क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) के बाजार में सरगर्मी है. अमिताभ बच्चन आ गए हैं औऱ रणवीर सिंह भी. एक रपट तो बताती है कि भारत में क्रिप्टोकरेंसी का बाजार बीते 12 महीने में 641 फीसदी की दर से बढ़ा, वहीं एक और रपट बताती है कि देश में क्रिप्टोकरेंसी का बाजार 2030 तक 241 मिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है. तमाम किस्म के क्रिप्टोकरेंसी के भाव भी ठीक-ठाक बढ़ रहे हैं. यह सब भी तब है जब क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) में लेन-देन की सुविधा मुहैया कराने वाले एक्सचेंज या प्लेटफॉर्म के विज्ञापन अंत में बताया जाता है “Cryptocurrency is an unregulated digital asset, not a legal tender and subject to market risks. All investments are subjected to price fluctuations.”
ये वाक्य इतनी आंधी-तूफान की तेजी से बोले जाते है कि उसे याद रखना तो छोड़ दीजिए, उस पर गौर करना भी संभव नहीं होता, लेकिन एक बात तो साफ है कि क्रिप्टोकरेंसी के लेन-देन की सुविधा मुहैया कराने वाले खुद ही कह ही कह रहे हैं कि इस मुद्रा के लेन-देन के लिए कोई नियम-कायदा नहीं है और ना ही इसे किसी तरह की कानूनी मान्यता मिली है. तो ऐसे में सवाल उठता है कि आखिकार यह सब कुछ चल किस तरह से रहा है?
दरअसल, देश की सबसे बड़ी अदालत ने जब 4 मार्च 2020 को रिजर्व बैंक के एक सर्कुलर को रद्द करने का आदेश दिया. इस सर्कुलर, जो 6 अप्रैल 2018 को जारी किया गया, के जरिए बैंकों को निर्देश दिया गया था कि वो आभासी मुद्रा में ना तो लेन-देन करें और ना ही इस तरह की मुद्रा का लेन-देन करने वालों को सुविधा मुहैया कराए, साथ ही बैंक उस ग्राहक के साथ संबंध खत्म करे जो इस तरह का लेन-देन कर रहे हैं. जब यह सर्कुलर रद्द किया गया तो ऐसा माहौल बनाया गया कि कि देश में क्रिप्टोकरेंसी जैसी आभासी मुद्रा को कानूनी मान्यता मिल गयी है और इसके लेन-देन पर कोई पाबंदी नहीं थी. जबकि हकीकत में ऐसा नहीं था.
हैरानी तो और भी जब हुई जब सरकार ने चालू साल के बजट सत्र में एक विधेयक (The Cryptocurrency and Regulation of the Official Digital Currency Bill 2021) विधायी कार्यों की सूची में शामिल तो किया, लेकिन अंत में पीछे हट गयी. इसके बाद मानसून सत्र भी आया और चला गया, लेकिन विधेयक का कोई अता-पता नहीं. हमेशा एक ही जवाब मिला कि जल्द ही यह विधेयक केंद्रीय मंत्रिमंडल के पास ले जाया जाएगा, वहां से मंजूरी मिलने के बाद संसद में पेश होगा. यह भी कहा गया कि निवेशको के हितों का ख्याल रखते हुए उन्हे कुछ समय दिया जाएगा जिससे प्राइवेट क्रिप्टोकरेंसी के गैर-कानूनी घोषित होने के सूरत में निवेश निकालने के लिए समय मिल सके.
अब करीब दो माह बाद शीतकालीन सत्र शुरू होने वाला है. वैसे तो यह सत्र काफी छोटा होता है और अभी तक सरकार की ओर से कोई ऐसे संकेत नहीं कि वो इस सत्र के दौरान क्रिप्टोकरेंसी के लिए नियम-कायदे को लेकर विधेयक लाएगी. आप कह सकते हैं कि अभी तो दो महीने के समय बचा है, अभी तो विधायी कार्य तय करने के लिए काफी समय बचा हआ है, वगैरह-वगैरह, लेकिन सच यह है कि हर छोटी-छोटी बात पर अध्यादेश लाने वाली यह सरकार क्रिप्टोकरेंसी के मामले में बयान के अलावा किसी और तरह की सक्रियता नही दिखा रही.
हालत यह है कि रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांता दास बार-बार क्रिप्टोकरेंसी को लेकर अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं. वो यह भी बताते हैं कि उन्होंने अपनी बातों से केंद्र सरकार को अवगत भी करा दिया है. दूसरी ओऱ रिजर्व बैंक सरकारी आभासी मुद्रा के लिए पायलट योजना शुरू करने की तैयारी में भी है, फिर भी प्रस्तावित विधेयक पर सरकार फिलहाल सुस्त ही दिख रही.
इस सुस्ती के बीच तमाम क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंज व प्लेटफॉर्म ने भारी-भरकम विज्ञापनों की झड़ी लगा दी है.
इस समय हर तरह के कार्यक्रमों और खास तौर पर खेल-कूद के दौरान क्रिप्टोकरेंसी का ऐसा महिमामंडल किया जाता है कि बस यही वह निवेश का माध्यम है जहां शेयर बाजार या कर्ज के माध्यमों की तरह खासे ज्ञान की जरूरत नहीं, बस जोखिम उठाने की कुव्वत है और जेब में पैसे हैं तो बस क्रिप्टो के लेन-देन में जुट जाएं. जाहिर है इस बाजार में जाने वाली की कतार अभी तेजी से बढ़ने वाली है.
लेकिन सच पूछिए तो यह बाजार एक खतरनाक मोड़ पर पहुंचने वाला है, जहां लोगों की परेशानियां खासी बढ़ेगी. यह स्थिति और भी खतरनाक हो जाती है जब कायदा-कानून नही हो या फिर निवेश के माध्यम को कानूनी मान्यता नहीं मिली है. उधर क्रिप्टोकरेंसी के पैरोकार कहते हैं कि भ ले ही इस माध्यम को कानूनी मान्यता नहीं मिली है, लेकिन इसे गैर-कानूनी भी तो नहीं करार दिया गया है. वैसे भी देश में निवेश को लेकर साक्षरता बेहद कम है, उस पर से भाषा की जलेबी लोगों को और उलझा रही है औऱ अब बड़ा सवाल यह है कि बगैर कायदे-कानून के क्रिप्टो बाजार कब तक चलेगा.
एक और सवाल यह है कि अब इस तरह के बाजार में किसी तरह की गड़बड़ी हुई तो कौन जवाबदेह होगा और कैसे इस मामले में मदद मिलेगी? यह सवाल कुछ समय पहले एक अदालत में भी पूछा गया जहां सबने कन्नी काट ली. फिलहाल ऐसा लगता है कि इन सवालों के जवाब सरकार की सुस्ती में खो गए हैं. शायद सरकार को क्रिप्टो बाजार में किसी बड़ी गड़बड़ी का इंतजार है, तभी जाकर उसकी सुस्ती दूर होगी.
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