विलफुल डिफॉल्टरों से ऋणदाताओं को निपटने के लिए बने नियमों में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) बदलाव करेगा. इसके तहत फंसे हुए ऋण खातों की पहचान करते समय उधारकर्ताओं के साथ अब व्यक्तिगत सुनवाई अनिवार्य की जा सकती है. इससे पहले यह महज वैकल्पिक थी, जिसे महज विल्फुल डिफॉल्टर की कैटेगरी में डालने के अंतिम चरण में अपनाया जाता था. मगर इस बदलाव से शुरुआती चरण में बातचीत शुरू की जाएगी, जिससे वसूली की संभावना अधिक होगी.
एक बार उधारकर्ता को विलफुल डिफॉल्टर घोषित किए जाने के बाद से वो औपचारिक बैंकिंग क्षेत्र से बाहर हो जाता है. इन खातों के निपटान के लिए लंबी कानूनी प्रक्रिया झेलनी पड़ती है. इसी को सुधारने के लिए आरबीआई नरम रुख अपना रही है. वित्त मंत्रालय के अधिकारी, जो हाल ही में भारत के कुछ शीर्ष बैंकरों से मिले थे, वे भी ऐसे सभी खातों को लंबी कानूनी प्रक्रिया में भेजने के बजाय इसे जल्दी निपटाने के पक्ष में है. ये बदलाव जनवरी में अपेक्षित समझौता निपटान और तकनीकी राइट-ऑफ के लिए विलफुल डिफॉल्टर्स फ्रेमवर्क पर आरबीआई के अंतिम दिशानिर्देशों में शामिल हो सकते हैं.
बता दें सितंबर में केंद्रीय बैंक ने जानबूझकर डिफॉल्ट को लेकर एक सुर्कलर जारी किया था, जिसमें किसी खाते को एनपीए के रूप में वर्गीकृत किए जाने के बाद पहचान प्रक्रिया को ठीक करने और छह महीने के अंतर इस प्रक्रिया को पूरा करने का प्रस्ताव दिया गया था. मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुसार, यदि डिफॉल्ट 90 दिनों तक जारी रहता है तो बैंक किसी खाते को एनपीए के रूप में टैग कर सकते हैं. सूत्रों के मुताबिक ऐसे खातों से निपटने में लचीलेपन को अपनाने से शीर्ष बैंक किसी खाते को एनपीए के रूप में वर्गीकृत किए जाने के समय से जानबूझकर चूक करने वालों की घोषणा के लिए मौजूदा छह महीने की अवधि पर कायम रह सकता है.
जानबूझकर डिफॉल्ट के मामले में आरबीआई के 2016 के सर्कुलर के संबंध में मार्च में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश में कहा गया था कि बैंकों की ओर से उन्हें जानबूझकर चूक करने वालों का टैग देने से पहले उधारकर्ताओं को प्रतिनिधित्व करने का पर्याप्त अवसर मिलना चाहिए और कार्रवाई एकतरफा नहीं होनी चाहिए. इसके बाद ही आरबीआई ने 25 लाख रुपए से अधिक की चूक के लिए प्रक्रिया को छह महीने में पूरा करना अनिवार्य किया था, इससे पहले कोई समय सीमा नहीं थी.