लंबे वक्त में पूंजी बनाने के लिए जरूरी है रिस्क मैनेजमेंट

बिना जोखिम के पूंजी खड़ी नहीं की जा सकती है, लेकिन ज्यादा जोखिम पूरी सेविंग्स को बर्बाद कर सकता है, ऐसे में रिस्क मैनेजमेंट की जरूरत होती है.

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Risk Management: इस दुनिया में कुछ भी रिस्क-फ्री यानी जोखिम से मुक्त नहीं है. आपका करियर हो, कारोबार या पर्सनल फाइनेंस हो, सब में कुछ न कुछ जोखिम है. या तो लक से या फिर स्मार्ट तरीके से चीजों के प्रबंधन (risk management) से आप इन जोखिमों से बच सकते हैं. फाइनेंशियल प्लानिंग में चूंकि आपकी पूरी सेविंग्स दांव पर लगी होती है, ऐसे में बेहतर यही होगा कि आप अपने भाग्य के सहारे बैठने की बजाय इसे स्मार्ट तरीके से मैनेज करें.

ऐसे लोग जो रिस्क से बचते हैं उनके ऐसे लोगों के मुकाबले गरीब बने रहने के ज्यादा आसार होते हैं जो रिस्क को स्वीकार करते हैं. यह सीधे तौर पर ज्यादा जोखिम, ज्यादा रिटर्न के कॉन्सेप्ट पर आधारित है. हालांकि, ठीक से तरह के मैनेज न किए जाने की स्थिति में ये रिस्क आपको काफी गरीब बना सकते हैं.

पर्सनल फाइनेंस प्लानिंग में निवेश मैराथन दौड़ की तरह से होता है. यहां पर जोखिम लेना अस्थाई आनंद दे सकता है, लेकिन इसे ठीक से मैनेज करना लंबे वक्त में सफलता के रास्ते खोल सकता है. ऐसे में रिस्क मैनेजमेंट (risk management) किसी भी विशेष टास्क में जोखिम को पहचानना, उसके असेसमेंट और उन्हें न्यूनतम लेवल पर लाना होता है.

जब भी पर्सनल फाइनेंशियल प्लानिंग की चर्चा होती है, रिस्क मैनेजमेंट हमेशा ही प्राथमिकता की सूची में ऊपर आता है. हर निवेशक एक इनवेस्टर या स्पेकुलेटर होता है क्योंकि इनवेस्टमेंट का प्रदर्शन कयासबाजी से ज्यादा कुछ नहीं होता है. ऐसे में हर इनवेस्टर एक निवेशक और जुआरी दोनों होता है.

गैंबलिंग की बात करें तो यह सीधी बात है कि जो शख्स जितना ज्यादा जोखिम लेगा वो उतना ही ज्यादा फायदा भी लेगा. इसके उलट बात भी उतनी ही सच है. ऐसे में आप रातोंरात अमीर या गरीब हो सकते हैं, लेकिन क्या आप अपनी पूरी सेविंग्स को इस तरह से दांव पर लगा सकते हैं? इसका जवाब है नहीं. लेकिन क्या रिस्क न लेने से आप अमीर हो सकते हैं. जाहिर है कि इसका जवाब भी ना ही है. ऐसे में आपको उचित रिस्क और एक सही संतुलन बैठाने की जरूरत है. एक सही रिस्क लेने के लिए आपको रिस्क मैनेजमेंट की जरूरत पड़ेगी.

ये स्ट्रैटेजी पैदा होने होने वाली सबसे बुरी परिस्थितियों को कवर करती है और आपके रिटर्न को बढ़ाती है. हर निवेशक का टारगेट होता है कि वह कम से कम रिस्क में ज्यादा से ज्यादा पूंजी बनाए. इस लालच में वे ज्यादा डायवर्सिफिकेशन में चले जाते हैं. निश्चित तौर पर ज्यादा अच्छा परफॉर्मेंस करने वाले इनवेस्टमेंट ऑप्शंस मार्केट में मौजूद हैं, जिनकी ओर निवेशक बढ़ जाते हैं और इससे उनका जोखिम भी बढ़ जाता है.

हालांकि, कुछ एक्सपर्ट्स अलग तरह से सोचते हैं. इनका कहना है कि पर्सनल फाइनेंशियल प्लानिंग में ज्यादा रिटर्न वाले निवेश ऑप्शंस को टारगेट करना चाहिए और अलग-अलग जगहों पर निवेश करने से बचना चाहिए. हालांकि, डायवर्सिफिकेशन एक संतुलन बनाने वाले फॉर्मूले पर काम करता है, लेकिन, इससे ज्यादा रिटर्न मिलने की संभावना भी कम हो जाती है. इससे कई दफा आपको मामूली रिटर्न मिल पाता है.

इनवेस्टर्स एक और गलती ये करते हैं कि वे किसी एक निवेश में बेहद लंबे वक्त तक टिके रहते हैं और एग्जिट के आसान मौके गंवा देते हैं. ज्यादा लालच कई बार बेमानी साबित होता है. हालांकि, ऐसा भी हो सकता है कि निवेशकों को ये लगे कि वे निवेश से जल्दी निकल गए हैं. लेकिन, हाथ में प्रॉफिट आना हमेशा अच्छा होता है. रिस्क मैनेजमेंट लॉन्ग टर्म रणनीतियों को प्लान करने के लिए एक अच्छा टूल है.

बैंक में जमा होने वाला पैसा निश्चित तौर पर सुरक्षित है, लेकिन इस पर मिलने वाला रिटर्न उतना नहीं होता है. इसके चलते आपके लिए जोखिम लेने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं बचता है. लेकिन, रिस्क लेना और पूंजी खड़ी करना दो अलग-अलग चीजें हैं. ऐसे में आपको संतुलित जोखिम लेना होगा जिससे आप भविष्य के लिए बड़ी पूंजी इकट्ठी कर सकें.

हर निवेश एक मकसद को हासिल करने के लिए किया जाता है. इनमें रिटायरमेंट से लेकर घर खरीदने या शादी करने जैसे लक्ष्य शामिल हो सकते हैं. हर मकसद के लिए रिस्क मैनेजमेंट (risk management) अलग-अलग होता है और इनके निवेश का टर्म भी अलग-अलग होता है. आपके रिटायरमेंट फंड पर असर डालने वाले कई पहलू होते हैं, इनमें व्यक्तिगत स्टेटस, हेल्थकेयर, सरकारी नियम और आर्थिक स्थितियां भी शामिल होती हैं.

आइए इनमें से कुछ पर नजर डालते हैंः
पर्सनल स्टेटसः पर्सनल स्टेटस पर अचानक नौकरी जाने या मैरिटल स्टेटस में बदलाव या बिना वजह शुरू होने वाला कानूनी विवाद से असर पड़ सकता है. इससे आपकी रिटायरमेंट योजनाओं पर भी बुरा असर पड़ता है. ऐसे में इस तरह की आकस्मिक स्थितियों से निपटने के लिए एक इमर्जेंसी फंड बनाना जरूरी होता है.
हेल्थकेयरः मौजूदा माहौल में इलाज काफी महंगा हो गया है. लेकिन मानवीय जिंदगी के साथ भी ऐसा ही है. इलाज पर खर्च आपके निवेश का एक बड़ा हिस्सा बर्बाद कर सकता है. साथ ही एक्सीडेंटल डेथ के केस में आपके परिवार के लिए वित्तीय इंतजाम गड़बड़ा सकते हैं. ऐसे में मेडिकल पॉलिसी और टर्म इंश्योरेंस टूल का इस्तेमाल करना चाहिए ताकि इस तरह के जोखिम को कम किया जा सके.
सरकारी नियमः किसी भी निवेश पर रिटर्न सरकारी नीतियों से प्रभावित होता है. ऐसे में यह हमेशा बेहतर रहता है कि आप अपने निवेश के लिए एक प्लान बी तैयार रखें.
देश की अर्थव्यवस्थाः इनवेस्टर्स को देश की आर्थिक स्थिति पर भी नजर डालनी चाहिए. इनमें महंगाई, ब्याज दरें, स्टॉक मार्केट में होने वाले उतार-चढ़ाव और ट्रेडिंग सेक्टर शामिल हैं. ऐसा नहीं होना चाहिए कि आपने पैसा निवेश कर दिया और आप उसे छोड़कर बैठ गए, आपको इस पर नजर रखनी चाहिए और उस हिसाब से कदम भी उठाने चाहिए.
निजी जिंदगी में रिस्क मैनेजमेंट (risk management) का यह एक बेहद आम उदाहरण है, लेकिन इसकी अहमियत लगातार बढ़ रही है.

Disclaimer: लेखक मनी मंत्रा के फाउंडर हैं, कॉलम में व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं. लेख में दिए फैक्ट्स और विचार किसी भी तरह Money9.com के विचारों को नहीं दर्शाते.

Published - April 5, 2021, 12:35 IST