Combatting COVID: कोरोना महामारी ने ना सिर्फ लोगों को इस लड़ाई में एक दूसरे का साथ निभाने के लिए एकजुट किया है बल्कि इस संकट से निबटने के लिए राज्यों द्वारा उठाए जा रहे कदम मिसाल बन रहे हैं.
केरल ने कर दिखाया है कि वैक्सीन की शून्य बर्बादी किए बिना भी टीकाकरण करना मुमकिन है. राज्य ने कोविड-19 के इलाज पर निजी अस्तपालों में होने वाले खर्च की भी सीमा तय की है ताकि लोगों का इस नाजुक घड़ी में शोषण ना हो.
वहीं जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने ऐसे बुजुर्गों के लिए आजीवन पेंशन का ऐलान किया है जिन्होंने परिवार के एकमात्र कमाउ व्यक्ति को खो दिया. मां-बाप का साथ खो चुके बच्चों के लिए भी छात्रवृत्ति का ऐलान किया गया है. साथ ही दिहाड़ी पर काम करने वाले कंस्ट्रक्शन श्रमिकों, पालकीवाला, पिट्ठुवाला और पोनीवाला को दो महीने तक 1000-1000 रुपये दिए जाएंगे.
इससे पहले दिल्ली सरकार ने भी ऑटो रिक्शा और टैक्सी ड्राइवरों के लिए 5000 रुपये की वित्तीय मदद और तकरीबन 72 लाख कार्ड धारकों को दो महीने का मुफ्त राशन देने का ऐलान किया था. इसके अलावा ऑक्सीजन सिलेंडर की बुकिंग और रिफिलिंग ऑनलाइन कराने की पहल भी आम लोगों की दिक्कतें कम करने की और काम कर सकती है.
दूसरी तरफ मुंबई मॉडल ने रिकवरी रेट 92 फीसदी के पार ला खड़ा किया है और कोरोना मामलों के दोगुना होने के समय को 170 दिन कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने भी पिछले हफ्ते इस मॉडल की सराहना की थी.
ओडिशा का रुख करते हैं जहां देशभर की ऑक्सीजन की किल्लत का हल छिपा है. इस राज्य ने 18 दिनों में 11 राज्यों को मेडिकल ऑक्सीजन के 516 टैंकर पहुंचाए हैं.
ऐसे काम आने वाले कदम और सरकार की ओर से खर्च में ढील के जरिए कई राज्य सरकारें इस महामारी से लड़ने में लगी हैं.
जहां एक तरफ राज्यों को एक दूसरे के कामयाब तरीकों का अनुसरण करना चाहिए, वहीं राज्य सरकारों को चाहिए कि लोगों के लिए वेलफेयर स्कीमों और आम लोगों को राहत देने पर केंद्रित किया जाए. अर्थव्यवस्था और वित्तीय सेहत को फिर सुधारा जा सकता है लेकिन जो जिंदगियां खो जाएं उन्हें वापस नहीं लाया जा सकता.