शेयर बाजार में निवेश करने वाले अक्सर किसी स्टॉक में तेजी आते ही उसे बेचना पसंद करते हैं. दूसरी तरफ, जो शेयर खरीदारी के समय की कीमत से कम पर ट्रेड कर रहे होते हैं, उनमें बढ़त की उम्मीद के साथ बने रहते हैं. ज्यादातर निवेशकों की यही आदत होती है. इससे पता चलता है कि उन्हें मुनाफा निकालने की हड़बड़ी रहती है, मगर लॉस बुकिंग के मामले में देरी कर देते हैं.
दोनों तरह के फैसलों में थोड़े बदलाव की जरूरत है. कोई शेयर अगर मुनाफा कमा रहा है, तो जरूरी नहीं कि उसे बेचा ही जाए. अगर कीमत उठ रही है, तो इसका मतलब हुआ कि आपने अच्छे स्टॉक में निवेश किया है. अगर आप ऐसे शेयरों को बेच देंगे तो कभी मैल्टीबैगर रिटर्न नहीं पा सकेंगे. निवेशकों को हमेशा शेयर की कीमत बढ़ने के पीछे के कारण को एनालाइज करना चाहिए.
दूसरे मामले में गिरावट दर्ज कर रहे स्टॉक के वापस पर्चेज प्राइस पर पहुंचने का इंतजार करना कुछ वैसा ही है जैसे गलत फैसले का सही में बदलने का इंतजार करना, जो ज्यादातर केस में नहीं होता है. हो सकता है कि घाटा और बढ़ता ही चला जाए और इसमें सुधार के इंतजार में अन्य अच्छे स्टॉक में निवेशक नहीं करना मौके को हाथ से जाने देना होगा.
अगर किसी तरह कीमत उस स्तर पर आ गई, जिसपर आपने स्टॉक की खरीदारी की थी, तो रिव्यू करना चाहिए कि किन कारणों से ऐसा हुआ है. अगर स्टॉक वापस उठने की क्षमता रखता है, तो हो सकता है आगे कीमत में और उछाल आए.
सलाह दी जाती है कि बढ़त वाले स्टॉक्स में बने रहें और गिरावट वाले शेयरों को बेच दें. इस रणनीति से आपको मुनाफा बढ़ाने और नुकसान घटाने में मदद मिलेगी.
(लेखक RK ग्लोबल के वाइस प्रेसिडेंट हैं. ये उनके निजी विचार हैं)