दिवाला कानून को लेकर क्यों सतर्क हैं कर्जदार?

दिवाला कानून के तहत मामले स्वीकार किये जाने से पहले समाधान कर रहे कर्जदार: आईबीबीआई

दिवाला कानून को लेकर क्यों सतर्क हैं कर्जदार?

भारतीय दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता बोर्ड (आईबीबीआई) ने कहा है कि दिवाला कानून को लेकर कर्जदार सतर्क हैं. कर्जदारों को इस बात की आशंका है कि उनका मालिकाना हक बदल सकता है, इसके कारण उनके व्यवहार में बदलाव आया है. इसी का नतीजा है कि कॉरपोरेट देनदारों के खिलाफ समाधान प्रक्रिया के लिए 27,500 से अधिक आवेदन उनके स्वीकार किए जाने से पहले वापस ले लिए गए हैं. इन कंपनी कर्जदारों पर 9.74 लाख करोड़ रुपये के चूक के मामले थे.

दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) दिसंबर, 2016 में पेश की गई थी. इसमें दबाव वाली संपत्तियों के लिए समयबद्ध और बाजार आधारित समाधान उपलब्ध कराया गया है. आईबीबीआई ने अपनी पत्रिका में कहा कि संहिता को लेकर कंपनियों में आशंका है। उन्हें लगता है कि इससे चूक की स्थिति में स्वामित्व बदल सकता है. इससे उनके व्यवहार में बदलाव आया है। हजारों कर्जदार अब दबाव वाली संपत्तियों का समाधान समय रहते कर रहे हैं.

इसमें कहा गया है कि वे चूक होने की स्थिति में भुगतान को लेकर नोटिस प्राप्त होने पर मामले का समाधान कर रहे हैं. वे आवेदन भी दे रहे हैं, लेकिन उसे स्वीकार करने से पहले उन्हें वापस ले लिया गया. अगर आवेदन स्वीकार कर भी लिया गया है तो वे समाधान प्रक्रिया के परिणाम से बचने का हरसंभव कोशिश कर रहे हैं. भारतीय दिवाला और ऋण शोधन अक्षमता बोर्ड (आईबीबीआई) आईबीसी को लागू करने वाली एक प्रमुख संस्था है.

पत्रिका के अनुसार, अक्टूबर, 2023 तक 9.74 लाख करोड़ रुपये के चूक वाले कंपनी कर्जदारों के मामले में सीआईआरपी (कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया) की शुरुआत के लिए 27,514 आवेदन उनको स्वीकार किये जाने से पहले वापस ले लिए गए थे. आईबीसी ने दिसंबर, 2023 तक समाधान योजनाओं या अपीली अथवा समीक्षा आदि के माध्यम से 3,050 कॉरपोरेट कर्जदार (सीडी) को बचाने में मदद की है. जिन कंपनी कर्जदारों के मामलों का समाधान किया गया है, उससे स्वीकृत दावा राशि का करीब 32 प्रतिशत प्राप्त हुआ, जबकि परिसमापन मूल्य का यह 169 प्रतिशत से अधिक था. कर्जदाताओं को पिछले साल 31 दिसंबर तक समाधान योजनाओं के तहत 3.21 लाख करोड़ रुपये प्राप्त हुए.

Published - February 20, 2024, 06:24 IST