Fiscal Policy: बजट में दिखी फिस्कल स्थिति पर असाधारण सफाई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ही निर्देश से आई.
बजट से पहले जनवरी में हुई समीक्षा बैठक में, मोदी ने वित्त मंत्री की टीम को कहा था कि उन्हें साफ-साफ जानकारी देनी चाहिए और सरकार की कमाई और खर्च में गैप को छिपाने की पुरानी परंपरा से बचना चाहिए.
ऐसा कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री ने अधिकारियों को खुलकर पूरी पारदर्शिता के साथ सभी जानकारी देश के सामने रखने की बात कही. वित्त मंत्रालय को भेजे ऑनलाइन संदेश में मोदी ने कहा, “देश के सामने जो सब बातें हैं उनको ट्रांसपेरेंसी के साथ रख दें.”
वित्त मंत्रालय के एक दिग्गज अधिकारी ने कहा, “प्रधानमंत्री के निर्देश के बाद सभी मंत्रालय में सभी संदेह खत्म हो गए.”
बजट से जुड़ी गोपनीयता को नुकसान पहुंचाए बिना एक्सपर्ट्स से सुझाव लिए गए.
वित्त मंत्रालय के अधिकारी ने कहा, “अंततः प्रधानमंत्री के कथन से नॉर्थ ब्लॉक में लोगों को सुकून मिला जिससे बजट टीम को हौंसला मिला. ये तय किया गया कि फिस्कल आंकड़े जैसे हैं उन्हें हम उसी तरह रखेंगे.” या यूं कहें कि सेंटिमेंट ये था – “देखी जाएगी – कर देते हैं.”
फिस्कल ग्लासनोस्त क्यों जरूरी है और इससे क्या फर्क पड़ता है.
नागरिकों के लिए पूरे डिस्क्लोजर का मतल बै कि उन्हें सरकार के खर्च का सच पता है. वहीं, इससे ये भी उजागर होता है कि वेल्फेयर पर खर्च और सब्सिडी का कितना हिस्सा टैक्सपेयर के फंड से आता है.
इसका एक और पहलू है – वो है पॉलिसी (Policy) बनाने में सही डाटा की अहमियत. एक उदाहरण के जरिए समझाते हैं. 2007 में मैंने एक खबर पर साथ में काम किया जिससे ये पता चला कि महंगाई डाटा में लगातार ऐसा सामानों का भाव जोड़ा जा रहा था जिनकी कीमत को सरकारी डाटाबेस में कई हफ्तों से अपडेट ही नहीं किया जा रहा था.
इससे महंगाई के आंकड़ों में गलतियां होती थी – जो और कुछ नहीं बस गरीबों के लिए एक टैक्स जैसा है और ऐसी ब्याज दरें रही जो जमीनी हकीकत से काफी दूर थीं. कई महीनों बाद 2008 में ग्लोबल फाइनेंशियल दबाव से भारतीय इकोनॉमी की इस कमजोर कड़ी उजागर हुई.
सही इकोनॉमिक डाटा से पॉलिसी (Policy) पर भरोसा बढ़ता है और सभी इकोनॉमिक एजेंट्स को ये एक संदेश जाता है कि सरकार मुद्दे की बात कर रही है.
मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस ने 1 फरवरी को पेश हुए बजट के बाद एक रिपोर्ट में कहा है कि बजट में ग्रोथ के लिए कदम उठाए गए हैं जिससे छोटी अवधि में सभी सेक्टर्स की क्रेडिट क्वालिटी में सुधार होगा – लेकिन फिस्कल कंसोलिडेशन के दम पर (जोर मेरी तरफ से है).
बजट ने मौजूदा वित्तीय वर्ष के लिए वित्तीय घाटे का अनुमान महामारी से पहले के 3.5 फीसदी से बढ़ाकर GDP का 9.5 फीसदी कर दिया है. अगले साल के लिए सरकार ने वित्तीय घाटे का लक्ष्य GDP का 6.8 फीसदी रखा है.
मूडीज के वाइस-प्रेसिडेंट और सीनियर क्रेडिट ऑफिसर विलियम फॉस्टर का कहना है, “वित्तीय घाटे का अनुमान भले ही उम्मीद से ज्यादा हो, ये बजट की विश्वसनीय अनुमानों और पिछले बजट की तुलना में ज्यादा पारदर्शीता दिखाता है.
मोदी सरकार ने सिर्फ मौजूदा वित्त वर्ष के फिस्कल गणित को लेकर सफाई लाई है बल्कि ये भी साफ किया है कि सरकार मध्यम-अवधि के फिस्कल कंसोलिडेशन में धीमी गति से बढ़ेगी और 2025 तक ही GDP के 4.5 फीसदी वित्तीय घाटे का लक्ष्य रखेगी.
मूडीज के मुताबिक इसके लिए 4 साल तक हर साल घाटे को GDP का 0.5 फीसदी कम करना होगा.
आम तौर पर, ऐसे वित्तीय आंकड़े मार्केट के लिए एक शॉक की तरह होते और भारत के लिए वैश्विक संदर्भ में बड़ी क्रेडिट चुनौती के रूप में उभरकर आते. बाजार और रेटिंग एजेंसियों ने इस कदम को प्रगति के रूप में देखा है ये दर्शाता है कि फोकस भारत की इकोनॉमिक ग्रोथ पर है.
मोदी ने दशकों के झूठे वित्तीय आंकड़ों पर पारदर्शिता और पूरे डिस्क्लोजर का रास्ता चुना है, इससे ये भी पता चलता है कि इस नए रास्ते में आगे बढ़ते रहने के लिए तेज ग्रोथ की जरूरत है. ये बताता है कि पहले की तरह इकोनॉमिक ग्रोथ में झिझक से भविष्य में आगे नहीं बढ़ा जा सकता. इसका मतलब ये भी है कुछ किसानों के विरोध से ज्यादा मोदी सरकार के लिए भारत को तेज इकोनॉमिक ग्रोथ के रास्ते पर लौटाना ज्यादा बड़ी चुनौती है.
और यही वो बिंदू है जिससे केंद्र सरकार के फाइनेंशियल गणित में आया सबसे बड़ा सुधार इकोनॉमी के लिए बड़ा पॉजिटिव लहर साबित होने की संभावना रखता है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
(Disclaimer: कॉलम में व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं. लेख में दिए फैक्ट्स और विचार किसी भी तरह Money9.com के विचारों को नहीं दर्शाते.)