पेट्रोल और डीज़ल (Petrol-Diesel) की क़ीमतों को लेकर विपक्ष हमलावर हो रहा है. कांग्रेस पार्टी और दूसरी विपक्षी पार्टियां भी लगातार मोदी सरकार पर हमलावर हैं, लेकिन कमाल यह भी है कि पेट्रोल-डीजल (Petrol-Diesel) क़ीमतों को लेकर सरकार पर हमला करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ही गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर दिए गए बयान, लिखे गए ट्वीट या फिर स्मृति ईरानी के प्रदर्शन के पुराने वीडियो का ही सहारा है. मध्य प्रदेश का भोपाल हो, महाराष्ट्र का परभणी हो या फिर सबसे ज़्यादा टैक्स वसूलने वाले राज्य राजस्थान के कई शहरों में पेट्रोल की क़ीमतें 100 रुपये प्रति लीटर के पार हो जाना हो, फिर भी जनता सड़कों पर क्यों नहीं उतर रही है. इस प्रश्न का उत्तर खोजना ज़रूरी हो गया है. इस प्रश्न के उत्तर के साथ यह भी साफ़ हो जाएगा कि लोकतंत्र में भरोसेमंद, मज़बूत विपक्ष की ज़रूरत क्यों होती है.
पेट्रोल-डीजल क़ीमतों (Petrol-Diesel Price) को लेकर सरकार पर हमलावर विपक्ष की साख का संकट कितना बड़ा है, इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि विपक्ष को नरेंद्र मोदी और स्मृति ईरानी के पुराने बयान, ट्वीट दिखाकर सरकार पर हमला करना पड़ा है. आख़िर ऐसा क्या हो गया है कि दोबारा सरकार बनाने के बावजूद देश की जनता लगातार महंगे होते पेट्रोल-डीजल (Petrol-Diesel) के मुद्दे पर अपने लिए लड़ने के लिए भी विपक्ष के साथ खड़ा नहीं होना चाहती है.
कांग्रेस पार्टी उन्हीं स्मृति ईरानी के बयान और ट्वीट दिखाकर पेट्रोल-डीजल क़ीमतों (Petrol-Diesel Price) पर लड़ना चाह रही है, जिन स्मृति ईरानी के लिए गांधी परिवार ने सार्वजनिक तौर पर पूछ लिया था कि, कौन स्मृति ईरानी. अमेठी की जनता 2024 तक कहीं यह न पूछने लगे कि, कौन राहुल गांधी. दरअसल, राजनीति में जनता से जुड़े रहने का जो मूलमंत्र है, उससे ही गांधी परिवार की अगुआई वाली कांग्रेस और उनके पीछे-पीछे, बिल्ली के भाग से छींका फूटने की आस लगाए बैठे विपक्षी नेता दूर चले गए. विपक्ष अकसर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में यह धारणा मज़बूत करने की कोशिश में लगा रहता है कि प्रधानमंत्री संवेदनशील मुद्दों पर समय से बोलते नहीं हैं. बार-बार शाहीनबाग और कृषि क़ानूनों के विरोध के आंदोलन स्थल पर न जाने को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर विपक्ष तंग कसता रहा, लेकिन नागरिकता क़ानून हो या कृषि क़ानून, दोनों ही मुद्दों पर प्रधानमंत्री ने अपने समर्थक मतदाता समूह का भरोसा ज़्यादा पक्का करने में सफलता हासिल की है और इससे विपक्ष को समर्थन देने वाला मतदाता समूह कम होता गया.
अमेठी से ही जब राहुल गांधी ने राफ़ेल के मामले में चौकीदार चोर है, का झूठा नारा लगाया था और सर्वोच्च न्यायालय में माफ़ी मांगनी पड़ी थी तो उसका जनता पर कितना दुष्प्रभाव पड़ा, इसे समझने के लिए अमेठी का नतीजा देखने से सब स्पष्ट हो जाता है. राफ़ेल हो, नागरिकता क़ानून हो, चीन के साथ विवाद हो या फिर अभी कृषि क़ानून, इन मुद्दों पर विपक्ष ने झूठ की इमारत खड़ी करने की कोशिश की, लेकिन आज के समय में जनता ने झूठ की बुनियाद पर खड़ी इमारत को ध्वस्त होते बड़ी जल्दी देख लिया. उस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में इन मुद्दों पर बिंदुवार तरीक़े से विपक्ष के झूठ को उजागर करके विपक्षी नेताओं की रही-सही विश्वसनीयता भी ख़त्म कर दी.
अब महंगे पेट्रोल-डीजल (Petrol-Diesel) के मामले में भी विपक्ष विश्वसनीयता खो रहा है तो उसकी स्पष्ट वजह दिखती है. विपक्ष पेट्रोल-डीजल क़ीमतों पर मज़बूती से आंदोलन करने के बजाय नरेंद्र मोदी के पुराने बयान तलाशकर काम चला रहा है और उस पर महंगाई का भयावह चित्रण जनता के सामने पेश करने की कोशिश कर रहा है. जबकि, सच्चाई यही है कि महंगाई दरों के मामले में मोदी सरकार के पिछले पांच वर्ष हों या फिर दूसरे कार्यकाल का वायरस से अत्यंत प्रभावित वर्ष, ज़्यादातर हालात क़ाबू में रहे हैं. उस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पेट्रोल-डीजल की क़ीमतों पर बात करते हुए पहले की सरकारों पर आयात निर्भरता कम न कर पाने की असफलता को ज़िम्मेदार ठहरा दिया.
प्रधानमंत्री ने रामनाथपुरम-थूथुकुडी प्राकृतिक गैस पाइपलाइन और चेन्नई पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड, मनाली में गैसोलीन डीसल्फराइजेशन इकाई के साथ नागपट्टीनम में कावेरी बेसिन रिफाइनरी की आधारशिला रखते हुए कहाकि, क्या हमारे जैसा विविध और प्रतिभाशाली राष्ट्र ऊर्जा आयात पर इतना निर्भर हो सकता है? उन्होंने जोर देकर कहा कि हमने इन विषयों पर बहुत पहले ध्यान दिया था, हमारे मध्य वर्ग पर बोझ नहीं पड़ेगा. अब, ऊर्जा के स्वच्छ और हरित स्रोतों की दिशा में काम करना, ऊर्जा निर्भरता को कम करना हमारा सामूहिक कर्तव्य है. उन्होंने जोर देकर कहा, “हमारी सरकार मध्यम वर्ग की चिंताओं के प्रति संवेदनशील है”. उन्होंने कहाकि, हमने पांच वर्ष में तेल और गैस बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए साढ़े सात लाख करोड़ रुपये खर्च करने की योजना बनाई है और हमारी सरकार मध्यम वर्ग की चिंताओं के प्रति संवदेनशील है. उन्होंने 2019-20 में भारत की मांग को पूरा करने के लिए 85 प्रतिशत तेल और 53 प्रतिशत गैस को आयात करने का मुद्दा उठाया.
प्रधानमंत्री ने मज़बूती से कहा कि भारत ऊर्जा की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए काम कर रहा है, यह हमारी ऊर्जा आयात निर्भरता को कम कर रहा है और आयात स्रोतों में विविधता ला रहा है. इसके लिए क्षमता निर्माण किया जा रहा है. 2019-20 में, रिफाइनिंग क्षमता में भारत दुनिया में चौथे स्थान पर था. प्रधानमंत्री ने कहा कि लगभग 65.2 मिलियन टन पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात किया गया है. यह संख्या और भी अधिक बढ़ने की उम्मीद है. भारतीय तेल और गैस कंपनियों की 27 देशों में उपस्थिति के बारे में बात करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इनमें लगभग दो लाख सत्तर हजार करोड़ रुपये का निवेश है. ‘वन नेशन वन गैस ग्रिड’ के दृष्टिकोण की चर्चा करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा “हमने पांच वर्षों में तेल और गैस बुनियादी ढांचे को बनाने में साढ़े सात लाख करोड़ रुपये खर्च करने की योजना बनाई है. 407 जिलों को शामिल करके शहर के गैस वितरण नेटवर्क के विस्तार पर जोर दिया गया है.”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विपक्षी नेताओं के बात रखने में यही मूलभूत अंतर है. विपक्षी नेता नरेंद्र मोदी के ही पुराने बयान के आधार पर हमलावर हो रहे हैं जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले की स्थिति और सरकार की अभी की कोशिश का तुलनात्मक चित्र जनता के सामने रखने में सफल हो रहे हैं और विपक्ष की साख ख़त्म होने की दुष्परिणाम है कि केंद्र सरकार तेल की क़ीमत जितना कर वसूलने के बाद भी जनता को अपने साथ रखने में सफल हो जा रही है. विपक्षी दलों की जहां सरकारें हैं, उनकी तरफ़ से भी राज्यों में वैट घटाने की कोई निर्णय न होने से केंद्र सरकार यह धारणा मज़बूत करने में भी सफल हो गई है कि राज्य सरकारें भी अपने ख़ाली ख़ज़ाने को भरने के लिए पेट्रोलियम उत्पादों पर टैक्स नहीं घटा रहे हैं. विपक्ष की साख पूरी तरह से ख़त्म होने की ही दुष्परिणाम है कि, पेट्रोल-डीजल पर कर वसूली घटाने के बजाय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण सिर्फ़ इसे धर्मसंकट कहकर काम चला ले रही हैं. और, दूसरे मुद्दों पर साख खो चुके विपक्ष के साथ जनता अपने हित में भी खड़े होने को तैयार नहीं है. जबकि, पेट्रोल-डीजल तुरन्त सस्ता किया जाना चाहिए. लोकतंत्र में विपक्ष का इतना साखविहीन होना ख़तरनाक है.
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं
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