महामारी की दूसरी लहर की चपेट में आकर 1 फरवरी से 31 मई के बीच 2.53 करोड़ लोग बेरोजगार हो गए. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के डाटा के मुताबिक, औसतन, हर एक सेकेंड में 2.4 नौकरियां गईं. इतनी तेजी से बेरोजगारी का बढ़ना चिंताजनक है.
रोजगार को बढ़ावा देने के लिए केंद्र ने पिछले साल 22,810 करोड़ रुपये के पैकेज का ऐलान किया था. आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना के तहत सरकार ने प्रोविडेंट फंड पेमेंट में सब्सिडी का ऐलान किया था. पिछले साल शुरू की नए कर्मचारियों के लिए प्रोविडेंट फंड कंट्रिब्यूशन की स्कीम आगे भी जारी रखनी चाहिए.
स्कीम के तहत केंद्र ही कर्मचारी और एंप्लॉयर के हिस्से का पीएफ निवेश करती है. ये स्कीम 30 जून को खत्म नहीं होनी चाहिए. ये स्कीम सिर्फ नए कर्मचारियों के लिए शुरू की गई थी.
एंप्लॉयर को ये फायदा देने से उनपर भी कर्मचारियों पर आने वाला खर्च घटा. इसका लक्ष्य यही था कि ब्लू-कॉलर नौकरियों के मौके बढ़ें. इस स्कीम के तहत केंद्र कर्मचारी और एंप्लॉयर दोनों के हिस्से का 12 फीसदी प्रोविडेंट फंड कंट्रीब्यूशन दे रही है. ये योजना 1 अक्टूबर 2020 से 30 जून 2021 तक के लिए लागू है.
ऐसी कंपनियां जहां 1000 से ज्यादा लोग कार्यरत हैं उनके लिए सरकार की कर्मचारी की तरफ से कंट्रीब्यूशन दे रही है. फिलहाल ये फायदा 15,000 रुपये तक पाने वाले कर्मचारियों को होता है
ध्यान देने वाली बात है कि इस योजना का ऐलान तब किया गया था जब सबको उम्मीग थी कि महामारी का सबसे खराब दौर बीच चुकी है और इकोनॉमी अब रिकवरी की राह पकड़ चुकी है. पर दूसरी लहर, और आगे तीसरी लहर के खतरे के बीत, सैलरी वर्ग के लिए बड़ी मुश्किलें खड़ी कर चुका है.
यही वजह है कि सरकार को चाहिए कि अगर संभव हो तो EPF पेमेंट की सब्सिडी आगे भी जारी रखें. साथ ही, 15,000 रुपये की आय की सीमा को बढ़ाकर 20,000 रुपये करने की कोशिश की जानी चाहिए जिससे ज्यादा लोगों को फायदा हो. ये स्कीम इस वित्त वर्ष के अंत तक जारी रखनी चाहिए. अगर ये रोजगार के मौके पैदा करने में सफल होती है तो इसे आगे और बड़े स्तर पर लागू किया जा सकता है.