हरियाणा के जींद में रहने वाले नीरज ढांडा ने जब मैकेनिकल इंजीनियरिंग की अपनी पढ़ाई समाप्त की, तो एक बात उनके मन में बहुत साफ थी कि उन्हें किसी कंपनी के दरवाजे पर अपनी उम्मीदवारी लेकर लाइन में खड़े नहीं होना है. उन्होंने अपनी आजीविका के लिए कुछ और ही सपने पाल रखे थे और उन सपनों को साकार करने के लिए नीरज ने अपनी 6 एकड़ की पुश्तैनी जमीन का रुख किया. आज खेती की शुरुआत के करीब 7-8 साल बाद नीरज ढांडा 35 एकड़ अतिरिक्त जमीन लीज पर लेकर काम कर रहे हैं और उनकी महीने की कमाई छह नहीं, बल्कि सात अंकों में पहुंच रही है. इतना ही नहीं, नीरज ने अपने साथ 4 और लोगों को सीधे तौर पर रोजगार दिया है, जबकि अप्रत्यक्ष तौर पर दर्जनों लोग उनके इस कृषि कारोबार से रोजगार पा रहे हैं.
आमतौर पर कृषि और रोजगार को एक-दूसरे से बिलकुल अलग माना जाता है और सामान्य समझ यही है कि इनमें से एक को पकड़ने के लिए दूसरे को छोड़ना एक अनिवार्य शर्त है. लेकिन धीरे-धीरे बदलते समय के साथ जैसे-जैसे किसानों में जागरूकता और खेती में तकनीक के अधिक से अधिक इस्तेमाल की रुचि बढ़ रही है, यह समझ भी बदलने लगी है. दरअसल पिछले कुछ वर्षों में स्वरोजगार और कारोबार के लिए कृषि एक ऐसे सेक्टर के तौर पर उभरी है जिसमें न केवल बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन की क्षमता है, बल्कि जो लॉजिस्टिक्स, कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर, मैन्युफैक्चरिंग इत्यादि जैसे अन्य सेक्टरों में भी ग्रोथ को गति देने की क्षमता रखती है.
नीरज ढांडा अकेले नहीं हैं. ऐसे सैकड़ों युवा हैं, जिन्होंने उच्च पेशेवर शिक्षा ग्रहण करने या वर्षों तक कॉरपोरेट माहौल में काम करने के बाद आखिरकार कृषि क्षेत्र को रोजगार और आजीविका को विकल्प के तौर पर अपना रहे हैं. पिछले कुछ वर्षों में मीडिया के बढ़ते प्रभाव, शिक्षा के बढ़ते प्रसार और अनुकूल सरकारी नीतियों के कारण इस तरह की प्रयोगधर्मी प्रवृत्तियों को बढ़ावा मिला है. मोटे तौर पर ऐसे सामाजार्थिक बदलावों को निम्नांकित श्रेणियों में बांटा जा सकता है, जिनके कारण युवाओं में खेती से जुड़ने के सफल उदाहरण दिनोंदिन बढ़ रहे हैः
1. उपभोक्ताओं में जागरूकता: समाज के विभिन्न वर्गों में आय के लगातार सुधरते स्तर के साथ ही लोगों में खाने-पीने की चीजों पर ज्यादा खर्च करने का रुझान बढ़ रहा है. इसके कारण दो तरह के कृषि उत्पादों का बाजार तैयार हुआ है- पहला, जैविक कृषि उत्पाद और सब्जियों तथा फलों का और दूसरा, खास तरह के (एग्जोटिक) कृषि उत्पादों जैसे, थाई ग्वावा, ड्रैगन फ्रूट, एलोवेरा, काला चावल, ब्रोकली, लेट्युस इत्यादि का बाजार. इन दोनों तरह के बाजारों ने किसानों और कृषि उद्यमियों के लिए रोजगार और आजीविका के अनेकों अवसर पैदा किए हैं.
2. किसानों में जागरूकता: किसानों की नई पीढ़ी में हाई-टेक फार्मिंग यानी तकनीक आधारित खेती को लेकर काफी उत्सुकता है. यहां तक कि छोटे रकबे के मालिक किसान भी पोलीहाउस, नेटहाउस, ड्रिप इरीगेशन, मल्चिंग इत्यादि का प्रयोग कर अधिकतम उत्पादन हासिल करने के प्रति आकर्षित हो रहे हैं. इस कारण युवा उद्यमियों के लिए रोजगार एवं आजीविका के कई शानदार अवसर पैदा हो रहे हैं. बेंगलुरू के राजीब रॉय और लखनऊ के शशांक भट्ट नई पीढ़ी के दो ऐसे ही उद्यमी हैं. दोनों ऐसी कंपनियां चलाते हैं, जो किसानों को उच्च तकनीक वाले इन साधनों का इस्तेमाल करने में मदद करते हैं. हालांकि दोनों का बिजनेस मॉडल एक-दूसरे से बिलकुल अलग है. जहां रॉय वित्तीय संस्थाओं, बैंकों और एनबीएफसी को किसानों से संपर्क करा कर उनके माध्यम से इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने के लिए आवश्यकत वित्त की व्यवस्था करते हैं, वहीं भट्ट किसानों को विभिन्न सरकारी विभागों से जोड़कर सब्सिडी के माध्यम से ये काम करवाते हैं.
3. सरकारी नीतियां: केंद्र सरकार ने पिछले करीब 5 सालों में किसानों की आमदनी बढ़ाने के उद्देश्य से कई योजनाओं और कार्यक्रमों की शुरुआत की है. इनके कारण भी कारोबार और रोजगार के कई अवसर पैदा हुए हैं. राष्ट्रीय अरोमा मिशन ऐसा ही एक कार्यक्रम है जो 2016 में शुरू हुआ था और जिसका पहला चरण 31 मार्च 2020 में समाप्त हुआ. इस कार्यक्रम के तहत खस, लेमन ग्रास, जर्मेनियम, पामारोजा, मेंथा इत्यादि सुगंधित पौधों की खेती को बढ़ावा दिया गया है. ये पौधे एसेंशियल ऑयल के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं, जिन्हें दवाइयों, साबुन, परफ्यूम, मच्छर भगाने की दवाओं इत्यादि में प्रयोग किया जाता है. कुछ वर्षों पूर्व तक देश की जरूरत का लगभग सारा एसेंशियल ऑयल आयात होता था. लेकिन राष्ट्रीय अरोमा मिशन के जरिये सरकार ने किसी भी ऐसे उत्सुक किसान को प्रशिक्षण, बाजार और बुनियादी ढांचा उपलब्ध कराने पर ध्यान दिया जो सगंध पौधों की खेती और उससे तेल निकालने में रुचि रखता हो.
इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाजार (eNAM) के तहत देश भर की 1000 मंडियों को एक इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म से जोड़ा गया है और अब 1000 और मंडियों को जोड़ने की तैयारी है. ई-नाम पर कारोबार के लिए आने वाली कमोडिटी के गुणवत्ता मानकों का निश्चित होना आवश्यक है, लेकिन देश भर की इन बड़ी मंडियों में आने वाली लाखों टन कमोडिटी की गुणवत्ता जांच के लिए जरूरी बुनियादी ढांचे और प्रयोगशालाओं की फिलहाल भारी कमी है. इसी में उद्यमियों के लिए बड़े अवसर पैदा होते हैं, जहां क्लीनिंग ग्रेडिंग इकाइयों की स्थापना कर किसानों को शुल्क के बदले सेवा दी जा सकती है. वेयरहाउसिंग एक अन्य क्षेत्र है जहां देश की जरूरत और वास्तविक क्षमता में बहुत बड़ा अंतर है. सरकार ने तहसील स्तर पर वेयरहाउस लगाने का भी लक्ष्य रखा है, जिसमें उद्यमियों के लिए बड़े मौके तैयार होंगे.
Disclaimer: लेखक कृषि मामलों के जानकार हैं. कॉलम में व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं. लेख में दिए फैक्ट्स और विचार किसी भी तरह Money9.com के विचारों को नहीं दर्शाते.