Loan against mutual fund: कोरोना के दौर में ऐसी कोई जरूरत आ पड़ी है जिसे पूरा करने के लिए आपके पास पैसे नहीं हैं, तो क्या म्यूचुअल फंड से पैसा निकालना बेहतर होगा या उसी निवेश पर लोन लेना?
म्यूचुअल फंड निवेश को बतौर कोलेट्रल रखकर, बैंक आपको कर्ज देते हैं. ये कर्ज ठीक उसी तरह काम करते हैं जैसे FD, शेयरों या किसी अन्य निवेश पर लिए गए लोन.
हालांकि, इन लोन की भी सीमाएं हैं. आपको पूरे निवेश रकम पर लोन नहीं मिलता. मसलन, ICICI बैंक और HDFC बैंक की वेबसाइट के मुताबिक आप इक्विटी फंड की वैल्यू के 50 फीसदी तक का कर्ज ले सकते हैं जबकि डेट स्कीम पर नेट ऐसेट वैल्यू के 80 फीसदी तक का कर्ज मिलेगा.
वहीं, SBI से म्यूचुअल फंड निवेश पर कम से कम 25 हजार रुपये का लोन लेना होगा. SBI इक्विटी से जुड़े फंड पर अधिकतम 20 लाख रुपये का कर्ज देता है जबकि डेट और फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान पर ज्यादा से ज्यादा 5 लाख रुपये का कर्ज लिया जा सकता है. SBI से म्युचुअल फंड निवेश पर लोन लेने पर आपको 9.75 फीसदी का ब्याज देने होगा.
इस लोन को लेने पर प्रोसेसिंग फीस, रिन्युअल फीस, सर्विस टैक्स देना पड़ेगा.
इन लोन को आसानी से मंजूरी भी मिल जाती है. वहीं, म्यूचुअल फंड निवेश पर लिए लोन पर फोर-क्लोजर या प्रीपेमेंट चार्ज नहीं लगता. इस लोन को आप EMI में भी चुका सकते हैं.
फुल सर्कल फाइनेंशियल प्लानर्स एंड एडवाइजर्स के कल्पेश आशर का कहना है कि हर परिस्थिति के लिए निवेश का फाइनेंशियल प्लान पहले से तैयार होना चाहिए ताकि लोन लेने की नौबत ना आए. अपने लक्ष्यों को पहले से ही तय कर निवेश करें ताकि उनके नजदीक आने पर लोन के जरिए उन्हें पूरा ना करना पड़े. साथ ही, अचानक पड़ी पैसों की जरूरत के लिए इमरजेंसी फंड बनाना जरूरी है. वक्त आने पर यही फंड सहारा बनेगा. इमरजेंसी फंड होगा तो आपको अपना निवेश तोड़ना नहीं पड़ेगा.
उनका कहना है कि लोगों को पर्सनल लोन से हमेशा दूरी बनाकर रखनी चाहिए क्योंकि ये जेब पर काफी ज्यादा बोझ बनाते हैं.
वहीं, आशर मानते हैं कि अगर किसी परिस्थिति में आपके पास ना फाइनेंशियल प्लान तैयार है, ना ही इमरजेंसी फंड है, तो अपने निवेश को रिडीम करना लोन लेने से ज्यादा फायदेमंद होगा. म्यूचुअल फंड में से किसी भी समय पर पैसा निकाल सकते हैं और यही वजह है कि इस प्रोडक्ट में से पैसा निकालकर जरूरत पूरा करना बेहतर होगा.
डेट कैटेगरी में अभी ब्याज दरें घटी हैं. ऐसे में इनपर लोन लेने से कर्ज पर चुकाए जाने वाले ब्याज से निवेशक पर बोझ बढ़ेगा.
वे सलाह देते हैं कि निवेशक को अपनी जरूरत के मुताबिक फंड से युनीट रिडीम करनी चाहिए.