लॉकडाउन उनके लिए जिनकी पेंशन आती है, जिन्हें आजीविका चाहिए उनके लिए नहीं

Lockdown: फरवरी 2020-21 के बीच सैलरी पाने वालों में 38 लाख की नौकरी गई, 42 लाख दिहाड़ी रोजगार गए और बिजनेस पर आश्रित 30 लाख लोगों की.

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Lockdown: कोरोना संक्रमण के दूसरे लहर के साथ ही कई राज्यों में नाइट कर्फ्यू लगाया गया है, हालांकि ये संक्रमण की रफ्तार पर कितना कारगर है इसपर सवालिया निशान है. और प्रतिबंध लगने का मतलब है कि आर्थिक गतिविधियों पर असर और पिछली बार के लॉकडाउन से हुए आजीविका को नुकसान में और बढ़ोतरी. कोविड-19 के प्रोटोकॉल का पालन करना बेहद जरूरी है – मास्क को अनिवार्य करना, सामाजिक दूरी बनाए रखना, भीड़-भाड़ इलाके से दूर रहना, हाथ धोना, तेजी से टीकाकरण और तुरंत मेडिकल सुविधा मिलना – ना कि लोगों को घरों में जबरन बंद कर देना.

अमेरिकी थिंक टैंक प्यू रिसर्च सेंटर के मुताबिक साल 2020 में महामारी से आई आर्थिक सुस्ती में भारत का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है. उनके मुताबिक साल 2020 में 3.2 करोड़ लोग जो मिडिकल इनकम ग्रुप में शामिल हो सकते थे वे नहीं हो पाए. वैश्विक स्तर पर कुल 5.4 करोड़ ऐसे लोग थे जो महामारी के कारण मिडिल इनकम ग्रुप में नहीं जुड़ पाए. यानी ऐसे लोगों की 60 फीसदी आबादी भारत में ही है.

अगर भारत की इकोनॉमी पर महामारी की चोट नहीं लगी होती तो तो तकरीबन 9.9 करोड़ लोग मिडिल-इनकम स्टेटस पा चुके होते. लेकिन आर्थिक सुस्ती की वजह से ये आंकड़ा घटकर एक तिहायी रह गई. वहीं 7.5 करोड़ लोग गरीबी की सूची में जुड़े. भारत के लिए जनवरी 2020-21 के लिए वर्ल्ड बैंक के आर्थिक अनुमान के मुताबिक 13.4 करोड़ लोग गरीबों की सूची में आते हैं जबकि पहले ये 5.9 करोड़ थे.

मिडिल इनकम कैटेगरी में शामिल होने के लिए पर्चेजिंग पावर पैरिटी के हिसाब से व्यक्ति का प्रति दिन खर्च 10.01 डॉलर से 20 डॉलर के बीच होना चाहिए. वर्ल्ड बैंक पर्चेजिंग पावर पैरिटी में अलग-अलग देशों की आर्थिक स्थिति के मुताबिक वहां रहने के खर्च के मुताबिक निकालता है. 74.78 रुपये के एक्सचेंज के भाव पर मानें तो भारत की पर्चेजिंग पावर पैरिटी प्रति डॉलर 21.28 रुपये पर आती है. तो इस हिसाब से मिडिल इनकम में शामिल होने के लिए प्रति व्यक्ति हर दिन 213 रुपये खर्च होना चाहिए और चार लोगों के परिवार में ये खर्च 25,560 रुपये प्रति माह होना होगा. अगर कोई व्यक्ति PPP आधार पर 2 डॉलर यानी 43 रुपये से कम खर्च करता है तो उसे गरीब माना जाता है.

एक और रिपोर्ट, जिसे अभी आधिकारिक तौर पर जारी नहीं किया गया है, भारतीय परिवारों की आर्थिक अस्थिरता ब्यान करती है. पिछले साल सितंबर में इंडियन एक्सप्रेस और टाइम्स ऑफ इंडिया ने एक बड़े आर्थिक-सामाजिक सर्वे (https://bit.ly/3mw87Ei) का खुलासा किया था जिसे दिल्ली सरकार ने अपने अधिकारियों के जरिए किया था. वे 33.41 लाख घरों में से 20.05 लाख घरों तक गए और तकरीबन 1.7 करोड़ परिवारों में से 1.02 करोड़ लोगों तक पहुंचे. सर्वे ये दिखाता है कि ग्लबोल परिभाषा के तहत दिल्ली के अधिकतर लोग मिडिल-इनकम ग्रुप में नहीं शामिल होते क्योंकि 42 फीसदी परिवारों ने माना कि उनका मासिक खर्च 10,000 या इससे कम है. सिर्फ 8.44 फीसदी परिवारों का खर्च 25,000 से 50,000 रुपये प्रति माह के बीच रहा.

अन्य सभी राज्यों में स्थिति और खराब होगी. दिल्ली में प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है. साल 2020-21 के लिए ये 3,54,000 रुपये का अनुमान है.

मुंबई की रिसर्च संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरींग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) का कहना है कि फरवरी 2020 से फरवरी 2021 के बीच 1.1 करोड़ गैर-कृषि क्षेत्र की नौकरियां गई हैं. सैलरी पाने वालों में 38 लाख की नौकरी गई, 42 लाख दिहाड़ी रोजगार गए और बिजनेस पर आश्रित 30 लाख लोगों की. इनमें से कुछ को कृषि क्षेत्र में रोजगार मिला लेकिन प्रोडक्टिविटी में कोई बढ़त नहीं हुई. फरवरी में 39.9 करोड़ के पास नौकरी थी जबकि साल 2020 की फरवरी में 40.6 करोड़ के पास नौकरियां थीं. इस लिहाज से 70 लाख की नौकरी गई. CMIE 4 महीनों के साइकल में रोजाना सर्वे करता है.

CMIE के MD और CEO महेश व्यास ने वेबसाइट पर लिखा है कि ना सिर्फ रोजगार में कमी आई बल्कि जो लोग अब भी नौकरी में हैं उनकी स्थिति भी आर्थिक या स्वास्थ्य तौर पर बेहतर नहीं है.

FADA, फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबिल डीलर्स एसोसिएशन के मुताबिक गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन अब भी कोरोना के पहले के दौर जितनी नहीं हुई. ये आंकड़ा बतलाता है कि ग्राहकों में खरीदारी और आर्थिक गतिविधियां कैसी हैं. मई 2020 से मार्च के दौरान टू-व्हीलर गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन पिछले साल का 71 फीसदी था तो वहीं पैसेंजर गाड़ियों का 91 फीसदी और ट्रकों का 53 फीसदी. सर्विसेस इंडस्ट्री के लोग भी सामान्य स्थिति से दूर हैं. घरेलू एयरलाइंस के जरिए जनवरी में 77 लाख लोगों ने यात्रा की जबकि पिछले साल जनवरी में ये 128 लाख था – यानी 40 फीसदी की गिरावट. होटल और रेस्त्रां अब भी नुकसान में हैं. पिछले साल के लॉकडाउन (Lockdown) ने सिर्फ कोरोना मामलों की बढ़त को टाला. बल्कि इससे देश के बाकी इलाकों में वायरस का संक्रमण फैला क्योंकि प्रवासी मजदूर शहर छोड़कर अपने गांव लौटे. सिर्फ पेंशन वालों के लिए ही लॉकडाउन है. बाकियों के लिए ये आर्थिक तौर पर चोट पहुंचाने जैसा है.

Disclaimer: लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. कॉलम में व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं. लेख में दिए फैक्ट्स और विचार किसी भी तरह Money9.com के विचारों को नहीं दर्शाते.

Published - April 10, 2021, 01:22 IST