अपना घर खरीदें या किराये पर सही?

घर खरीदने के लिए डाउनपेमेंट, स्टाम्प ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन चार्ज जैसे खर्च और EMI का बोझ उठाना पड़ता है. पैसों की जरूरत पड़ने पर घर तुरंत बिक नहीं सकता है.

अपना घर खरीदें या किराये पर सही?

नौकरी बदलने या लोकेशन पसंद नहीं आने पर आसानी से घर बदल सकते हैं. (Photo Credit: Freepik)

नौकरी बदलने या लोकेशन पसंद नहीं आने पर आसानी से घर बदल सकते हैं. (Photo Credit: Freepik)

राजेश काफी समय से खुद का घर खरीदने की सोच रहे हैं. वहीं उनके दोस्त का कहना है कि किराये का घर ही बेहतर है, जब चाहे झोला उठाओ और चल दो. लेकिन राजेश का मन नहीं मानता. उनके हिसाब से अपना घर तो अपना ही होता है. उलझन में फंसे राजेश को समझ नहीं आ रहा है कि खुद का घर खरीदें या किराये के घर में रहना ही फायदे का सौदा साबित होगा. अगर आप भी यही सोचकर परेशान हैं तो आइये राजेश के उदाहरण से हम दोनों के फायदे और नुकसान में बारे में बताते हैं.

खुद का घर खरीदने पर कितना पड़ेगा जेब पर बोझ

SBI की होम लोन दरें 9.15 फीसदी से शुरू होती हैं. राजेश का बजट 50 लाख रुपए का है. यानी उसे 20 फीसद डाउनपेमेंट जेब से करना होगा. बैंक 80 फीसदी यानी 40 लाख रुपए का फाइनेंस करेगा.

मान लीजिए, राजेश 9.15 फीसद की दर पर 40 लाख रुपए का लोन 20 साल के लिए लेता है. उसकी मंथली EMI 36,376 रुपए बनेगी. 20 साल में बैंक को 87 लाख 30 हजार 197 रुपए चुकाने होंगे. जिसमें 40 लाख रुपए मूलधन और बाकी 47 लाख रुपए ब्याज है. यानी ये घर 20 साल बाद उसे करीब एक करोड़ रुपए का पड़ेगा. रियल एस्टेट सेक्टर की सालाना ग्रोथ रेट 5-6 फीसद है. इस लिहाज से जो घर आज 50 लाख रुपए का है वो 20 साल बाद 1.3 से 1.6 करोड़ रुपए का होगा.

किराये का घर कितना फायदेमंद?

राजेश का दोस्त सुरेश 50 लाख के घर के लिए 20,000 रुपए महीना किराया देता है. अगर राजेश भी किराए पर रहे तो हर महीने उसके 16,376 रुपए बचेंगे. इन पैसों को SIP के जरिए म्यूचुअल फंड में लगाने पर 12 फीसद अनुमानित रिटर्न के हिसाब से 20 साल बाद 1 करोड़ 58 लाख रुपए मिलेंगे. डाउनपेमेंट की 10 लाख रुपए की रकम को निवेश करने पर कुल 96 लाख 46 हजार 293 रुपए मिलेंगेयानी 20 साल बाद राजेश के पास ढाई करोड़ रुपए से ज्यादा होंगे.

जाहिर तौर पर इससे वो एक बड़ा और अच्छा घर खरीद सकता है. म्यूचुअल फंड में बाजार आधारित रिटर्न मिलता है इसलिए यह घटबढ़ सकता है. अब घर खरीदने और किराए पर रहने के नफानुकसान के बारे में जान लेते हैं. रेंट पर रहना EMI के मुकाबले सस्ता है. डाउन पेमेंट का कोई झंझट नहीं है. नौकरी बदलने या लोकेशन पसंद नहीं आने पर आसानी से घर बदल सकते हैं. वहीं, EMI भरकर आप एक एसेट यानी संपत्ति बना रहे हैं. होम लोन के प्रिंसिपल रिपेमेंट पर 80C के तहत डेढ़ लाख रुपए और सेक्शन 24 के तहत ब्याज पर 2 लाख रुपए तक का डिडक्शन मिलता है. शिफ्टिंग और मकान मालिक का झंझट नहीं है.

किराये पर नहीं मिलेगा रिटर्न

दूसरी ओर, किराए में जो पैसा भर रहे हैं उसे भूल ही जाइए क्योंकि ये पैसा न तो लौटकर आएगा और न इस पर कोई रिटर्न मिलेगा. हर साल किराया 8 से 10 फीसदी बढ़ता है. बिना मकान मालिक के मर्जी के आप घर में कोई काम नहीं करा सकते हैं. हालांकि घर खरीदने के लिए डाउनपेमेंट, स्टाम्प ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन चार्ज जैसे खर्च और EMI का बोझ उठाना पड़ता है. पैसों की जरूरत पड़ने पर घर तुरंत बिक नहीं सकता है.

मनी9 की सलाह

अगर आप पहला घर खरीद रहे हैं तो कुछ बातों का ख्याल रखें. पहला, जॉब सिक्योरिटी कितनी है? इसी से पता चलेगा कि आप EMI की लॉन्ग टर्म कमिटमेंट के लिए कितने तैयार हैं. ज्यादा से ज्यादा डाउन पेमेंट करें ताकि ब्याज कम भरना पड़े. आपके बजट में मनपसंद लोकेशन पर घर मिल रहा है या नही. रेपो रेट के हिसाब से ब्याज दरें घटतीबढ़ती है. ऐसे में आज अगर ब्याज दरें ज्यादा हैं तो कल कम भी होंगी.

Published - April 21, 2023, 06:27 IST