भारत में आने वाले दिनों में दवाओं की कमी और दवाओं की कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है. उद्योग अधिकारियों के अनुसार, मध्यम और छोटे उद्यमों का प्रतिनिधित्व करने वाले कई लॉबी समूहों और संघों ने स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा हाल ही में अनिवार्य किए गए नियमों का पालन करने में असमर्थता व्यक्त की है. उन्होंने कहा है कि ऐसे में कई इकाइयों को बंद करना पड़ सकता है.
स्वास्थ्य मंत्रालय ने हाल ही में एक अधिसूचना जारी की थी जिसमें कहा गया कि फार्मास्युटिकल प्रोडक्ट्स के लिए व्यवस्थित परिसर, संयंत्र और उपकरणों की आवश्यकताओं के लिए संशोधित एम (M Rule) नियमों का पालन करना अनिवार्य है. इस नियम में वार्षिक उत्पाद गुणवत्ता समीक्षा के साथ-साथ इसके उत्पादन के लिए जोखिम प्रबंधन और एक फार्मास्युटिकल गुणवत्ता प्रणाली के प्रावधान भी शामिल किए गए हैं.
स्वास्थ्य मंत्री ने कही थी ये बात
पिछले साल जुलाई में स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा था कि फार्मा उद्योग में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के लिए चरणबद्ध तरीके से शेड्यूल एम नियम अनिवार्य किया जाना चाहिए. इसके बाद, स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि नई शेड्यूल एम गाइडलाइन को 250 करोड़ रुपए से ज्यादा टर्नओवर वाली कंपनियों को छह महीने में पालन करना होगा. वहीं इससे कम टर्नओवर वाली कंपनियों को इसके लिए एक साल तक का वक्त दिया जाएगा.
छोटे और मध्यम क्षेत्रों के लिए एम नियम बड़ी चुनौती
छोटे व्यवसायों के संगठन लघु उद्योग भारती (एलयूबी) के प्रतिनिधि संजय सिंगला ने कहा कि छोटे और मध्यम क्षेत्रों के लिए एम मानकों का पालन करना बड़ी चुनौती है. उन्होंने कहा कि छोटे उद्योग वालों को अपग्रेड के लिए लागत चुकानी पड़ेगी. सिंगला ने कहा, सरकार के इस नए नियम से कई इकाइयां बंद हो जाएंगी, जिसके परिणामस्वरूप दवा की कीमतें बढ़ जाएंगी और कमी हो जाएगी. छोटे और मध्यम उद्यमों के लिए समय सीमा बहुत कम है. उन्होंने कहा कि नए मानदंडों का कार्यान्वयन छोटी कंपनियों के लिए चुनौतीपूर्ण होगा, जिससे इन्हें अधिक लागत चुकाने के साथ परिचालन लागत में स्थायी बढ़ोतरी हो सकती है.
इसके अलावा, पंजाब ड्रग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (पीडीएमए) के अनुसार, मूल्य नियंत्रण के तहत आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची (एनएलईएम) दवाओं का निर्माण अव्यवहारिक हो जाएगा क्योंकि नए मानदंडों के कारण उनके उत्पादन की लागत अधिकतम कीमत से अधिक हो जाएगी.
स्वास्थ्य मंत्रालय की नई गाइडलाइन
इससे पहले स्वास्थ्य मंत्रालय ने दवाओं के उत्पादन से जुड़ी नई गाइडलाइन जारी की, जिसमें कहा गया है कि अब देश की फार्मास्यूटिकल कंपनियों को दवा बनाने में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानक का पालन करना होगा. दवा निर्माताओं को अपने उत्पादों की गुणवत्ता की जिम्मेदारी लेनी होगी. उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि जो दवा बनाई गई है, उससे मरीजों को किसी तरह का जोखिम न हो. फार्मा कंपनियों को लाइसेंस के मापदंडों के अनुसार ही दवा बनानी होगी.
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