दिल्ली की सीमा पर तीन तरफ़ सिंघु, टिकरी और ग़ाज़ीपुर पर कृषि कानूनों (Agriculture laws) के विरोध में किसान संगठन बैठे हुए हैं और फ़िलहाल कोई रास्ता निकलता नहीं दिख रहा है. सरकार और किसानों (Farmers) के नाम आंदोलन कर रहे संगठनों के बीच में वार्ता भी पूरी तरह से ठप पड़ गयी है. किसानों के नाम पर संगठन चला रहे नेताओं ने अब दिल्ली सीमाओं पर स्थाई प्रदर्शन के साथ रणनीति में बदलाव करते हुए देश के अलग-अलग हिस्सों में किसान पंचायत, बंद और प्रदर्शन के ज़रिए सरकार के ख़िलाफ़ माहौल बनाना शुरू किया है, लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार कृषि क़ानूनों को लेकर ज़्यादा दृढ़ होती जा रही है.
चुनावी सभाओं से लेकर अलग-अलग कार्यक्रमों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों को आधुनिक कृषि व्यवस्था से जोड़कर उनकी आमदनी दोगुना करने के सरकार के लक्ष्य को बार-बार दोहरा रहे हैं, लेकिन बड़ा प्रश्न यही है कि आख़िर किसानों को यह बात समझाने में सरकार कैसे कामयाब हो पाएगी, जब किसानों के नाम पर संगठन चला रहे नेता गांव-गांव जाकर किसानों को बता रहे हैं कि आधुनिक कृषि क़ानून पारंपरिक खेती करने वाले किसानों की बर्बादी का क़ानून हैं. इस प्रश्न का उत्तर छिपा है, दो बजट पूर्व वित्त मंत्री के तौर पर किया गया निर्मला सीतारमण का वह ऐलान जिसमें उन्होंने दस हज़ार एफ़पीओ बनाने का लक्ष्य तय किया था. यह लक्ष्य पांच वर्षों में प्राप्त किया जाना था.
2019 के बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने यह एलान किया था और इसके लिए 6000 करोड़ रुपये से ज़्यादा का प्रावधान किया गया था. पिछला पूरा वर्ष चाइनीज़ वायर का शिकार हो गया था और सरकार ने सोचा था कि आधुनिक कृषि क़ानूनों के लागू होने के साथ छोटे किसान एकजुट होकर कृषक उत्पादक संगठन बनाएँगे और उसके ज़रिये कृषि क़ानूनों का लाभ उठाकर अपनी आमदनी दोगुना करने के लक्ष्य की तरफ़ बढ़ सकेंगे, लेकिन कृषि क़ानूनों के विरोध से सरकार की योजना धरी की धरी रह गयी, लेकिन अब सरकार उसी योजना को लागू करके किसानों के नाम पर राजनीति करने वाले संगठनों के सामने अपनी उपज की बेहतरी और उसकी बिक्री करके बेहतर भाव लेने वाले किसान संगठनों को खड़ा करना चाहती है.
एक अप्रैल से शुरू हुए इस वित्तीय वर्ष में नरेंद्र मोदी सरकार 2500 किसान उत्पादक संगठनों को तैयार करने के लक्ष्य पर काम कर रही है. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने नये कृषि उत्पादक संगठनों को प्रोत्साहित करने के लिए संबंधित विभागों की बैठक में देश के 6600 विकासखंडों में कम से कम एक किसान उत्पादक संगठन तैयार करने का लक्ष्य रखा है. इसके ज़रिये सरकार आधुनिक कृषि क़ानूनों से लाभ पाने वाले किसानों की एक ऐसी फ़ौज तैयार करना चाहती है जो व्यवहारिक तौर पर उदाहरण के साथ कृषि क़ानूनों से मिलने वाले लाभ के बारे में लोगों को बता सके, साथ ही किसानों के नाम पर चल रहे संगठनों के कृषि क़ानूनों के विरोध की हवा भी निकाल सकें.
नरेंद्र मोदी ने सरकार में आने के साथ ही खेती पर विशेष ध्यान दिया और प्रोफ़ेसर एमएस स्वामीनाथन की अगुआई में बने राष्ट्रीय कृषि आयोग की सिफ़ारिशों को चरणबद्ध तरीक़े से लागू किया. जिसमें अच्छे बीज, सिंचाई की सुविधा, समय पर किसान को रक़म, बड़ा बाज़ार के साथ किसान को पुराने मंडी क़ानूनों से मुक्ति या कहें कि विकल्प देने की बात शामिल थी. राष्ट्रीय कृषि बाज़ार योजना के जरिये देशभर की मंडियों को इलेक्ट्रॉनिक तरीक़े से जोड़ना इसका बेहद महत्वपूर्ण पड़ाव था. इस बुनियाद ढाँचे को तैयार करने के बाद ही सरकार ने कृषि क़ानूनों को लागू करने का निर्णय लिया और देश भर में इसके पक्ष में किसान दिख भी रहे थे, लेकिन पंजाब में बड़े किसानों और आढ़तियों से शुरू हुए आंदोलन में हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसान यूनियन से जुड़े किसान भी शामिल हो गए.
दिल्ली की सीमाओं पर जम गये किसानों से सरकार ने ग्यारह दौर की वार्ता करके रास्ता निकालने का प्रयास किया, लेकिन किसानों के नाम चल रहे संगठनों के साथ अकाली दल, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने राजनीतिक लाभ देखकर उनके आंदोलन को मज़बूती देकर अपनी ज़मीन तलाशने की कोशिश शुरू कर दी. इससे वार्ता के ज़रिये रास्ता निकलने की उम्मीद धूमिल होने लगी और जब हरियाणा सहित देश के दूसरे हिस्सों में किसान संगठन राजनीतिक तौर पर भारतीय जनता पार्टी को नुक़सान पहुँचाने की कोशिश करते दिखे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुंद मोर्चा सँभाल लिया है और साथ किसान उत्पादक संगठनों के किसान नेताओं के ज़रिये किसान संगठनों के नेताओं को जवाब देने की योजना पर मज़बूती से आगे बढ़ रही है.
आधुनिक कृषि क़ानूनों के साथ आगे बढ़ने वाले किसान उत्पादक संगठनों को सरकार कई तरह से मदद दे रही है. तीन वर्षों तक 18 लाख रुपये की मदद के साथ, 2 करोड़ रुपये तक बिना किसी संपत्ति को गिरवी रखे रक़म भी मिल जाएगी. मैदानी क्षेत्रों में 300 और पूर्वोत्तर में 100 सदस्यों के साथ बने कृषक उत्पादक संगठनों को सरकारी योजना का लाभ मिल जाएगा. सरकार की तरफ़ से एफ़पीओ के किसानों को प्रशिक्षित भी किया जाएगा, जिससे किसान अपने हित के बारे में जान सकें और समूह में कैसे लाभ लिया जा सकता है और अपनी उपज की क़ीमत ख़ुद तय की जा सकती है, उसे अच्छे से समझ सकें.
किसान संगठन जहां किसानों को कृषि क़ानूनों की कमियों के बारे में बताने के लिए गांव-गांव जा रहे हैं, वहीं सरकार इन किसान उत्पादक संगठनों के ज़रिये देश के हर गाँव तक कृषि क़ानूनों की अच्छाइयाँ लेकर जाने की कोशिश कर रही है. किसानों के हक की लड़ाई लड़ने का दावा सरकार भी कर रही है और किसान संगठन के नेता भी. अब किसान संगठन के नेताओं के सामने किसान उत्पादक संगठनों के नेता होंगे और उन्हें सामूहिक तौर पर आधुनिक कृषि व्यवस्था से लाभ मिलने लगा तो किसानों के नाम पर राजनीति करने वाले किसान नेताओं की मुश्किल बढ़ने वाली है.
Disclaimer: लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. कॉलम में व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं. लेख में दिए फैक्ट्स और विचार किसी भी तरह Money9.com के विचारों को नहीं दर्शाते.