मैगी विवाद मामले में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) ने नेस्ले इंडिया को राहत दी है. आयोग ने कंपनी के पक्ष में फैसला सुनाते हुए सरकार की याचिका को खारिज कर दिया है. सरकार ने नेस्ले के खिलाफ मैगी नूडल्स बेचकर अनुचित व्यापार करने का अरोप लगाया था. इसके बदले कंपनी से 284.5 करोड़ रुपए का मुआवजा और 355.4 करोड़ रुपए का दंडात्मक हर्जाना भी मांगा गया था. हालांकि एनसीडीआरसी ने 2 अप्रैल को सरकार की याचिका को ठुकराते हुए नेस्ले के पक्ष में एक आदेश पारित किया. ये जानकारी गुरुवार को कंपनी ने एक स्टॉक एक्सचेंज फाइलिंग में दी.
बता दें भारत सरकार, उपभोक्ता मामला विभाग की ओर से 2015 में एनसीडीआरसी के सामने नेस्ले के खिलाफ शिकायत दायर की गई थी. आरोप लगाया गया था कि अतीत में मैगी नूडल्स बेचकर कंपनी ने जनता को खतरनाक और गलत सामान बनाकर बेचा है. ऐसा काम अनुचित व्यापार व्यवहार में शामिल है. सरकार ने कंपनी से मुआवजा भी मांगा था.
सराकर ने व्यापार नियम उल्लंघन का लगाया था आरोप
नेस्ले इंडिया के खिलाफ सरकार ने लगभग चार दशक पुराने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में एक प्रावधान का उपयोग करके कंपनी को एनसीडीआरसी में घसीटा था. सरकार ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की एक धारा के तहत शिकायत दर्ज कराई थी. याचिका में नेस्ले पर यह आरोप लगाया गया कि मैगी अपने स्लोगन ‘टेस्टी भी, हेल्दी भी’ के जरिए ग्राहकों को गुमराह कर रहा है. कंपनी इसे एक हेल्दी फूड प्रोडक्ट बता रही है.
5 महीने के लिए लगा था प्रतिबंध
साल 2015 में नेस्ले के इंस्टेंट नूडल्स मैगी को अनुमति से ज्यादा सीसा सामग्री और स्वाद बढ़ाने वाले मोनोसोडियम ग्लूटामेट (एमएसजी) के प्रयोग पर सरकार ने इस पर 5 महीनें के लिए प्रतिबंध लगा दिया था. इस कदम के बाद नेस्ले ने लगभग 38,000 टन नूडल्स नष्ट कर दिए थे. नेस्ले इंडिया के खिलाफ सरकार की कार्रवाई उपभोक्ता मामलों के विभाग की ओर से एनसीडीआरसी को ट्रांसफर करने का यह पहला मामला था. हालांकि 5 महीनों बाद मैगी बाजार में वापस आ गई.