्मल इनकम की तरह टैक्स लगाया जाता है.