उत्तराखंड के पिथौरागढ़ के एक छोटे से गाँव का 9-10 दस साल का लड़का, घर से भाग जाता है. अलग-अलग शहरों में भटकने के बाद 12 साल की उम्र में वह सपनों के शहर मुंबई आ पहुंचता है. जहां NGO और कुछ अच्छे लोगों की मदद से मेराथॉन रनर बनता है, फिर एक दोस्त के साथ मिलकर दोनों ऐसा कमाल करते हैं कि 25 साल की उम्र में करोड़ों की कंपनी के मालिक बन जाते हैं और रतन टाटा से लेकर बराक ओबामा उनके काम की सराहना करते हैं. ये बॉलीवुड की कोई फिल्मी कहानी नहीं, बल्कि दो दोस्तों की रियल लाइफ कहानी है, जिसके किरदार हैं रमेश धामी और श्रीयंश भंडारी.
उत्तराखंड के पहाड़ों से भागकर मुंबई बस गए 26 साल के धामी और राजस्थान के संपन्न परिवार के 26 साल के भंडारी की कंपनी पुराने, घिसे पिटे, बेकार, रद्दी जूते-चप्पलों को एक नया लुक देकर नए जूते तैयार करके बेचती और दान करती है. उन्होंने 6 साल में 3 करोड़ का टर्नओवर भी हासिल कर लिया है.
3 लाख जोड़ी जूते-चप्पल का दान
वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन (WHO) के सर्वे के अनुसार, देशभर में लगभग 30-35 करोड़ ऐसे जूते-चप्पल हैं जिन्हें हम फेंक देते हैं, वहीं दूसरी ओर 1.5 अरब लोगों को नंगे पैरों के कारण पैर के इन्फेक्शन के दर्द को झेलना पड़ता है. इस समस्या का समाधान करती है उनकी कंपनी Greensole. 2015 में मुंबई के छोटे से मकान में शुरू हुई ये कंपनी 13-14 राज्यों में 3,90,000 जोड़ी जूतें-चप्पल दान कर चुकी है. 65 से अधिक कंपनियों के साथ इसका B2B टाईअप है. पुराने जूते लैंडफिल साइट पर जाने से बचा के दोनों ने पर्यावरण को 16.60 लाख पाउंड CO2 उत्सर्जन से भी बचाया है. इनके काम को Forbes 30 under 30 और Vogue जैसी प्रतिष्ठित मैगजीन ने भी सराहा है.
घर से भागा हुआ बना मैरेथॉन रनर
धामी का जन्म उत्तराखंड के पिथौरागढ़ के एक छोटे से गाँव में हुआ था. अपने परिवार में सबसे छोटे धामी बताते हैं, “घर में परेशानी के कारण मैं 2004 में 10 साल की उम्र में घर से भाग गया था. अलग-अलग शहरों में भूखे-प्यासे भटकते हुए मैंने अजीबोगरीब काम किए थे. फिर 12 साल की उम्र में अभिनेता बनने के सपने के साथ 2006 में मुंबई आ गया.”
उन दिनों को याद करते हुए धामी कहते हैं, “मैं मुंबई सेंट्रल और उसके आसपास फुटपाथों पर रहता था. क्राइम करता था, ड्रग लेता था. फिर एक दिन मुंबई सेंट्रल पर मुझे एनजीओ ‘साथी’ के एक कार्यकर्ता सचिन मिले और अपने साथ ले गए.”
बाद में, रमेश ने दौड़ने में रुचि विकसित की और कई प्रतियोगिताओं में भाग लिया और पुरस्कार जीते. घर से भागे हुए धामी अब तक 200 से ज्यादा हाफ-मैरेथॉन दौड़ चुके हैं. फिर 2012 में धामी की मुलाकात श्रीयंश भंडारी से नेपियन सी रोड पर प्रियदर्शिनी पार्क के मैदान में हुई, जहां से उन्हें रिफर्बिश्ड जूतें बनाने का आइडिया आया. धामी वहां आसिस्टंट ट्रेनर के तौर पे 4,500 रुपये की सैलरी पर काम करते थे और भंडारी के साथ रनिंग प्रैक्टिस करते थे.
ऐसे आया आइडिया
“मैंने अपनी छोटी बचत से पहली बार 140 डॉलर के जूते मंगाए थे, जो केवल 4-5 महीने में खराब हो गए. इतने महंगे जूते पहली बार मंगाए थे, इसलिए मैंने उसके सोल के अलावा सब कुछ निकाल के चप्पल में तबदील कर दिया. उस समय मुझे एहसास हुआ कि पुराने जूतों को नए सिरे से नई जोड़ी सैंडल या चप्पल में बदला जा सकता है और इस तरह से पुराने जूते को रिसाइकल करने वाली कंपनी GrennSole का जन्म हुआ,” ऐसा GrennSole के को-फाउंडर और डिरेक्टर धामी money9.com को बताते है.
EDI-अहमदाबाद ने दिया मौका
GreenSole के फाउंडर और CEO श्रीयंश money9.com को बताते हैं, “रमेश और मैं एक एथलीट के तौर पर हर साल 4-5 महंगे जूते तोड़ देते थे. जब रमेश ने उसके जूते को रिफर्बिश्ड करके दिखाया तो मुझे लगा की इस आइडिया में सामाजिक बदलाव लाने की और अच्छा सोशल बिजनेस मॉडल बनने की संभावना है.”
इस आइडिया को श्रीयंश ने 2012 के डिसंबर में EDI-अहमदाबाद की कंपीटिशन में भेजा, जहां उनका आइडिया टॉप इनोवेटर्स में शामिल हो गया.
10 लाख रूपये से हुई शुरुआत
फिर दोनों दोस्तों ने मुंबई की जय हिंद कॉलेज की बी-प्लान कंपीटिशन और 2014 में IIT-Bombay में 7,500 प्रतिस्पर्धी को हरा के जीत का खिताब हासिल किया.
5 लाख रुपये की पुरस्कार राशि के साथ, श्रीयंश के परिवार से कुछ लाख और क्राउड फंडिंग से कुछ दान के साथ उन्होंने लगभग 10 लाख रुपये जुटाए और 2015 में GreenSole कंपनी की शुरुआत की और पांच श्रमिकों के साथ ठक्कर भाप्पा कॉलोनी में 500 स्क्वेयर फुट के मकान से काम शुरू किया.
धीरे-धीरे, उनकी कंपनी बढ़ती गई और फंड और मेंटरिंग सपोर्ट मिलने लगा. उन्होंने भारत के 14 शहरों में कलेक्शन सेंटर और ड्रॉप बॉक्स रखे हैं, जहां लोग अपने पुराने जूते दान कर सकते हैं. कोई उन्हें पुराने जूते कुरियर से भी भेज सकता है.
रमेश कहते हैं, “हमारा ध्यान केन्या, अफ्रीका में एक नवीनीकरण युनिट स्थापित करने पर है.” उन्होंने जूतों के अलावा बैग, जैकेट, एक्सेसरीज़ इत्यादि जैसे अन्य सामानों के निर्माण में भी काम शुरू किया है.
2019 में उन्होंने Peta-सर्टिफाइड वेगन फूटवेर ब्रान्ड के साथ रिटेल मार्केट में प्रवेश किया था. GreenSole इस ब्रान्ड के जूते अमरीका और यूरोप में भी बेचती है.
2015-16 में उनका टर्नओवर 20 लाख रूपये से 2019-20 में 2.5 करोड़ रुपये और 2020-21 में 3.5 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है. GreenSole पहले साल से ही प्रॉफिट करती है और मार्जिन 20-25% के करीब है.
भंडारी बताते हैं, “हम अगले 2-3 साल में 10 लाख जूते रिफर्बिश्ड करने के टार्गेट पर काम कर रहे हैं.”
भंडारी एक बर्ड लवर हैं और उन्होंने “Birds of Aravalli” किताब भी लिखी है. इनके अलावा वह उदयपुर की हेरिटेज गर्ल्स स्कूल के डायरेक्टर भी हैं. वे TEDx, MIT, बाब्सन कॉलेज, व्हार्टन और हार्वर्ड कैनेडी स्कूल के पर्यावरण और उद्यमिता फोरम में लेक्चर दे चुके हैं.
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