बैंक और दूसरी रेगुलेटेड संस्थाएं अब ग्राहक से बिना बताए कर्ज की अवधि के दौरान अतिरिक्त शुल्क नहीं वसूल सकते हैं. इस सिलसिले में आरबीआई ने सोमावार को एक निर्देश जारी किया है. जिसमें कहा गया है कि बैंकों को लोन देते समय समझौते में सारी जरूरी चीजों का विवरण देना होगा. बिना ग्राहक की सहमति के वे किसी तरह का अतिरिक्त शुल्क नहीं ले सकते हैं.
आरबीआई की ओर से जारी सर्कुलर में यह भी कहा गया है कि 1 अक्टूबर या उसके बाद पास होने वाले सभी नए रिटेल और MSME टर्म लोन पर केएफएस गाइडलाइन लागू होगी. RBI ने रेगुलेटेड एन्टिटीज को निर्देशों को जल्द से जल्द लागू करने के लिए आवश्यक कार्रवाई करने को कहा है.
एनुअल पर्सेंटेज रेट शामिल
इसके अलावा, केएफएस में एनुअल पर्सेंटेज रेट शामिल होगी. एनुअल पर्सेंटेज रेट कर्ज की वार्षिक लागत है जिसमें ब्याज दर और क्रेडिट सुविधा से जुड़े दूसरे शुल्क शामिल होते हैं. केंद्रीय बैंक ने फरवरी की मौद्रिक नीति के दौरान सभी रेगुलेटेड संस्थाओं को रिटेल और MSME ग्राहकों को “की फैक्ट स्टेटमेंट” देना अनिवार्य कर दिया है.
आसान हो भाषा
इस स्टेटमेंट में कर्ज से जुड़े मुख्य तथ्य शामिल किए जाएंगे. RBI ने अधिसूचना में कहा कि KFS में आसान भाषा का इस्तेमाल किया जाना चाहिए जिससे उधार लेने वाले व्यक्ति को डिटेल्स के बारे में आसानी से समझ पाएं.
यूनीक प्रोपोजल नंबर
इसके अतिरिक्त, इसमें एक यूनीक प्रोपोजल नंबर शामिल होना चाहिए, जो सात दिन या उससे अधिक की अवधि वाले कर्जों के लिए कम से कम तीन कार्य दिवसों के लिए वैध रहना चाहिए. सात दिनों से कम अवधि वाले कर्जों के लिए यह वर्किंग डे तक वैध रहना चाहिए. RBI ने कहा कि उन्हें ग्राहकों से एक्नोलेजमेंट लेना होगा कि ग्राहकों को KFS से जुड़ी जानकारी समझ में आ गई है.