Vehicle Recall Policy: व्हीकल रिकॉल पॉलिसी के नए नोटिफिकेशन से ग्राहकों की शिकायत को सुलझाने में एक बड़े बदलाव की उम्मीद है. कंपनियों पर 10 लाख रुपए से लेकर 1 करोड़ रुपए तक के जुर्माना का प्रावधान है, ऐसे में ग्राहकों को उम्मीद है कि खराब वाहन देने पर उनकी शिकायत का निपटारा जल्द होगा. इस कदम से खरीदार और विक्रेता के अधिकारों और दायित्वों में स्पष्टता आई है. नया फ्रेमवर्क ग्राहकों को संतुष्टि की गारंटी देता है और यह सुनिश्चित करता है कि कंपनियों को खराब मैन्युफैक्चरिंग के लिए जिम्मेदार ठहराया जाए.
नोटिफिकेशन में साफ किया गया है कि ‘डिफेक्ट’ का मतलब गाड़ी या गाड़ी के किसी भी कंपोनेंट या सॉफ्टवेयर में गड़बड़ी से है जिससे सुरक्षा से जुड़ी कोई दिक्कत हो सकती है या फिर पर्यावरण को कोई नुकसान की संभावना है. और साथ ही ऐसी गड़बड़ी उसी डिजाइन या मैन्युफैक्चरर की और कई गाड़ियों में हो. या फिर ये गड़बड़ी उसी टाइप और मैन्युफैक्चरर के इक्विप्मेंट में हो. नोटिफिकेशन के मुताबिक ये गड़बड़ी डिजाइन की वजह से हो सकती है या फिर मैन्युफैक्चरिंग के वक्त एसेंब्ली स्टेज में हो.
शिकायतें रेड-टेपिजम का शिकार ना हो और ना ही शिकायतें कंपनियों को तंग करने के लिए हो इसके लिए एक एजेंसी का गठन होगा जो रिकॉल (Recall) के फैसले पर निर्णय लेगी.
बढ़ते एक्सिडेंट्स और व्हीकल रिकॉल पॉलिसी (Vehicle Recall Policy) के अभाव में ये कदम ग्राहकों की चिंता कम करने में मदद करेगा.
भारत में पिछले 2 सालों में कई गाड़ियों को रिकॉल करना पड़ा है और ये कदम सुनिश्चित करेगा कि क्वालिटी मापदंडों का पालन हो रहा है.
साल 2020 में अधिकतर दिग्गज मैन्युफैक्चरर्स को गाड़ियां रिकॉल (Vehicle Recall) करनी पड़ी हैं. पिछले वर्ष रिकॉल की गई कुल गाड़ियों की संख्या 3.30 लाख रही.
कार बनाने वाली कंपनियों को ध्यान में रखना होगा कि गाड़ी खरीदने से लोगों का भावनात्मक जुड़ाव होता है और प्रोडक्ट में कोई भी गड़बड़ी इस अनुभव के रंग में भंग का काम करती है.
Vehicle Recall Policy: ग्राहकों को भी इस पोर्टल का जरूरत के मुताबिक सही इस्तेमाल करना चाहिए और कोई जालसाजी की कोशिश नहीं होनी चाहिए.
नया फ्रेमवर्क ग्राहकों की संतुष्टी की गांरटी देता है और साथ ही सुनिश्चित करता है कि कंपनियां मैन्युफैक्चरिंग से जुड़ी खामियों के लेकर जवाबदेह हों.