1942 में यूके सरकार के लिए एक रिपोर्ट में लिबरल इकनॉमिस्ट विलियम बेवेरिज ने सोशल वेल्फेयर में व्यापक सुधारों का प्रस्ताव दिया था. उन्होंने ऑक्सफोर्ड के आदर्शवाद, कैंब्रिज की व्यावहारिकता और लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स के विज्ञानवाद को इसमें शामिल करने की बात की थी.
बेवेरिज यह देखकर खुश होंगे कि तकरीबन आठ दशक बाद आज भारत में कई सरकारें उनकी इसी भावना पर काम कर रही हैं.
2018 में केंद्र सरकार ने भारत की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा स्कीम लॉन्च की. आयुष्मान भारत स्कीम के तहत हर परिवार को 5 लाख रुपये सालाना का बीमा कवर मिलता है.
इस स्कीम को 10.74 करोड़ से ज्यादा परिवारों को मुहैया कराया गया है और इस तरह से इसमें करीब 50 करोड़ लोग कवर हो रहे हैं.
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना में 11.47 करोड़ लोगों को फायदा मिल रहा है. इन किसानों को हर साल 6,000 रुपये दिए जाते हैं.
अब इस रकम को बढ़ाकर 10,000 रुपये कर दिया गया है. प्रधानमंत्री जनधन योजना सबको बैंकिंग सेवाओं से जोड़ने की एक व्यापक मुहिम है.
इसके तहत करीब 42.28 करोड़ लाभार्थियों के बैंक खाते खोले गए हैं और उनमें 1.44 लाख करोड़ रुपये डाले गए हैं.
इस प्रोग्राम का मकसद देश के हर व्यस्क शख्स का बैंक खाता खोलना है. महामारी से जंग के लिए केंद्र ने गरीबों को मुफ्त में अनाज देने की स्कीम को आगे बढ़ा दिया है.
2021-22 के बजट में सरकार ने मनरेगा के तहत आवंटन को भी 18 फीसदी बढ़ा दिया है.
कल्याणकारी राज्य की इसी सोच को रविवार को और बढ़ावा मिला है. बंगाल में तृणमूल कांग्रेस (TMC) को बड़ी जीत मिली है. ममता बनर्जी ने राज्य में 1.6 करोड़ परिवारों को यूनिवर्सल बेसिक इनकम देने जैसे कई वादे किए हैं.
अर्थशास्त्री भले ही कल्याणकारी नीतियों या लोकलुभावनी योजनाओं की आलोचना कर सकते हैं, लेकिन मौजूदा हालात को देखते हुए देश की एक बड़ी आबादी को मुश्किल से निकालना फिलहाल सरकार की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है.