प्रॉपर्टी के पेपर्स में हो गई गलती तो क्या करें? यहां है इस उलझन का हल

कानूनी कागजात में कटिंग नहीं की जा सकती इसलिए एक और डीड तैयार करनी पड़ती है. इस डीड को करेक्शन, कंफर्मेशन या रेक्टिफिकेशन डीड कहा जाता है.

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अदालती मामलों की सुनवाई, दाखिल होने वाले जवाबी हलफनामे, अवमानना के मामलों और ऐसे मामलों पर सम्बंधित विभागों को तुरंत अलर्ट भेजा जाएगा Picture: Pixabay

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जब हम कोई प्रॉपर्टी खरीदते हैं या किराये पर देते हैं तो कई बार अनजाने में प्रॉपर्टी के कागजात तैयार करवाते, लिखते या फिर टाइप करते वक्त लिखावट लंबी होने के कारण या कठिन कानूनी भाषा के चलते कोई न कोई गलती रह जाती है जिस पर उस वक्त किसी का ध्यान नहीं जाता है.

सुधार जरूरी

कई बार शब्दों में जरा सा हेरफेर होने पर पूरा अर्थ ही बदल जाता है. इस तरह की गलतियों को तकनीकी खामियां कहा जाता है. लेकिन, इन गलतीयों को सुधारना जरूरी होता है.

कानूनी कागजात में कटिंग नहीं की जा सकती इसलिए एक और डीड तैयार करनी पड़ती है. इस डीड को करेक्शन, कंफर्मेशन या रेक्टिफिकेशन डीड कहा जाता है.

इंडियन रजिस्ट्रेशन एक्ट के सेक्शन 23 के तहत वसीयत और कुछ अन्य विशेष मामलों को छोड़कर सभी कागजात एग्जिक्यूशन (साइनिंग) के 4 महीने के अंदर रजिस्टर्ड कराना जरूरी होता है.

भले ही ये तकनीकी गलती हो, लेकिन इस तरह की गलतियों के लिए भविष्य में प्रॉपर्टी बेचते वक्त भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है.

इस तरह की गलतियां सेल डीड, रेंट डीड, लीज डीड, एग्रीमेंट टु सेल, जीपीए, एसपीए, मोर्गेज डीड और ऐसे किसी भी दस्तावेज में हो सकती है.

रजिस्ट्रेशन क्यों जरूरी

‘द इंडियन रजिस्ट्रेशन एक्ट’ के अंतर्गत इस डीड को भी रजिस्टर्ड कराना पड़ता है. इस एक्ट के सेक्शन 17 के मुताबिक, किसी भी अचल संपत्ति में किसी भी व्यक्ति का हित पैदा करने वाले कागजात को रजिस्टर कराना जरूरी होता है.

मूल कागजात भी रजिस्टर्ड है, तो भी करेक्शन डीड को रजिस्टर्ड कराना जरूरी होता है, क्योंकि तभी इसकी लीगल वैल्यू मानी जाएगी. इन पर स्टैंप ड्यूटी भी चुकानी पड़ती है.

गलती के हिसाब से लगती है स्टैंप ड्यूटी

स्टैंप ड्यूटी की दर गलतियों के अनुसार होती है. स्पेलिंग की गलती के लिए अलग और नाम, रकम आदि की गलतियों के लिए अलग स्टैंप ड्यूटी चुकानी पड़ती है.

आपसी सहमति जरूरी

करेक्शन डीड मूल कागजात के सभी पक्षों की आपसी सहमति के बाद ही रजिस्टर्ड हो सकती है और इस पर भी सभी पक्षों के साइन होने जरूरी हैं. यानी बायर और सेलर दोनो ही आपस में सहमत हैं तो ही रेक्टिफिकेशन डीड बनाई जा सकेगी.

अगर कोई पक्ष करेक्शन डीड पर सहमति नहीं देता, तो अन्य पक्ष स्पेसिफिक रिलीफ एक्ट 1963 के अंतर्गत केस दाखिल कर सकता है. इसका खर्च राज्यों के हिसाब से अलग-अलग होता है.

दिल्ली में पिछले साल यानी 2020 तक करीब 1117 रुपये लीगल फीस है. इसमें डॉक्युमेंट राइट अप और ई-स्टैंप का खर्च अलग होता है.

यहां एक बात ध्यान में रखने लायक है कि केवल तथ्यों से संबंधित गलतियां अगर हों तो ही आप करेक्शन डीड बनवा सकते हैं. लेकिन, गलती अगर किसी कानून से संबंधित है तो इसे केवल करेक्शन डीड से नहीं सुधारा जा सकता है. यहां आपको पूरी प्रक्रिया दुबारा से करनी पड़ेगी.

Published - June 9, 2021, 02:43 IST