देसबंदी का एक साल: कहां पहुंचा प्रवासी मजदूरों का काफिला?

One Year of Lockdown: एक बात तो समझ लेना चाहिए कि किसी के लिए भी अपने मूल स्थान से निकलकर किसी दूसरे जगह पर काम करने का फैसला करना एक कड़ा फैसला होता है.

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देश में कितने प्रवासी मजदूर हैं? देसबंदी के दौरान (One Year of Lockdown) कितने प्रवासी मजदूरों की नौकरियां गई? ये कुछ ऐसे सवाल है जों पिछले कुछ महीनों के दौरान सरकार से लगातार पूछे गए, लेकिन जवाब नहीं मिला. कारण, आंकड़े हैं ही नहीं. अब सरकार कह रही है कि लेबर ब्यूरो, सूचना प्रसारण मंत्रालय के अधीन काम करने वाली कंपनी Broadcast Engineering Consultants India Limited (BECIL) की मदद से प्रवासी मजदूरों पर राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण शुरू करेगी. उम्मीद की जानी चाहिए कि अगले कुछ सालों में प्रवासी मजदूरों की साफ तस्वीर सामने आ सकेगी.

सच तो यह है कि अगर महामारी की वजह से देसबंदी ना होती तो शायद प्रवासी मजदूरों को लेकर कोई चर्चा नहीं हो रही होती. हां, एक आंकड़ा पहले भी रखा जाता था, अब भी रखा जा रहा है और वो ये कि कुल श्रमशक्ति में प्रवासी मजदूरों की हिस्सेदारी 20 फीसदी रहने का अनुमान है. विभिन्न एजेंसियों के मुताबिक, देश में श्रमिकों की संख्या 47-50 करोड़ के बीच है. इस हिसाब से प्रवासी मजदूरों की गितनी 10 करोड़ के बीच रखी जा सकती है.

कौन हैं प्रवासी मजदूर?

Lलेकिन, हकीकत यही है कि हर किसी को अपने मूल जगह पर ही काम करने का मौका मिल जाए, यह संभव नहीं हो पाता. पूर्व के राज्यों जैसे बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के साथ-साथ राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के साथ-साथ बुंदेलखंड इलाकों से भी बड़ी संख्या में कामगार हर साल मुंबई, दिल्ली, कोलकाता और बंगलुरु के अलावा अब केरल के प्रमुख शहरों में जीविका की तलाश में जाते हैं. केरल के कई शहरो में तो बस और स्थानीय परिवहन के साधनों पर हिंदी में जानकारी दी जाने लगी है, ताकि प्रवासी कामगारों को कोई परेशानी नहीं हो.

देसबंदी के दौरान (One Year of Lockdown) वैसे तो सभी क्षेत्रों पर असर पड़ा, लेकिन कुछ खास क्षेत्रों जैसे निर्माण क्षेत्र, होटल-रेस्त्रां वगैरह पर खासी मार पड़ी. इसी के साथ शुरू हुई प्रवासी मजदूरों की घर वापसी. याद कीजिए वो तमाम तस्वीरें. सैकड़ों किलोमीटर का सफर पैदल नापने की मजबूरी. इसी के साथ यह सवाल भी उठने लगा कि कितने प्रवासी मजदूर घर वापस लौटे?

राज्य सरकारों व केंद्र शासित प्रदेशों से मिली जानकारी के आधार पर केंद्र सरकार ने लोकसभा में जानकारी दी कि 1 करोड़ 14 लाख 30 हजार 968 प्रवासी मजदूर अपने-अपने गृह राज्य वापस लौटे. इस मामले में उत्तर प्रदेश 32 लाख से ज्यादा की संख्या के साथ पहले स्थान पर, बिहार 15 लाख के करीब के साथ दूसरे स्थान पर, पश्चिम बंगाल पौने चौदह लाख से ज्यादा कुछ ज्यादा के साथ तीसरे, राजस्थान 13 लाख से कुछ ज्यादा के साथ चौथे और ओडिशा साढ़े आठ लाख से कुछ ज्यादा के साथ पांचवे स्थान पर रहा. अहम बात ये है कि प्रवासी मजदूरों की घर वापसी की सूची में देश के तमाम 36 राज्य समेत केंद्र शासित प्रदेश के नाम दर्ज है.

मतलब साफ है कि देश भर में जितने प्रवासी मजदूर होने का अनुमान है, उसमें से 10-15 फीसदी के ही देसबंदी के दौरान अपने घर वापस लौटने का रिकॉर्ड उपलब्ध है. तो क्या बाकी जहां थे, वहीं रह गए? या फिर, उनकी वापसी दर्ज ही नहीं की गई? ऐसे सवालों के जवाब किसी भी सरकार के पास नहीं है ना तो राज्य और ना ही केंद्र सरकार के पास और यही एक बड़ी वजह है प्रवासी मजदूरों के लिए स्पष्ट नीति नहीं होने की.

याद होगा कि कुछ राज्यों मसलन, उतर प्रदेश ने अपने-अपने घर लोटे कामगारों के लिए विशेष प्रशिक्षिण योजना और फिर उद्यमिता योजना की शुरुआत की. दावा किया गया कि इसमें काफी लोगों को फायदा भी हुआ. अगर ऐसा है तो फिर क्यों उत्तर प्रदेश ही नहीं, कई दूसरे राज्यों से भी प्रवासी मजदूरों ने वापस महानगरों का रुख किया है? यकिन नहीं हो तो दिल्ली या मुंबई के प्रमुख रेलवे स्टेशन पर एक दिन गुजार लीजिए, अंदाजा लग जाएगा कि लोग किस तरह से वापस लौट रहे हैं.

अब आप इस पर अफसोस जताएं या हैरानी, लेकिन हकीकत यही है कि श्रम के मामले में स्पष्ट आंकड़ों का अभाव है, जिससे किसी खास समय पर सही-सही अंदाजा लगाना आसान नहीं होता कि कितने लोगों को रोजगार मिला हुआ है और कितने लोग काम के योग्य होते भी बेरोजगार है. वो तो भला हो, Centre for Monitoring Indian Economy (CMIE) नाम की एक निजी संस्था का जिससे हमें नियमित तौर पर रोजगार या बेरोजगार के मामले मे कुछ आंकड़ मिल जाते है. अब जब पूरे श्रम शक्ति के मामले में आंकड़ों की यह स्थिति है तो प्रवासी मजदूर के मामले में तो ज्यादा कुछ कहा ही नहीं जा सकता.

अब उम्मीद की जानी चाहिए कि नई पहल के बाद प्रवासी मजदूरो की सही-सही स्थिति का अंदाजा लग सकेगा. लेकिन, ध्यान रहे कि नतीजे आने में लगेगा, तब तक स्थिति में काफी कुछ बदलाव देखने को मिल सकता है. फिर भी अच्छी बात है कि शुरुआत हो चुकी है. दूसरी ओर एक पोर्टल का भी इंतजाम किया गया है जहां प्रवासी मजदूरों का रजिस्ट्रेशन हो सकता है. इन सब के आधार पर यह भी उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले समय में प्रवासी मजदूरों को लेकर एक स्पष्ट नीति आएगी. लेकिन, इसके साथ-साथ इस बात पर भी ध्यान देना कि लोग काम की तलाश में पलायन करे ही नहीं.

Published - March 24, 2021, 01:44 IST