श्रीलंका में चीन की कंपनी पेट्रोल-डीजल बेचने जा रही है, ये सुर्खी तो आप तक पहुंच गई होगी. लेकिन क्या आपको पता है कि इस खबर के तार अप्रैल में OPEC+ देशों की उस घोषणा से जुड़े हैं जिसमें OPEC+ ने कच्चे तेल का उत्पादन घटाने का ऐलान किया था. तेल उत्पादक देशों के संगठन OPEC+ ने अप्रैल की शुरुआत में तेल उत्पादन में कटौती की घोषणा की थी, घोषणा के तहत रोजाना उत्पादन में 12 लाख बैरल कटौती होनी थी और उस कटौती में रूस को रोजाना 5 लाख बैरल उत्पादन घटाना था. लेकिन जिस रफ्तार से रूस कच्चे तेल के निर्यात को बढ़ा रहा है, उसे देखते हुए लग नहीं रहा कि उसकी तरफ से तेल उत्पादन में कटौती हुई है, बल्कि निर्यात आंकड़े तो इस तरह का संकेत दे रहे हैं कि रूस का तेल उत्पादन घटने के बजाय बढ़ा है. शायद यही वजह है कि उत्पादन कटौती के फैसले के बावजूद लंबे समय से कच्चे तेल के भाव पर दबाव है. विदेशी बाजार में ब्रेंट क्रूड का भाव 75 डॉलर के करीब बना हुआ है.
रूस के तेल निर्यात आंकड़े देखें तो 19 मई को खत्म हुए हफ्ते के दौरान उसके निर्यात में लगातार छठे हफ्ते गिरावट आई है. अप्रैल के पहले हफ्ते के मुकाबले अब रूस का तेल निर्यात करीब 15 फीसद तक बढ़ गया है. रोजाना रूस करीब 40 लाख बैरल कच्चे तेल का एक्सपोर्ट कर रहा है. एशिया के दो बड़े बाजारों यानी भारत और चीन में रूस से कच्चे तेल की सप्लाई लगातार बढ़ रही है. भारत में तो रूस कच्चे तेल का सबसे बड़ा सप्लायर बन गया है, उसने सऊदी अरब के साथ इराक और यूएई को पछाड़ दिया है. भारतीय तेल कंपनियां रूस के कच्चे तेल से पेट्रोलियम प्रोडक्ट तैयार कर यूरोप के देशों को एक्सपोर्ट कर रही हैं
उधर चीन ने भी रूस से भारी मात्रा में कच्चे तेल का इंपोर्ट करके अपने ऑयल रिजर्व को बढ़ाया है और अब उसी ऑयल रिजर्व से तेल रिफाइन करके दुनिया के दूसरे देशों को पेट्रोल-डीजल बेच रहा है. हाल ही में चीन ने श्रीलंका के साथ डील की है, जिसके तहत श्रीलंका में चीन की कंपनी सिनोपेक पेट्रोल पंप लगाकर पेट्रोल और डीजल बेचेगी.
रूस के तेल से भारत और चीन को तो फायदा पहुंचा है, लेकिन OPEC+ के अन्य सदस्य देशों को इसका नुकसान हुआ है, एक तरफ तेल उत्पादन में कटौती नहीं होने से तेल का भाव नहीं बढ़ा, जिस वजह से OPEC+ देशों को सस्ते भाव पर कच्चा तेल बेचना पड़ रहा है. दूसरी तरफ खाड़ी के तेल उत्पादक देशों के हाथ से भारत और चीन जैसे बड़े बाजार खिसक रहे हैं.