फंड की ओवरलोडिंग पड़ेगी भारी, जानें पोर्टफोलियो में रखें कितने म्यूचुअल फंड

Mutual Fund Balancing: पोर्टफोलियो में इतने ही फंड्स हो जिसे आप ट्रैक कर सकें - आपको पता हो कि कितनी रकम किसमें जा रही है और उसपर रिटर्न कितना मिल रहा है.

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Mutual Fund: भीड़ से जितनी दूरी उतना बेहतर – कोविड-19 संकट ने यही सिखाया है. अपने पोर्टफोलियो में भी इस तरह फंड्स की भीड़ लगा दी तो फाइनेंशियल सेहत के लिए नुकसानदेह हो सकता है. इन्वेस्टमेंट की गाड़ी को ओवरलोड होने से बचाना जरूरी है नहीं तो बैलेंस बिगड़ सकता है. म्यूचुअल फंड में निवेश का श्री गणेश कर आपने कमाई की शुरुआत तो कर ली, लेकिन इसमें कई गलतियां हैं जिनसे आपको बचना होगा.

खास तौर पर, अगर आप अपने निवेश खुद मैनेज करते हैं तो हो सकता है कि आपने या तो अपने जोखिम के मुताबिक फंड ना चुने हो, सही एसेट एलोकेशन ना हो, या फिर ओवर-डायवर्सिफिकेशन कर लिया है. इन सभी स्थितियों में आपकी निवेश से होने वाली कमाई पर असर पड़ सकता है.

समझें ओवर-डायवर्सिफिकेशन

किसी एक ऐसेट में ही ज्यादा निवेश होना, या यूं कहें कि पोर्टफोलियो में ढेर सारे फंड्स रख लेने से ओवर-डायवर्सिफिकेशन हो सकता है.

माय वेल्थ प्रोटेक्टर (My Wealth Protector) के CEO निर्मल रेवारिया का कहना है, “अपने पोर्टफोलियो में पहले से मौजूद स्कीमों की अनदेखी करते हुए निवेशक नई स्कीमें पोर्टफोलियो में जोड़ते जाते हैं. मेरा सुझाव है कि निवेशक को पोर्टफोलियो में ज्यादा से ज्यादा 10 फंड रखने चाहिए. 10 फंड की संख्या भी काफी ज्यादा है. शुरुआती निवेशकों को दो स्कीमों में पैसा लगाना शुरू करना चाहिए. ज्यादा फंड होने से पोर्टफोलियो अव्यवस्थित हो जाएगा.”

कैसे तय करें कौन से फंड रखें, किसे करें बाहर

फाइनेंशियल एक्सपर्ट समय-समय पर पोर्टफोलियी की समीक्षा करने का सुझाव देते हैं. ये रिव्यू आप अपने लक्ष्य हासिल होने या अपने लक्ष्य में बदलाव के हिसाब से भी कर सकते हैं.

रेवारिया कहते हैं कि निवेशक को देखना चाहिए कि फंड का प्रदर्शन उनके लक्ष्य और तय ड्यूरेशन के हिसाब से हो रहा है या नहीं. अगर फंड्स की संख्या घटानी है तो एक स्कीम से रिडीम कर दूसरे में निवेश करें.”

पोर्टफोलियो में इतने ही फंड्स हो जिसे आप ट्रैक कर सकें – आपको पता हो कि कितनी रकम किसमें जा रही है और उसपर रिटर्न कितना मिल रहा है. अच्छे प्रदर्शन वाले फंड्स में ही निवेश रकम बढ़ाई जा सकती है.

निवेशक के लिए अपने फंड मैनेज करना मुश्किल हो रहा हो तो वे एडवाइजर से सलाह लें.

रीबैलेंसिंग के वक्त दें ध्यान

निवेशकों को सलाह देते हुए रेवारिया कहते हैं कि बस गूगल कर अपने निवेश के फैसले ना लें. एक्सपर्ट्स से निवेश की बारीकियां समझें.अगर एडवाइजर कोई सलाह दे रहा है तो उससे जरूर सवाल करें और पूछें कि किस आधार पर ये सलाह दी जा रही है.

कुल मिलाकर बात ये कि आपको एक्सपर्ट की सुननी है लेकिन अपने फाइनेंशियल हेल्थ के लिए सेकेंड ओपनियिन भी ले सकते हैं. आपको पता होना चाहिए कि आप किसी विकल्प में क्यों निवेश कर रहे हैं.

बारीकियां समझने के बाद ही रीबैलेंसिंग करें. रीबैलेंसिंग के वक्त अपने निवेश लक्ष्य पर दोबारा विचार करें. एक्सपर्ट मानते हैं कि हर फंड को एक लक्ष्य से जोड़ना चाहिए. इससे आप समझ पाएंगे कि किस तरह की ऐसेट क्लास चुननी होगी और कितना जोखिम ले सकते हैं. ऐसा करने पर आप छोटी अवधि के लिए इक्विटी का रिस्क नहीं लेंगे और लंबी अवधि के लिए बेहतर रिटर्न वाले प्रोडक्ट चुनेंगे.

कैसा हो ऐसेट ऐलोकेशन

अलग-अलग जोखिम क्षमता वाले लोगों के लिए अलग-अलग ऐलोकेशन पर निर्मल रेवारिया सलाह देते हैं. ज्यादा रिस्क ले सकते हैं जो 80 फीसदी निवेश इक्विटी में करें और 20 फीसदी डेट में. इक्विटी में 30 फीसदी निवेश लार्जकैप में हो, मिडकैप में 40 फीसदी और स्मॉलकैप या किसी अन्य सेक्टर में 30 फीसदी.

थोड़ा जोखिम ले सकते हैं तो इक्विटी में 60 फीसदी और डेट फंड में 40 फीसदी निवेश कर सकते हैं. इस कैटेगरी के लोग 70 फीसदी निवेश लार्जकैप में कर सकते हैं और 30 फीसदी मिडकैप, 10 फीसदी स्मॉलकैप या किसी अन्य थीमैटिक फंड में.

रिस्क लेने की क्षमता बेहद कम है तो डेट में निवेश ज्यादा रखें. जो इक्विटी निवेश हो उसमें भी सिर्फ लार्जकैप फंड ही चुनें.

Published - May 28, 2021, 02:51 IST