नोटबंदी के बाद से ही देश लगातार कैशलेस सिस्टम की तरफ बढ़ रहा है. शुरुआती परेशानी ने इस राह में हालांकि कई चिंताएं पैदा की थी, लेकिन अब धीरे-धीरे लोगों को डिजिटल पेमेंट (Digital Payment) की आदत भी पड़ रही है और नियामक इस राह में आने वाली बाधाओं को दूर भी कर रहा है.
भारत को कैशलेस इकनॉमी बनाने में लोगों की भागीदारी बढ़ाने के लिए सरकार ने डिजिटल ट्रांजेक्शन पर कई फायदे की घोषणा की थी. वित्तीय लेन देन में आसानी डिजिटल पेमेंट सिस्टम के लिए सबसे अच्छी बात है. आपको कैश ढोने, प्लास्टिक कार्ड, बैंक या एटीएम की लाइन में लगने की जरूरत नहीं है. खासतौर पर जब आप सफर में हों तो खर्च करने का यह सेफ और आसान विकल्प है.
अगर देश में कम आमदनी वाली लोगों को छोड़ दें, तो बाकी सबके लिए इसके काफी फायदे हैं. कम आमदनी वाली लोगों को इससे डिजिटल पेमेंट से हालांकि दिक्कत हो सकती है. बाकी पूरे देश के लिए यह सिंपल और कंस्ट्रक्टिव है.
डिजिटल पेमेंट (Digital Payment) में आपको कहीं भी और कभी भी पेमेंट करने की सुविधा है. कई बार तो आपको पेमेंट करने के लिए वहां होना भी जरूरी नहीं है और ऑफिस आवर में पेमेंट का झंझट नहीं है. अगर आप इमरजेंसी में हों, जैसे हॉस्पिटल वगैरह, तो यह काफी मददगार साबित हो सकता है.
अगर सभी लेन-देन का हिसाब रखा जा रहा है तो आपके लिए खर्च पर काबू पाना आसान हो जाता है. यह आपको इनकम टैक्स रिटर्न में भी मदद करेगा क्योंकि आपके सभी खर्च आपके सामने रहेंगे और सबका हिसाब रहेगा. इसका एक फायदा यह होगा कि आप बजट बनाना सीखेंगे और खर्च पर काबू पाने में मदद मिलेगी.
अगर आप ई-वॉलेट या कार्ड से ट्रांजेक्शन करते हैं तो यह स्टेटमेंट के रूप में आपके पास रहेगा. इससे आप अपने खर्च पर लगाम लगा सकते हैं. बहुत से एप और टूल हैं जो आपके खर्च करने के पैटर्न का विश्लेषण करते हैं और कुछ सालों में बढ़िया एनालिसिस देकर आपकी मदद करते हैं.
डिजिटल ट्रांजेक्शन में सबसे बड़ा जोखिम आइडेंटिटी थेफ्ट (Identity Theft) है. हम डिजिटल ट्रांजेक्शन के अभ्यस्त नहीं हैं, जबकि बहुत पढ़े लिखे और समझदार लोग भी फिशिंग ट्रैप (Phishing Trap) में फंस जाते हैं. ऑनलाइन फ्रॉड (Online Fraud) के बढ़ते खतरे के दौर में अधिकतर लोगों के डिजिटल ट्रांजेक्शन प्लेटफॉर्म पर आने से हैकिंग (Hacking) के खतरे बढ़ेंगे.
थका देने वाली प्रक्रिया और कमजोर शिकायत सुनवाई व्यवस्था की वजह से लोगों के पास ऑनलाइन फ्रॉड (Online Fraud) से निबटने का कोई विकल्प नहीं है. इसके अलावा इस तरह के फ्रॉड से निपटने के लिए कोई कड़ा कानून भी नहीं है. साल 2019 अक्टूबर में ही इंडियन बैंकिंग सिस्टम को डेटा चोरी का शिकार होना पड़ा था, ऐसी घटनाएं वित्तीय भूकंप की तरह साबित हो सकती है.
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