Retail Inflation: शुक्रवार को जारी हुए खुदरा महंगाई (Retail Inflation) के आंकड़ों से एक दिलचस्प चीज का पता चला है. इसमें दिख रहा है कि कोर या नॉन–फ्यूल, नॉन–फूड इनफ्लेशन फरवरी में बढ़कर 5.9 फीसदी पर पहुंच गई है जो कि जनवरी में 5.7 फीसदी थी.
इससे यह साबित होता है कि बड़ी कंपनियों के हाथ कीमतें तय करने की ज्यादा ताकत आ रही है.
छोटी कंपनियों की उत्पादन क्षमता नहीं बढ़ रही
भारत के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद प्रणव सेन कहते हैं कि अर्थव्यवस्था में कैपेसिटी यूटिलाइजेशन (क्षमताओं के इस्तेमाल) निचले स्तर पर है.
छोटी कंपनियां या तो महामारी के चलते बंद हो गई हैं या फिर वे महामारी से पहले के स्तर पर अपनी उत्पादन क्षमता को नहीं पहुंचा पा रही हैं.
ऐसे में प्रतिस्पर्धा में ये कंपनियां पिछड़ रही हैं और इससे बड़ी कंपनियां दबदबे वाली हैसियत में आ गई हैं. वे कहते हैं कि बड़ी कंपनियां लागत खर्च में इजाफा होने पर अपने हिसाब से कीमतें तय कर पा रही हैं.
बड़ी कंपनियां हैं ज्यादा आशावादी
दिल्ली स्थित इकनॉमिक रिसर्च एजेंसी एनसीएईआर के पिछले महीने पब्लिश किए गए बिजनेस कॉन्फिडेंस सर्वे में कहा गया है कि आउटलुक में सुधार हो रहा है. हालांकि, इसमें यह भी कहा गया है कि बड़ी कंपनियां इस मामले में कहीं ज्यादा आशावादी हैं.
सर्वे में हिस्सा लेने वाली 85 फीसदी बड़ी कंपनियों ने कहा है कि अक्टूबर से दिसंबर 2020 तिमाही के दौरान उनकी कैपेसिटी यूटिलाइजेशन पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले उसी स्तर पर या उससे ऊंचे स्तर पर थी.
एमएसएमई (MSME) के मामले में 66 फीसदी रेस्पॉन्डेंट्स (सर्वे में भाग लेने वालों) ने कहा कि उनकी कैपेसिटी ऑप्टिमल लेवल पर थी. जबकि 2019 की इसी तिमाही में ऐसा रेस्पॉन्स देने वाली कंपनियों का आंकड़ा 94 फीसदी था.
ग्राहकों के लिए महंगाई की मुश्किल
अगर छोटी कंपनियों के लिए प्रतिस्पर्धा करने में मुश्किलें जारी रहती हैं तो ग्राहकों के लिए कमोडिटी की कीमतों में वैश्विक स्तर पर होने वाले उछाल की मार सहनी पड़ सकती है.
कमोडिटी की कीमतें 2020 में निचले स्तर पर थीं. कई बड़े केंद्रीय बैंकों की अपनाई गई ढीली मौद्रिक नीतियों के चलते कमोडिटी की कीमतों में तेजी का सिलसिला बनने लगा. इसके अलावा, वैक्सीनेशन शुरू होने और 11 मार्च को अमरीका में 1.9 लाख करोड़ डॉलर के भारी–भरकम राहत पैकेज का ऐलान होने से भी इनमें तेजी का दौर बना है.
अमरीका का ट्रेड डेफिसिट महामारी के पहले के मुकाबले करीब 50 फीसदी बढ़ गया है. अगर आयात बढ़ता है तो अमरीका के व्यापार घाटे में और इजाफा होगा.
कमजोर डॉलर से भारत जैसी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के लिए ज्यादा आयात करना आसान होगा और इससे कमोडिटी की कीमतों में तेजी आएगी.
पिछले साल अप्रैल में औंधे मुंह गिर पड़ी क्रूड की कीमतें इस महीने बढ़कर 70 डॉलर प्रति बैरल तक चली गई थीं.
खाद्य महंगाई से बिगड़ रहा खेल
फरवरी में खुदरा महंगाई (Retail Inflation) बढ़कर 5.03 फीसदी पर आ गई जो कि जनवरी में 4.06 फीसदी के साथ 16 महीने के निचले स्तर पर थी.
इसकी मुख्य तौर पर वजह खाद्य महंगाई में हुई तेजी थी. खाने और पीने की चीजों का कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स में करीब 46 फीसदी हिस्सा है.
इसके अलावा, तेल की कीमतों में आए उछाल से भी महंगाई में तेजी आई है. पिछले साल फरवरी के मुकाबले इस बार फ्यूल की महंगाई दर 3.53 फीसदी बढ़ी है.
खाद्य तेल हुआ महंगा
फूड बास्केट में तेल और वसा की महंगाई 20.78 फीसदी रही है. दालों के दाम 12.54 फीसदी बढ़े हैं और मछलियां, मांस और अंडों की महंगाई करीब 11 फीसदी बढ़ी है.
चूंकि, भारत में खपत होने वाले खाद्य तेलों का ज्यादातर हिस्सा आयात होता है ऐसे में यह महंगाई आयात महंगा होने की वजह से है.
फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन (FO) का वेजिटेबल ऑयल प्राइस इंडेक्स फरवरी में 147.4 अंक पर था जो कि अप्रैल 2012 के बाद सबसे ऊंचा स्तर है. महंगे पाम, सोया, सरसों और सूरजमुखी के तेल के चलते इसमें उछाल दर्ज किया गया है.
पोल्ट्री और दूध के दाम
सप्लाई घटने से पोल्ट्री की कीमतें बढ़ी हैं. पोल्ट्री किसानों को पिछले साल कोविड की वजह से तगड़े नुकसान उठाने पड़े थे. कुछ राज्यों में बर्ड फ्लू के चलते मुर्गियों को मारना तक पड़ गया.
आश्चर्यजनक तौर पर दूध और दुग्ध उत्पादों की महंगाई फरवरी में केवल 2.59 फीसदी रही है. जबकि गर्मियों के सीजन की आवक अब दूर नहीं है. इस दौरान कीमतों में तेजी का रुझान रहता है.
दूध की कीमतों में कमी पिछले साल की दिक्कतों के चलते आई है. लॉकडाउन के चलते पिछले साल दूध के दाम कम रहे. इस दौरान दूध की सप्लाई ज्यादा रही, जबकि इसकी कीमतें कम थीं.
अब डिमांड हालांकि रिकवर हो गई है, लेकिन यह अभी भी उत्पादन से कम है. कुछ जगहों पर गाय के दूध की कीमत 18 रुपये से बढ़कर 26 रुपये प्रति लीटर हो गई है.
एफएओ का डेयरी प्राइस इंडेक्स फरवरी में 40 महीेने के रिकॉर्ड पर पहुंच गया. इसकी वजह ड्राई मिल्क पाउडर की सप्लाई को लेकर बनी हुई चिंताएं हैं.
खुदरा महंगाई फिलहाल रिजर्व बैंक के तय किए गए दायरे में है, हालांकि यह इसके उच्च स्तर पर है.
ऐसे में अगर महंगाई और बढ़ती है तो क्या आरबीआई को ब्याज दरें बढ़ानी पड़ सकती हैं? आरबीआई कह चुका है कि फ्यूल की कीमतों को नीचे लाना होगा. फिलहाल फ्यूल पर 60 फीसदी टैक्स लिया जा रहा है.
लेकिन, टैक्स से आने वाली कमाई पर दबाव होने के साथ ही अगर सरकार फ्यूल सेस और अन्य लेवी घटाती है तो उसे ज्यादा उधारी लेनी पड़ेगी. इससे ब्याज दरों पर दबाव बढ़ेगा और आर्थिक रिकवरी की राह मुश्किल होगी.
(कॉलम में व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं. लेख में दिए फैक्ट्स और विचार किसी भी तरह Money9.com के विचारों को नहीं दर्शाते.)