शेयर बाजार (Stock Market) में इन्वेस्टमेंट हमेशा हेर्ड मेंटलिटी को फॉलो करता है. सरल भाषा में कहें तो यहां गवर्नमेंट पॉलिसी का उतना प्रभाव नहीं पड़ता है जितना की मार्केट (Stock Market) के सेंटीमेंट का होता है. हम जिस माहौल में रहते हैं उसका शेयर बाजार की कीमतों पर किसी न किसी तरह से प्रभाव पड़ता है. हालांकि एक बड़ी परेशानी तब पैदा होती है जब सेंटीमेंट और स्टॉक मार्केट के प्राइस अलग-अलग दिशा में जाने लगते हैं. हर एक इन्वेस्टर के अंदर दो प्रकार के डर होते हैं. पहला डर की कहीं उससे ये रैली मिस न हो जाए और दूसरा डर ये भी होता है कि मार्केट इतना बढ़ने के बाद इस ऊंचाई से एक करेक्शन दे सकती है. ऐसे में एक निवेशक के लिए अनुमान लगाना कि मार्केट किस दिशा में जाएगी ये काफी मुश्किल हो जाता है, लेकिन वास्तव में शेयर बाजार को समझना इतना मुश्किल भी नहीं है और न ही शेयर बाजार को समझने के लिए किसी रॉकेट साइंस की जरूरत है.
कुछ ऐसे टूल हैं जिनसे शेयर बाजार की दिशा का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. ऐसे में आप बड़ी आसानी से अपने एंट्री और एग्जिट को प्लान कर सकते हैं. तो आईये जानते हैं इन टूल्स के बारे में जो आपको मार्केट की दिशा को समझने में हेल्प कर सकते हैं.
ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट किसी एक साल में देश में पैदा होने वाले सभी सामानों और सेवाओं की कुल वैल्यू को कहते हैं. सरल शब्दों में कहें तो जीडीपी जितना अधिक होगी शेयर बाजार उतना ही बेहतर होगा. इसके साथ ही शेयर बाज़ार की कीमतें कंपनियों की परफॉरमेंस पर भी निर्भर करती है. गुड्स एंड सर्विसेज की बिक्री जितनी ज्यादा होती है. कंपनियों की प्रॉफिटेबिलिटी भी उतनी तेज़ी से बढ़ती है. इसका प्रभाव सीधा कंपनियों के शेयर प्राइस पर पड़ता है. इसलिए अगर एक कंपनी की उत्पादन और सेल अच्छी है तो उसका शेयर प्राइस भी बढ़ता रहेगा. इसीलिए किसी भी स्टॉक को चुनते समय हमेशा कंपनी के टर्नओवर और प्रॉफिट मार्जिन की जांच करनी चाहिए.
कॉरपोरेट्स के लिए बैंक फंड के कई स्रोतों में से एक है, हालांकि कम प्रमोटर फंडिंग वाली कंपनियों के मामले में, वे सुरक्षित फंडिंग का एकमात्र स्रोत हो सकते हैं, फंड की जरूरत हमेशा हाथ में होती है, चाहे वह कार्यशील पूंजी की आवश्यकता के लिए हो या विस्तार उद्देश्यों के लिए. भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा शासित “रेपो रेट” निर्धारित दर पर कॉरपोरेट्स को पैसा उधार देता है. रेपो दर जितनी ज्यादा होगी, ब्याज दर उतनी ही अधिक होगी और स्टॉक का मूल्यांकन अधिक होगा. ऐसे सिनेरियो में जहां सरकार को लगता है कि अर्थव्यवस्था पीछे की ओर जा रही है.
यह उसे हाई लीक्वीडिटी प्रोवाइड करती है, जिसका अर्थ है कि ब्याज की सस्ती दर पर अधिक नकदी की उपलब्धता. नतीजतन, कॉरपोरेट और व्यक्ति सस्ती ब्याज दर पर पैसा उधार ले सकते हैं और अपनी खर्च करने की शक्ति को बढ़ा सकते हैं. हालांकि, कभी-कभी पूरी तरह से विपरीत सिनेरियो में, जब रेपो दर हमेशा उच्च होती है, शेयर बाजार का मूल्यांकन भी हर समय उच्च स्तर पर कारोबार कर रहा है, यह परिदृश्य बहुत बड़ा सौदा ब्रेकर हो सकता है क्योंकि बाजार में उच्च स्तर को स्वीकार करने के बाद ऐसे मूल्यांकन नीचे आ सकते हैं.
हर अर्थव्यवस्था में इन्फ्लेशन स्वाभाविक है. क्योंकि कीमतों में वृद्धि को भी अच्छा माना जाता है. यदि इन्फ्लेशन को कंट्रोल में रखा जाये तो ये इकॉनमी के लिए अच्छा रहता है लेकिन अगर इन्फ्लेशन कंट्रोल में न हो तो ये इकॉनमी को पूरी तरहं से बर्बाद भी कर सकती है. गुड्स और सर्विसेज की कीमतें आम आदमी की खरीद के बाहर हैं तो ये कंपनी की प्रॉफिटेबिलिटी को भी कम करेगी, जिससे स्टॉक्स का वैल्यूएशन भी कम होता जाएगा. इसलिए निवेशकों को ऐसे सिनेरियो पर नजर रखनी होगी. क्योंकि इन्फ्लेशन हमेशा शेयर बाजार की दिशा को प्रभावित करती है.
शेयर बाजार में निवेश करने से पहले ऊपर दिए गए कारकों को जरूर समझ लेना चाहिए. जिससे मार्केट की दिशा का सही अंदाजा लगाया जा सकता है. हालांकि उनमें से कुछ में आंतरिक कमियां भी होती हैं. जैसे ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट (GDP) के मामले में कुल देश की आबादी का लगभग 45% कृषि और इनफॉर्मल सेक्टर के लिए जिम्मेदार है. इसलिए सिर्फ़ GDP को देख के आप मार्किट की सही वैल्यूएशन का पता नही लगा सकते. आपको इसके साथ और भी कारकों को जोड़ के समझना होगा. शेयर बाजार में एंट्री और एग्जिट के पहले इन कारकों को अनदेखा करना आपको महंगा भी पड़ सकता है.
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