भारतीय वेतनभोगी वर्ग का एक बड़ा हिस्सा किसी भी प्रकार के सामाजिक सुरक्षा लाभ में शामिल नहीं है. खासकर महामारी के बाद वेतनभोगी नौकरियों या नियमित काम करने वालों की हिस्सेदारी 2019-20 के पहले के 21 फीसद थी, जो तुलनात्मक रूप से 2022-23 में घटकर 21 फीसद हो गई है. किसी भी सामाजिक सुरक्षा लाभ के लिए अयोग्य वेतनभोगी श्रमिकों की हिस्सेदारी बढ़ गई है.
सामाजिक सुरक्षा में बीमा योजना, पेंशन, स्वास्थ्य बीमा, मातृत्व लाभ और ग्रैच्युटी शामिल हैं. आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) के आंकड़ों के अनुसार, नियमित/वेतनभोगी नौकरियों में से लगभग 54 फीसद लोग वित्त वर्ष 2013 में किसी भी प्रकार के सामाजिक सुरक्षा लाभ के लिए पात्र नहीं थे, जबकि पांच साल पहले यह संख्या 52 फीसद थी.
ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी आफ बाथ में सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज में अर्थशास्त्र के विजिटिंग प्रोफेसर संतोष मेहरोत्रा के मुताबिक गैर कृषि नौकरियों की बढ़ोतरी धीमी पड़ी है. इस तरह की नौकरियों में वास्तविक वेतन में बढ़ोतरी होने की बजाय गिरावट या स्थिरता नजर आ रही है. सामाजिक सुरक्षा लाभों में गिरावट काम की खराब गुणवत्ता होने और नौकरियों की संख्या में कमी को दर्शाता है. युवाओं, खासकर महिलाओं में शिक्षा के स्तर में सुधार का मतलब है कि वे कार्यबल में शामिल होने को इच्छुक हैं, लेकिन ऐसा करने में सक्षम नहीं हैं क्योंकि नियमित काम की गुणवत्ता में कमी आई है.
राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के पूर्व कार्यकारी चेयरमैन पीसी मोहनन ने कहा कि 20 से ज्यादा कर्मचारी रखने वाले उद्यम अपने कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा लाभों का भुगतान देने के लिए बाध्य हैं. लेकिन छोटे उद्यम कर्मचारियों की संख्या का खुलासा नहीं करते हैं और भविष्य निधि या अन्य सामाजिक सुरक्षा लाभों का भुगतान नहीं करते.
सामाजिक सुरक्षा में गिरावट शहरी केंद्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा है. हालांकि महामारी के दौरान शहरी इलाकों में किसी भी लाभ के लिए अपात्र कर्मचारियों की हिस्सेदारी बढ़ी है, जो वित्त वर्ष 23 में 49.4 फीसद थी और यह वित्त वर्ष 2019 के समान थी. वहीं ग्रामीण इलाकों में अपात्रता वित्त वर्ष 19 में 56 फीसद थी, जो वित्त वर्ष 2023 में बढ़कर 60 फीसद हो गई है.
लैंगिक आधार पर सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों में भी कम महिलाएं शामिल है. नियमित नौकरियों/वेतन पर काम करने वाली 57 फीसद महिलाओं को किसी सामाजिक बीमा कार्यक्रम का लाभ नहीं मिलता है. वहीं पुरुषों के लिए यह आंकड़ा 53 फीसद रहा है. राज्यवार भी स्थिति में अंतर है.
उदाहरण के लिए छत्तीसगढ़ में महज 17 फीसद लोग वेतन वाली नौकरी कर रहे हैं और इनमें से 70 फीसद सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम में शामिल नहीं हैं. इसकी तुलना में मिजोरम में वेतनभोगी कर्मचारियों की संख्या करीब 26 फीसद है और उनकी सामाजिक सुरक्षा कवरेज बेहतर है. उत्तर प्रदेश व राजस्थान जैसे राज्यों का भी बुरा हाल है.