टेक्नोलॉजी और इनोवेशन से होगा खेती का कायाकल्प, बढ़ेगा रोज़गार होगी आमदनी

Agriculture money making- किसान जहां पहले सिर्फ दुकानदार की सलाह पर फसलों के बीज इस्तेमाल करते थे, वहीं अब वे बीजों की गुणवत्ता पर विचार करने लगे हैं.

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वीएलई तथा कृषक उत्पादक संगठनों के जरिये कृषि उपज के कारोबार के लिए कृषि सेवा मंच का गठन किया था

वीएलई तथा कृषक उत्पादक संगठनों के जरिये कृषि उपज के कारोबार के लिए कृषि सेवा मंच का गठन किया था

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को अपने 75वें ‘मन की बात’ में खेती-किसानी में तकनीक के अधिकतम इस्तेमाल की बात कही. मोदी ने कहा कि कृषि क्षेत्र में आधुनिकीकरण ही एकमात्र विकल्प है, जिसके ज़रिए रोज़गार के मौके पैदा करने से लेकर किसानों की आमदनी बढ़ाने तक का लक्ष्य साधा जा सकता है. दरअसल मोदी ने जो बात कही है, वही इक्कीसवीं सदी की खेती का सबसे बड़ा सच है. आधुनिक खेती में तकनीक का महत्व बढ़ता जा रहा है. छोटे से छोटा किसान भी अब अपने खेतों की जुताई ट्रैक्टर से करना चाहता है जिससे न सिर्फ उसका समय बचे, बल्कि गहरी जुताई हो और मजदूरों पर उसकी निर्भरता कम हो.

लेकिन भारतीय कृषि की एक कड़वी सच्चाई यह है कि आज भी आधे से ज्यादा किसान एक एकड़ और दो एकड़ जोत वाले खेतों के मालिक हैं. उनके पास इतना सामर्थ्य नहीं कि वे अपना ट्रैक्टर या दूसरी मशीनें रख सकें. यही अंतर खेती में रोजगार और व्यवसाय का एक अवसर भी पैदा करता है. कस्टम हायरिंग सेंटर, यानी एक ऐसा केंद्र जहां तमाम तरह के कृषि कार्यों के लिए आवश्यक मशीनें मौजूद हो और कोई भी किसान घंटे के हिसाब से किराया चुका कर इनका इस्तेमाल कर सके, इसमें एक बेहतरीन अवसर पैदा करते हैं. इनमें ट्रैक्टर, सीड ड्रिल, स्प्रेयर, हार्वेस्टर, थ्रेशर, ड्रायर और सिंचाई सेवाओं, घासपात नियंत्रण, परिवहन, भंडारण इत्यादि जैसी तकनीकी सेवाएं शामिल हैं.

किसानों की नई पीढ़ी में हाई-टेक फार्मिंग यानी तकनीक आधारित खेती को लेकर काफी उत्सुकता है. यहां तक कि छोटे रकबे के मालिक किसान भी पोलीहाउस, नेटहाउस, ड्रिप इरीगेशन, मल्चिंग इत्यादि का प्रयोग कर अधिकतम उत्पादन हासिल करने के प्रति आकर्षित हो रहे हैं. इस तरह की उच्च तकनीकी खेती के अलावा पारंपरिक खेती के तौर-तरीकों में भी पिछले कुछ वर्षों में किसानों में आई जागरूकता के कारण बुनियादी फर्क आया है. किसान जहां पहले केवल दुकानदार की सलाह पर फसलों के बीज इस्तेमाल कर लिया करते थे, वहीं अब वे बीजों की गुणवत्ता पर विचार करने लगे हैं. जहां पहले लौकी और टमाटर जैसी सब्जियां जमीन पर फैली लत्तियों के रूप में उगाई जाती थीं, वहीं अब इन्हें टेलीफोन विधि से यानी ऊपर बांधे गये तार पर फैला कर उगाया जा रहा है. छोटे खेतों पर तीन, चार और पांच-स्तरीय खेती कर अधिकतम उत्पादन के तरीके इजाद किये जा रहे हैं. मिट्टी में कार्बन तत्व की बढ़ोतरी के लिए वर्मी कम्पोस्ट तैयार किए जा रहे हैं. ऐसे में कृषि और उससे संबंधित कारोबारों में युवा उद्यमियों के लिए अवसरों की बाढ़ है. कुरुक्षेत्र के करण सीकरी और मेरठ की सना खान ने साबित किया है कि इन अवसरों का लाभ उठाकर अविश्वसनीय आमदनी हासिल की जा सकती है.

जब बात तकनीक की हो, तो आम तौर पर लोग उसका सीधा संबंध मशीनों से और बड़े खर्च से जोड़ते हैं. लेकिन खेती में ऐसी दर्जनों तकनीकें हैं, जिनका इस्तेमाल कर किसान खेती के साथ-साथ कारोबार भी कर सकता है और आमदनी के अतिरिक्त रास्ते भी खोल सकता है. गुजरात में आणंद के हर्षद भाई पटेल का उदाहरण देखें तो इसे समझा जा सकता है. हर्षद भाई ने टमाटर और तरबूज जैसे सामान्य सब्जियों-फलों की खेती में भी सामान्य तकनीकों का सहारा लेकर आश्चर्यजनक नतीजे हासिल किए हैं. जहां उनके टमाटर 100 से 110 घंटों तक ताजे रहते हैं और पश्चिम एशियाई देशों तक जाते हैं, वहीं त्योहारों के हिसाब से तरबूज की खेती कर वे शानदार कमाई भी कर पाते हैं.

कृषि में एक बड़ा अवसर किसानों के लिए अपने उत्पादों का मूल्य वर्द्धन करना है. देश में दर्जनों स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) और किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) यह कर भी रहे हैं. एक सामान्य बाजार सर्वे से यह बात जाहिर है कि यदि कुछ कृषि उत्पादों को सामान्य तरीके की मशीनों का इस्तेमाल कर प्रोसेस कर लिया जाए और उन्हें अंतिम उत्पाद के तौर पर बेचा जाए, तो किसानों की आमदनी में बड़ी बढ़ोतरी की जा सकती है. राजस्थान के बूंदी जिले में समृद्धि महिला प्रोड्यूसर कंपनी लि. (एसएमपीसीएल) नाम का एक स्वयं सहायता समूह है, जिसके कामकाज को इस बाबत एक उदाहरण के तौर पर पेश किया जा सकता है. समूह की महिलाएं अपने ही खेतों में पैदा होने वाले सोयाबीन को मंडियों में न बेचकर उन्हें प्रोसेस करती हैं और सोया मिल्क, टोफू, केक, हलवा, कई तरह की मिठाइयां और सोया आटा जैसे उत्पाद तैयार करती हैं. इन उत्पादों को स्थानीय कैटरर, रेस्टोरेंट और परिवारों को बेचा जाता है और किसानों को इससे मंडी में सोयाबीन बेचने के मुकाबले कहीं ज्यादा कीमत हासिल होती है. इसके अलावा सामान्य खेती में ही मधुमक्खी पालन के बक्से लगा कर भी शहद जैसे उत्पाद हासिल किए जा सकते हैं, जो शुद्ध तौर पर किसानों की आमदनी में वृद्धि करेगा.

इनके अलावा कई एग्री स्टार्ट-अप भी अब उच्च तकनीक आधारित मदद लेकर मैदान में हैं, जैसे रिमोट सेंसिंग. रिमोट सेंसिंग के माध्यम से खेतों को सैटेलाइट से टैग किया जाता है और फिर दूर कंट्रोल रूम से ही उस खेत से संबंधित हर तरह का डाटा, जैसे नमी या मिट्टी में पोषक तत्वों की स्थिति इत्यादि मिल जाता है. इससे किसान सही समय पर और सही मात्रा में खेत में खाद और दवाएं डाल पाता है. इसके अलावा हाइड्रोफोनिक और बहुस्तरीय खेती ऐसी तकनीकें हैं जिनकी मदद से कम जोत वाले किसान भी कई गुना उपज ले सकते हैं.

Published - April 2, 2021, 11:09 IST