कोविड की दूसरी लहर एक बड़ी तबाही लेकर आई है. बड़ी तादाद में लोगों की मौत हो रही है, अस्पतालों के बाहर मरीजों की कतारें हैं, ऑक्सीजन की कमी है और हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर लचर साबित हो रहा है. हालांकि, इस पूरे निराशाजनक माहौल में भी उम्मीद की हल्की किरण दिखाई दे रही है. कोवीशील्ड और कोवैक्सिन कारगर साबित हो रही हैं.
कोवैक्सीन की दोनों डोज लगवाने वालों के पॉजिटिव होने की दर महज 0.04 फीसदी है, जबकि कोवीशील्ड के मामले में यह 0.03 फीसदी है.
राज्य सरकारें ऐलान कर रही हैं कि वे सरकारी अस्पतालों में वैक्सीन के लिए फंडिंग जारी रखेंगी. इससे लाखों लोगों को राहत मिलेगी. प्रतिस्पर्धी राजनीति और एक कल्याणकारी राज्य की सोच को इसकी वजह माना जा सकता है. समाज के हाशिए पर मौजूद तबके को सुरक्षा देना बेहद जरूरी है.
खासतौर पर ऐसे वक्त पर जबकि वैक्सीन बनाने वाली कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ने ऐलान किया है कि वह राज्य सरकारों को 400 रुपये और प्राइवेट सेक्टर को 600 रुपये में वैक्सीन मुहैया कराएगी. अगर किसी परिवार में चार लोगों को वैक्सीन लगनी है तो उन्हें कम से कम 1,600 रुपये देने पड़ेंगे. केंद्र सरकार को ये जिम्मेदारी निभानी होगी कि वह उत्पादन में तेजी और आयात बढ़ाकर देश में पर्याप्त वैक्सीन उपलब्ध कराए.
कोविड की दूसरी लहर के बावजूद भारत में मृत्यु दर में इजाफा नहीं हुआ है. पिछले हफ्ते यह 1.23 फीसदी थी, जबकि इस हफ्ते ये 1.16 फीसदी रही है. भारत में रिकवरी रेट 84.46 फीसदी है जो कि अमरीका की 77.2 फीसदी से ज्यादा है, हालांकि ब्राजील की 89.5 फीसदी दर से ये कम है.
हालांकि, मौजूदा वक्त में देश लापरवाही बिलकुल बर्दाश्त नहीं कर सकता है, लेकिन पैनिक की भी शायद कोई जरूरत नहीं है. हम एक महामारी के दौर से गुजर रहे हैं और ऐसे में डर और हड़बड़ाहट से हालात और खराब हो सकते हैं.
इसकी बजाय हमें वैक्सीन से हिचकिचाहट से ऊपर उठना चाहिए और सेफ्टी प्रोटोकॉल का पालन करते हुए इसे लगवाने के लिए आगे आना चाहिए.