शेयर बाजार नियामक सेबी ने हाल ही में शेयर के लेनदेन पर T+1 सेटलमेंट साइकल की व्यवस्था का प्रस्ताव पेश किया है, जिसका उद्देश्य बाजार में तरलता को बढ़ाना है. हालांकि, यह व्यवस्था वैकल्पिक होगी. अभी, मार्केट में T+2 सेटलमेंट की व्यवस्था है, मतलब यह है कि जिस दिन शेयर का ट्रांजैक्शन किया जाता है, उसके 2 दिन बाद सेटलमेंट होता है. नई व्यवस्था के तहत, ट्रांजैक्शन के 1 दिन बाद ट्रेड सेटलमेंट हो जाएगा. हालांकि, सेबी ने यह शेयर बाजारों पर छोड़ दिया है कि वे T+1 या T+2 सेटलमेंट साइकल को अपनाएं.
Money9 से बात करते हुए Swastika Investmart के चीफ इनवेस्टमेंट ऑफिसर और DGM– इनवेस्टमेंट बैंकिंग ने इसके असर के बारे में हमें विस्तार से बताया. पेश है बातचीत के प्रमुख अंश.
यह मौजूदा सेटलमेंट साइकिल से कितना अलग है?
कोई भी व्यक्ति BSE या NSE पर शेयर खरीद सकता है. उसके डीमैट खाते पर ये शेयर T+2 दिन बाद आते हैं. इसके बाद ही वह शेयरों को बेच सकता है. दूसरी ओर, जब कोई शेयरों को बेचता है तो उसके खाते में अभी T+2 दिन बाद पैसे आते हैं. नई व्यवस्था में इसे T+1 दिन किया गया है. 2003 तक यह साइकल T+3 दिनों का होता था. नई व्यवस्था जनवरी 2022 से लागू हो जाएगी. सेबी के मुताबिक, यदि कोई शेयर बाजार T+2 को चुनता है तो उसे एक महीने पहले इसकी सूचना देनी होगी.
इस नई व्यवस्था के पीछे सेबी का क्या मकसद है?
बाजार के भागीदारों के निवेदन पर सेबी ने यह प्रस्ताव दिया है. सेबी यह फैसला शेयर बाजारों, क्लिरिंग कॉरपोरेशन और जमाकर्ताओं से चर्चा कर लिया है. हालांकि, कुछ लोगों ने T+1 सेटलमेंट साइकल को लेकर चिंता जाहिर की है, उनका मानना है कि इतनी जल्दी संचालन करना आसान नहीं होगा. इस व्यवस्था का उद्देश्य बाजार की क्षमता में इजाफा करना और निवेशकों के हितों की रक्षा करना है. सेटलमेंट साइकल तेज होने से कामकाजी जोखिम कम होंगे, साथ ही तरलता में इजाफा होगा. इसके अलावा मार्जिन व कोलेटरल की जरूरतें भी कम होंगी.
निवेशकों के लिए यह मायने रखता है?
बड़े निवेशकों, जैसे कंपनियां, एफआईआई, डीआईआई वगैरह के लिए यह कदम लाभदायक साबित होगा. एक दिन पहले सेटलमेंट हो जाने से उनकी तरलता बढ़ेगी और मार्जिन जरूरतें कम होंगी. हालांकि, छोटे निवेशकों पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा. ध्यान रहे कि बाजार में 45 फीसदी छोटे निवेशक हैं जबकि 55 फीसदी बड़े निवेशक हैं.
आम निवेशकों के लिए इसके नफा-नुकसान क्या हैं?
निवेशकों को इससे ट्रांजैक्शन के बाद जल्दी फंड प्राप्त हो सकेगा. साथ ही बाजार से जुड़े कई जोखिम भी कम होंगे. इससे किसी भी प्रकार के निवेशकों को नुकसान नहीं होगा. हालांकि, इस व्यवस्था को लागू करना जटिल काम है और इसके लिए व्यापक योजना व क्रियान्वयन की जरूरत होगी. यह बाजार की मौजूदा व्यवस्था को पूरी तरह से बदल देगी. साथ ही तकनीक को अपग्रेड करना होगा.
क्या इससे बाजार के उतार-चढ़ाव पर कोई असर पड़ेगा?
निश्चित तौर पर बाजार के उतार-चढ़ाव में इजाफा होगा. निवेशकों को अपने ट्रेड पर बारीक नजर रखनी होगी. यह बात भी सही है कि उतार-चढ़ाव से रिटर्न भी प्राप्त होता है. इसे सकारात्मक तरीके से लिया जा सकता है.
विकसित देशों, जैसे अमेरिका, ब्रिटेन और जापान आदि, में T+2 ट्रेड सेटलमेंट साइकल की व्यवस्था है. हमारा मानना है कि 2 दिनों के लिए T+1 व्यवस्था का परीक्षण करना चाहिए, और इसके सफल रहने पर एक हफ्ते और टेस्टिंग की जानी चाहिए, तभी हमेशा के लिए इसे लागू करना चाहिए.
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