अखबार, टीवी और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर डिजिटल फ्रॉड से जुड़ी खबरें आपको आए दिन दिखाई देती होंगी. आपको लगता भी होगा कि क्या वाकई में इस तरह के फ्रॉड होते हैं, लेकिन यह सच है और बड़ी तादाद में हो रहे हैं. अगर आंकड़ों को देखें तो वित्तीय वर्ष 2022-23 में डिजिटल फ्रॉड के मामले बढ़कर करीब दोगुने हो गए है. आरबीआई की बहीखातों और आंतरिक प्रक्रिया के सालाना निरीक्षण के दौरान ये आंकड़े सामने आए हैं. आरबीआई ने इसके बाद बैंकिंग प्रणाली में बढ़ती डिजिटल धोखाधड़ी पर अपना ध्यान बढ़ा दिया है.
वित्त वर्ष 2023 में 30,252 करोड़ का फ्रॉड
वित्त वर्ष 2022 में कुल 3,596 डिजिटल फ्रॉड रिपोर्ट किए गए थे, जो वित्त वर्ष 2023 में बढ़कर 6,659 हो गए. वित्त वर्ष 2023 में कुल फ्रॉड की रकम 30,252 करोड़ रही, जो वित्त वर्ष 2022 के 59,819 करोड़ रुपए की तुलना में आधी है. आरबीआई ने अब बैंकों से सभी प्रकार की धोखाधड़ी के मामलों को रिपोर्ट करने को कहा है.
रिजर्व बैंक ने कहा है कि कई जोखिम प्रबंधन प्रक्रियाओं को लागू करने के साथ काफी हद तक इस तरह के मामलों से निपटा जा चुका है, लेकिन छोटी मात्रा की डिजिटल धोखाधड़ी अभी भी बैंकों के परिचालन के लिए जोखिम पैदा कर रही है. बैंकर्स का कहना है कि आरबीआई लेनदेन में धोखाधड़ी को रोकने के लिए कर्जदाताओं से उनके मैकेनिज्म के बारे में पूछ रहा है. इसमें बैंक की ओर से कस्टमर्स को उपलब्ध कराया जाने वाला कस्टमर सर्विस हैंडल्स और प्रभावी शिकायत निवारण सेल शामिल है.
एक बैंकर का कहना है कि लेनदेन से जुड़े धोखाधड़ी के मामलों में अगर किसी घोटालेबाज ने किसी कस्टमर की जानकारियां हासिल कर ली हैं और कस्टमर के प्रति लेनदेन अधिकतम राशि की लिमिट होने पर घोटालेबाज को कई बार ट्रांजैक्शन करना होता है. ऐसे में अगर लेनदेन की गति ज्यादा है तो बैंक के सिस्टम को इस तरह के मामलों की पहचान करने के साथ उसे सामने लाना चाहिए. इसके अलावा बैक एंड में मौजूद सिस्टम को उसका पता लगाने में सक्षम होना चाहिए. बैंकों का कहना है कि कस्टमर्स ऑनलाइन पेमेंट करते समय ज्यादा सतर्क नहीं रहते हैं, ऐसे में रिजर्व बैंक की ओर से कर्जदाताओं से साइबर धोखाधड़ी की रोकथाम के लिए जागरुकता अभियान चलाने के लिए कहा है.