Economy: पहली अप्रैल एक साथ कई सकारात्मक आंकड़ें ले कर आयी. न केवल लगातार छठे महीने वस्तु व सेवा कर (GST) से कमाई लाख रुपये से ऊपर रही, बल्कि मार्च में 1.23 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम के साथ सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गयी. गाड़ियों की बिक्री दुगनी से ज्यादा बढ़ी. मार्च के महीने में निर्यात 58 फीसदी बढ़कर 34 अरब डॉलर के पार चला गया. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMII) से ये भी पता चला कि जनवरी से मार्च की तिमाही के दौरान अक्टूबर-दिसंबर तिमाही के मुकाबले पूंजीगत खर्च 13 फीसदी से ज्यादा बढ़ा.
रिजर्व बैंक का आंकड़ा बताता है कि मझौले आकार की कंपनियों को बैंकों से कर्ज में फरवरी के दौरान 21 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई. एक सरकारी आंकड़े ने यह भी बताया कि 2020-21 के दौरान कंपनी मामलात मंत्रालय में डेढ़ लाख से भी ज्यादा कंपनियों ने पंजीकरण कराया जो सालाना आधार पर 27 फीसदी ज्यादा है. साथ ही 42 हजार से भी ज्यादा नयी लिमिटेड लाइबलिटी पार्टरनशिप फर्म बनी जो 2019-20 के मुकाबले करीब 17 फीसदी ज्यादा है.
तो क्या समझा जाए कि अर्थव्यवस्था वापस पटरी पर आ गई है? अब यहां से हम फर्राटा भरेंगे?
इन दोनों ही सवालों का जवाब जानने से इस बात का जिक्र बेहद जरुरी है कि बढ़ोतरी की बड़ी वजह क्या रही. अब GST को ही ले लीजिए. जीएसटी उपभोग पर आधारित कर है, यानि उपभोग बढ़ेगा तो कमाई बढ़ेगी. क्या उपभोग वाकई में इतनी बढ़ गयी की कमाई रिकॉर्ड हुई? जवाब है नहीं.
सच तो यह है कि पिछले कुछ समय से कर चोरों की धर पकड़ काफी तेजी से बढ़ी है. साथ ही कर प्रक्रिया को आसान बनाने जैसे छोटे कारोबारियों के लिए हर महीने के बजाए तीन महीने में एक बार कर रिटर्न की सुविधा ने ज्यादा लोगों को नियम के मुताबिक कर चुकाने के तरीकों ने तय समय पर रिटर्न भरने वालों की संख्या बढ़ा दी. पहले जहां 70-75 फीसदी कर दाता तय तारीख तक रिटर्न भरते थे, अब यह संख्या 90 फीसदी तक पहुंच गयी है. दूसरी ओर इनपुट टैक्स क्रेडिट का गलत इस्तेमाल कर GST चोरी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई का भी असर दिख रहा है. दूसरे शब्दों में कहें तो कर से कमाई में बढ़ोतरी की वजह प्रक्रिया का आसान होना और अनुपालन में बढत मुख्य रुप से शामिल है.
अब जहां तक खपत की बात है, अमेरिकी रिसर्च एजेंसी पियू की रपट (In the pandemic, India’s middle class shrinks and poverty spreads while China sees smaller changes: Pew Research Centre dated March 18, 2021 ) हकीकत बताने के लिए काफी है. इसके मुताबिक महामारी की वजह से 2020 के दौरान भारत में मध्यम वर्ग से 3.2 करोड़ लोग निकल गए, वहीं गरीबों की संख्या में 7.5 करोड़ की बढ़ोतरी हुई. ध्यान रहे की मध्यम वर्ग सबसे ज्यादा बड़ा उपभोक्ता होता है. अगर उनकी संख्या कम होती है तो खपत करने वालों की तादाद घटेगी. ऐसे में खपत आधारित टैक्स व्यवस्था जीएसटी से कमाई में बढ़ोतरी की जमीनी हकीकत का अंदाजा लगा सकते हैं.
अब गाड़ियों की बिक्री पर नजर दौड़ाएं. 100 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी का कारण देखेंगे तो वह है कि बीते साल मार्च में बिक्री कम थी. तकनीकी भाषा में इसे आधार का प्रभाव (Base Effect) कहते हैं. अब देश की सबसे बड़ी कार कंपनी को ही ले लीजिए. बीते साल मार्च के महीने में 76 हजार के करीब गाड़ी बेची, इस साल मार्च में ये संख्या 1.46 लाख के करीब रही. यानी करीब 92 फीसदी की बढ़ोतरी. आप पूछेंगे कि कौन लोग गाड़ी खऱीद रहे हैं? दरअसल, इसमें एक संख्या उन लोगों की है जो महामारी की वजह से सार्वजनिक वाहन के बजाए निजी वाहन लेना चाहते हैं और दूसरी संख्या उन लोगों की है जिन्होंने कई महीनों से गाड़ी खरीदने की योजना को टाले रखा था और अब गाड़ी खरीद रहे हैं. लगातार नए ग्राहकों का आना बाजार में शुरु नहीं हुआ है.
यहां पर यह ध्यान रखना जरुरी है कि आधार का असर कुछ समय तक होता है, लेकिन उसके बाद यह देखना होता है कि बढ़ोतरी का सिलसिला एक निश्चित गति से आगे बढ़ रहा है या नहीं. ऐसी निरंतरता की मौजूदा परिस्थितियों में उम्मीद करना सही नहीं.
मतलब साफ है कि आंकड़े जितना कुछ दिखाते हैं, उससे कहीं ज्यादा छिपा जाते हैं. सभी आंकड़ों में कई ऐसी बातें है जिन्हे हकीकत के आइने में देखना बेहद जरूरी है. इसके साथ ही यह भी एहसास होना चाहिए कि देश कोरोना महामारी के दूसरे दौर की चपेट में आ गया है. रोज नए मरीजों की संख्या 80 हजार तक पहुंच गयी है जिसमें सबसे बड़ी हिस्सेदारी महाराष्ट्र है जो देश की आर्थिक गतिविधियों की धूरी है. महाराष्ट्र समेत देश के कई राज्यं में सीमित तौर पर तालाबंदी शुरु हो गयी है, वहीं किसी तरह से पटरी पर लौट रही मॉल, खान-पान, सिनेमा हॉल जैसे सेवा कारोबार पर बंदिशें शुरु हो गयी है. सेवा क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में 57 फीसदी के करीब की हिस्सेदारी है. अगर सेवा क्षेत्र प्रभावित होगा तो उसका असर अर्थव्यवस्था पर तो पड़ेगा.
कुल मिलाकर उम्मीदों की आहट तो सुनाई दी है, लेकिन खतरे की घंटी भी बज रही है. ऐसे में यह कहना है कि अर्थव्यवस्था (Economy) वापस पटरी पर लौट आयी है, थोड़ी जल्दबाजी होगी. वैसे भी किसी भी आर्थिक नतीजे पर पहुंचने के लिए समय में निवेश करना जरुरी होता है.
अर्थव्यवस्था पर जो लोग चिंतन-मनन कर रहे हैं वो कुछ समय के लिए इंतजार कर लें. जमीनी हकीकत को समझिए. उम्मीद कीजिए कि जो आंकड़े आए हैं, वो अगले कुछ महीने तक जारी रहेंगे. अगर ऐसा हुआ तब जाकर कहना उचित होगा कि अर्थव्यवस्था बेहतर हो रही है.
Disclaimer: लेखक आर्थिक पत्रकार हैं. कॉलम में व्यक्त किए गए विचार उनके हैं. लेख में दिए फैक्ट्स और विचार किसी भी तरह Money9.com के विचारों को नहीं दर्शाते.