1 अप्रैल 2021 से लागू होने की संभावना है. नए वेज कोड (New Wage Code) के लागू होने से आपकी टेक होम सैलरी घट जाएगी. नियमों के अनुसार, ग्रेच्युटी और भविष्य निधि (Provident Fund) का योगदान कर्मचारियों के कुल वेतन का कम से कम 50 फीसदी होगा. इस नियम का पालन करने के लिए नियोक्ताओं को अपने कर्मचारियों के मूल वेतन को 50 फीसदी तक बढ़ाना होगा. इसका मतलब यह होगा कि कर्मचारियों के इन-हैंड वेतन में कटौती हो सकती है.
नए लेबर कोड में क्या है खास?
नए नियम के तहत तमाम भत्ते कुल सैलरी के 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकते. यानी सैलरी में बेसिक सैलरी का हिस्सा 50 फीसदी या फिर उससे भी ज्यादा रखना होगा. इससे पीएफ बढ़ेगा, ग्रेच्युटी बढ़ेगी, लेकिन इन हैंड सैलरी घट जाएगी. नया लेबर कोड (New Wage code) आने के बाद कंपनी के ऊपर पड़ने वाला बोझ बढ़ जाएगा. साथ ही अगर कर्मचारी किसी दिन 8 घंटे से ज्यादा या फिर सप्ताह में 48 घंटे से ज्यादा काम करता है तो उसे ओवरटाइम का मेहनताना सामान्य सैलरी से दोगुना मिलेगा.
अभी क्या है मौजूदा सैलरी स्ट्रक्चर?
अमूमन भारत में सभी इंडस्ट्रीज में Compensation structure में बेसिक सैलरी और अलाउंस शामिल होते हैं. बेसिक सैलरी ग्रॉस की 30 से 50 फीसदी होती है. नए नियम के मुताबिक, हर कंपनी को सैलरी स्ट्रक्चर में बदलाव करना होगा, ताकि बेसिक सैलरी कुल CTC का 50 फीसदी हो सके और बाकी के सब अलाउंस बची हुई 50 फीसदी सैलरी में रहेंगे.
पीएफ कॉन्ट्रिब्यूशन पर क्या होगा असर?
नए नियम के तहत बेसिक सैलरी कुल सीटीसी की कम से कम 50 फीसदी होगी. प्रोविडेंट फंड की गणना बेसिक सैलरी पर ही की जाती है. ऐसे में कर्मचारी का पीएफ कॉन्ट्रिब्यूशन बढ़ जाएगा. इसकी वजह से नियोक्ता का भी पीएफ में योगदान बढ़ेगा. ज्यातादर कंपनियां अपना शेयर भी कर्मचारी के कुल सैलरी पैकेज में शामिल रखते हैं. मतलब ये दोनों हिस्से आपकी सालाना सैलरी से ही काटे जाते हैं. पीएफ में कॉन्ट्रिब्यूशन बढ़ने से आपको रिटायरमेंट के बाद ज्यादा फायदा मिलेगा. इसके अलावा ग्रेच्युटी भी बढ़ जाएगी, इसे भी बेसिक सैलरी पर ही कैल्कुलेट किया जाता है.
ग्रेच्युटी देना होगा जरूरी?
अगर बेसिक पे और ग्रॉस का रेश्यो 30 फीसदी के आसपास है और वेज कोड लागू होने के बाद इसे बढ़ाकर 60 फीसदी किया जा सकता है. ऐसे में कंपनियों पर दोगुना बोझ पड़ सकता है. साथ ही पे-रोल वाले कर्मचारियों को गेच्युटी देनी होगी, चाहे वो 5 साल की नौकरी पूरी करें या नहीं. नए कोड से कर्मचारी हर साल के अंत में लीव एनकैशमेंट की सुविधा ले सकता है.
कितना बढ़ेगा कंपनी का बिल?
पे-रोल वाले कर्मचारियों पर खर्च बढ़ जाएगा, क्योंकि ग्रेच्युटी अनिवार्य हो जाएगी. हाई सैलरी और मिड सैलरी ग्रुप में कम बोझ पड़ेगा, लेकिन लोअर सैलरी रेंज ग्रुप में कंपनी का खर्च 25 से 30 फीसदी बढ़ जाएगा. उन्होंने कहा कि इससे इस साल इंक्रिमेंट प्रभावित हो सकता है.
वेज की नई परिभाषा क्या है?
नए कोड्स में बेसिक पे, डीए, रीटेनिंग और स्पेशल भत्तों को वेज में शामिल किया गया है. एचआरए, कनवेंस, बोनस, ओवरटाइम अलाउंस और कमीशंस को इससे बाहर रखा गया है. नए नियम के मुताबिक, तमाम भत्ते कुल सैलरी के 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकते हैं. अगर यह 50 फीसदी से ज्यादा होते हैं तो ज्यादा राशि को वेज का हिस्सा माना जाएगा. उदाहरण के लिए पहले ग्रेच्युटी की गणना मूल वेतन यानी बेसिक सैलरी के हिसाब से होती थी लेकिन अब यह वेज के हिसाब से मिलेगी.
समझिए कैसे कम होगी इन हैंड सैलरी
मान लेते हैं किसी की सैलरी 10 लाख रुपए सालाना है. तो नए वेज कोड के हिसाब से 50 फीसदी बेसिक सैलरी होगी. यानि 5 लाख रुपए. मौजूदा नियमों में ये 30 फीसदी तक रखी जाती है. मतलब 3 लाख रुपए
मौजूदा न्यू वेज कोड
बेसिक सैलरी (सालाना)- 3 लाख रुपए 5 लाख रुपए
बेसिक सैलरी (मासिक)- 25 हजार रुपए 41 हजार 666 रुपए
प्रोविडेंट फंड कंट्रीब्यूशन- 3 हजार रुपए 5 हजार रुपए
मतलब कुल मिलाकर आपके पीएफ का कंट्रीब्यूशन तो बढ़ा, लेकिन इन हैंड सैलरी कम हो गई.
समझना है क्या है न्यू वेज कोड तो यहां देखिए पूरा वीडियो