नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) का 24 फरवरी को टेक्निकल ग्लिच (Technical Glitch) की वजह से कुछ घंटों के लिए ट्रेंडिंग रोकने का फैसला प्लेटफॉर्म पर एक्टिव ट्रेडर्स और निवेशकों के लिए एक आघात जैसा रहा. एक्सचेंज पर समस्या पर सही कदम नहीं उठाने के लिए उंगलियां उठ रही हैं और ट्रेडिंग रोकने का NSE का फैसला जरूरत से ज्यादा लगा जिससे वो ट्रेडर्स चिंता में पड़ गए जिनकी पोजिशन ओपन थी .
NSE को अब इस रुकावट के पीछे की वजह का विस्तृत विश्लेषण करना होगा. मार्केट रेगुलेटर SEBI ने भी एक्सचेंज को ट्रेडिंग रोकने की मूल वजह के एनालिसिस करने को कहा है और साथ ही कहा है कि ये भी बताएं कि क्यों ट्रेडिंग को नियम के मुताबिक डिजास्टर रिकवरी साइट पर ट्रांसफर नहीं किया गया.
इससे कई सवाल खड़े होते हैं जिनका जवाब जरूरी है. पहला, क्या ट्रेडिंग को रोकने से बचा जा सकता था? NSE और BSE एक्सचेंजों पर निवेशकों का बड़ा भरोसा है, उन्हें भी एक्सचेंजों को बेनिफिट ऑफ डाउट देना चाहिए. जब दिक्कत का पता चला तो शायद ट्रेड रोकना ही सबसे सही फैसला रहा हो ताकि कोई और बड़ी कठिनाई ना आ जाए. जैसा कि SEBI ने खुद बताया है कि NSE ने ये फैसला इंटरनल असेसमेंट के बाद उस समय की दिक्कतों की जटिलता देखते हुए लिया. निवेशकों को ये समझना होगा कि स्थिति के मुताबिक NSE ने सभी विकल्पों पर सोचने के बाद ही सभी के हित के लिए ये फैसला लिया होगा. एक्सचेंज के लिए ट्रेडिंग सेशन के बीच में कारोबार रोकना आसान कदम नहीं है क्योंकि इससे निवेशकों को काफी तकलीफ होती है.
दूसरी बात ये है कि क्या ट्रेडर्स के पास NSE के बाहर अपनी पोजिशन को स्क्वेयर ऑफ करने का विकल्प था? जैसा कि SEBI ने कहा है कि BSE पर ट्रेडिंग वॉल्यूम में बढ़त हुई जहां 24 फरवरी को हर दिन के (30 दिन का औसत) 5,200 करोड़ रुपये के ट्रेडिंग वॉल्यूम की तुलना में 40,600 करोड़ रुपये की ट्रेडिंग हुई. SEBI के मुताबिक ये रेगुलेटर के दोनों एक्सचेंज के बीच इंटरऑपरेबिलिटी फ्रेमवर्क की वजह से ही ये संभव हुआ. इस मोर्चे पर भी सिस्टम निवेशकों के हित में ही रहा ताकि उन्हें ग्लिच की वजह से कोई घाटा ना हो.
तीसरा ये कि क्या ग्लोबल एक्सचेंजों के बीच ये अप्रत्याशित स्थिति रही? नहीं. अमेरिका और जापान जैसे एडवांस देशों में भी टेक्निकल ग्लिच (Technical Glitch) की वजह से ट्रेडिंग रोकनी पड़ी है. अक्टूबर 2020 में जापान के स्टॉक एक्सचेंजों पर टेक्निकल ग्लिच (Technical Glitch) की वजह से ट्रेडिंग रुकी थी. जुलाई 2015 में न्यू यॉर्क स्टॉक एक्सचेंज पर ट्रेडिंग टेक्निकल दिक्कतों से चार घंटों के लिए रुकी थी. ऐसी ही दिक्कतें शंघाई, न्यूजीलैंड और सिंगापुर में भी दिखी हैं जिससे ट्रेडिंग पर असर पड़ा है.
फिलहाल रिपोर्ट की जानकारी का इंतजार करना होगा, ऊपरी तौर पर ऐसा लगता है कि NSE पर सही तरह से कदम ना उठाने का आरोप लगाना सही नहीं होगा. ग्लिच टेलीकॉम कंपनियों के फेलियर से आया और NSE पर सीधे तौर पर इसका आरोप नहीं लगा सकते. हालांकि जवाबदेही जरूर तय होनी चाहिए अगर एक्सचेंज की तरफ से कमी थी. NSE को भी भविष्य में ऐसी आपदा के समय में ट्रेडिंग के विकल्पों की तलाश करनी होगी. NSE नई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने और अपने प्लेटफॉर्म पर ट्रेडिंग में उसे अपनाने में हमेशा आगे रहा है. हर दिन लाखों ट्रेड बिना किसी अड़चन के होते हैं और एक्सचेंज ने अपने 30 साल के इतिहास में कई ट्रेडर्स को वेल्थ बनाने का मौका दिया है. इन्वेस्टिंग कम्यूनिटी को एक्सचेंज को अपने वेल्थ क्रिएशन के सफर में पार्टनर के तौर पर देखना चाहिए. NSE के लिए वो ऑफिस में एक खराब दिन जैसा ही था. इससे जरूर प्लेटफॉर्म को अपग्रेड करने में मदद मिलेगी और डिजास्टर रिकवरी सिस्टम को सुधारने में मदद मिलेगी दिससे निवेशकों को भविष्य में फायदा ही होगा.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, कॉलम में व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं. लेख में दिए फैक्ट्स और विचार किसी भी तरह Money9.com के विचारों को नहीं दर्शाते.)
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