कोटक का एक पोर्टफोलियो मैनेजर जुलाई 2012 में पोर्टफोलियो स्पेशल सिचुएशन एंड वैल्यू सीरीज I (SSV) की स्थापना के बाद से इन्वेस्टर्स को एक अच्छा रिटर्न देने में कामयाब रहा है. डेटा से पता चला है कि फंड ने 1 करोड़ रुपये का इन्वेस्ट किया था जो वर्तमान में 3.26 करोड़ रुपये से ज्यादा हो गया है. यानि 9 सालों में 3.26 गुना ग्रोथ. SSV में इन्वेस्ट करने के लिए इन्वेस्टर्स को कम से कम 50 लाख रुपये लगाने होंगे. इसी अवधि के दौरान बेंचमार्क BSE सेंसेक्स 3 गुना बढ़ा. मिलिए फंड के कमांडर अंशुल सहगल से जो कोटक महिंद्रा एसेट मैनेजमेंट कंपनी में पोर्टफोलियो मैनेजर और हेड- PMS हैं.
Money9.com के साथ बातचीत में, सहगल ने बताया कि स्पेशल सिचुएशन फंड कैसे काम करते हैं और कैसे वो मार्केट से बेहतर प्रदर्शन करने में सफल रहे. आपके लिए लाए हैं बातचीत के खास अंश:
क्या आप अपनी स्टॉक चुनने की रणनीति पर कुछ प्रकाश डाल सकते हैं?
हम ऐसे शेयरों की तलाश करते हैं जहां किसी बिजनेस की “अर्निंग-पॉवर” मिसप्राइस हो. यह गलत कीमत स्ट्रीट एक्सपेक्टेशन के लोअर मार्जिन या सेल या दोनों, वर्सिस बिजनेस के ट्रू पोटेंशियल में रिफ्लेक्ट होती है. हम कंपनियों की संभावनाओं के ऐसे कम मूल्यांकन की पहचान करना चाहते हैं. स्टॉक आमतौर पर फेवरेबल प्राइस ऑफर करते हैं, जब उनकी संभावनाओं को कम करके आंका जाता है.
इसके अलावा, हम उन बिजनेस के संचालन में भी बदलाव की तलाश करते हैं जिनमें इसकी संभावनाओं को बेहतर बनाने की क्षमता हो. ये बदलाव मैनेजमेंट, कैपिटल एलोकेशन, बिजनेस रीस्ट्रक्चरिंग या बैलेंस शीट में इम्प्रूवमेंट के हो सकते हैं.
उदाहरण के लिए, 2013 में ब्रिटानिया ने एक साल आगे की कमाई पर 20 गुना प्राइस टू अर्निंग (P/E) पर ट्रेड किया. उस समय कंपनी का प्रीवेलिंग EBITDA मार्जिन 6% था और ROCE लगभग 38% था. यह ऐसे समय में था जब कच्चे माल की कीमतें (चीनी/आटा) अपने पीक पर थीं. चक्रीय होने के कारण इन कमोडिटीज के ऊपर उठने की बहुत कम संभावना थी और नीचे आने की ज्यादा. इसके अलावा, कंपनी ने पिछले दो सालों में प्रीमियमाइजेशन के कारण ग्रोस मार्जिन में 2% जोड़ा. मौजूदा स्तरों पर, रेवेन्यू के परसेंटेज के रूप में एडवरटाइजिंग और प्रमोशन (A&P) कॉस्ट में वृद्धि की बहुत कम गुंजाइश थी.
12-15% की रेवेन्यू ग्रोथ और कच्चे माल की कीमतों में कमी के साथ, ऑपरेटिंग लेवरेज से EBITDA मार्जिन अधिक होने की संभावना थी. 6% का मौजूदा मार्जिन इस बिजनेस की अर्निंग पावर को रिफ्लेक्ट नहीं करता है. लगभग उसी समय, कंपनी के CEO बदल गए. नए CEO इसके पहले पेप्सी के लिए काम कर चुके थे और उन्होंने पेप्सी के स्नैक्स बिजनेस को बदल दिया था. ब्रिटानिया में उनके पहले प्रोजेक्ट में कंपनी के डिस्ट्रीब्यूटर में इन्सेंटिव रीअलाइन करना था यानी अचीवर्स को रिवॉर्ड देना और अंडर परफॉर्मेंस को डिस-इनसेंटिवाइस करना. सिस्टम में नई ऊर्जा का संचार किया गया और अगले दो सालों में, मार्जिन 9% के लेवल तक पहुंचने के लिए स्ट्रीट एक्सपेक्टेशन को पार कर गया. इस दौरान शेयर में 8 गुना तेजी आई.
स्पेशल सिचुएशन इन्वेस्टिंग क्या है और इन्वेस्टर इससे कैसे फायदा उठा सकते हैं?
एक स्पेशल सिचुएशन, आसान शब्दों में कहें तो, एक ट्रिगर के साथ वैल्यू अपॉर्च्युनिटी है. स्पेशल सिचुएशन इन्वेस्टिंग में एक इन्वेस्टर न केवल स्ट्रॉन्ग बिजनेस आइडेंटिफाई करना चाहता है बल्कि वैल्यू अनलॉक करने के लिए ट्रिगर भी.
ये अपॉर्चुनिटी आम तौर पर कॉरपोरेट रिस्ट्रक्चरिंग, डीमर्जर, एसेट सेल, IPO की सब्सिडरीज के दायरे में आते हैं. ये अपॉर्चुनिटी एनालिस्ट कम्युनिटी का कम ध्यान आकर्षित करती हैं. इसलिए यहां फेवरेबल वैल्यूएशन इमर्जिंग की संभावना रिलेटिवली ज्यादा है. इसके अलावा, स्पेशल सिचुएशन इनवेस्टिंग उन अवसरों की पहचान करना है जिनका मार्केट की चाल से अपेक्षाकृत कम संबंध है. ये अवसर फेवरेबल रिस्क-रिवॉर्ड मैट्रिक्स ऑफर करते हैं, जो समयबद्ध तरीके से वैल्यू को अनलॉक करने की क्षमता रखते हैं.
आप किन फैक्टर्स को कंसीडर करते हैं, जो म्युचुअल फंड के स्टॉक में फेरबदल करते हैं?
स्टॉक फेरबदल के कई फैक्टर्स हैं:
– पोजीशन साइज मेंटेन करें यानी अगर कोई स्टॉक 2 गुना बढ़ जाता है और पोर्टफोलियो में उसका पोजीशन साइज 10% तक बढ़ जाता है, तो हम यह सुनिश्चित करने के लिए इसे उतना ट्रिम कर देंगे कि पोजीशन आउटसाइज नहीं हो.
– अगर स्टॉक पर हमारी थीसिस काम नहीं करती है, तो हम एक्सेप्ट करते हैं कि थीसिस ने काम नहीं किया और उस स्टॉक से बाहर निकल जाते हैं.
– अगर हम अपने पोर्टफोलियो होल्डिंग की तुलना में ज्यादा अच्छी अपॉर्चुनिटी आइडेंटिफाई करते हैं, तो हम उस अपॉर्चुनिटी के लिए कैपिटल रिलीज करने के लिए अपनी पोजीशन सेल करते हैं.
– हम कैश बनाने के लिए फेरबदल करते हैं, ऐसे समय में जब मार्केट सही तरीके से आगे बढ़ते हैं और हम इसके चलते एक जनरल मार्केट रिवर्सल की उम्मीद करते हैं.
मार्च 2020 के निचले स्तर के बाद से मजबूत रैली के बाद आप डोमेस्टिक इक्विटी मार्केट को कैसे देखते हैं? क्या आपको लगता है कि बुल रन जारी रहेगा?
मौजूदा मार्केट रैली दो मुख्य कारण: स्ट्रॉन्ग लिक्विडिटी कंडीशन और रोबस्ट अर्निंग ग्रोथ.
जबकि लिक्विडिटी ग्लोबल ईजी मनी पॉलिसी का फंक्शन है, पिछले कुछ सालों में किए गए मेन पॉलिसी रिफॉर्म (GST, RERA, PLI स्कीम, आदि) अर्निंग ग्रोथ को कैटालाइज कर रहे हैं. सिस्टमिक कंजप्शन की डिमांड बढ़ रही है, बिल्डिंग कैपेसिटी में इन्वेस्टमेंट हो रहा है, जो बदले में इम्पलॉयमेंट डिमांड में ग्रोथ की उम्मीद बढ़ा रहा है. यह ग्रोथ साइकिल भारत में अपनी प्रारंभिक अवस्था में है. चूंकि लिक्विडिटी ग्रोथ का पीछा करती है, इसलिए इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि भारत आगामी कुछ तिमाहियों और सालों में कंटिन्यू इनफ्लो को देखेगा. इसलिए, लिक्विडिटी और ग्रोथ इन दो पिलर के दम पर मार्केट को मजबूत रहना चाहिए.
आपको क्या लगता है कि अगले पांच सालों में कौन से पॉकेट इन्वेस्टर्स को अच्छा रिटर्न दे सकते हैं?
हमारा विश्वास है कि एक स्ट्रॉन्ग ब्रॉड-बेस्ड इकोनॉमिक रिकवरी हमारे आगे है. इस तरह की रिकवरी में ज्यादातर सेक्टर हिस्सा लेंगे. हालांकि, हम कुछ ट्रेंड/पॉकेट्स पर फोकस कर रहे हैं जिनमें शामिल हैं:
-चीन+1 – पिछले कुछ सालों में जियो पॉलिटिक्स ने ग्लोबल सप्लाई चेन में चेंज को कैटालाइज किया है. इन चेंज को कोविड 19 के ब्रेकआउट के बाद तेज किया गया है और कंपनियां चीन के अलावा अन्य देशों से मटेरियल की सप्लाई बढ़ाने की सोच रही हैं. भारत के इस मल्टी-ईयर ट्रेंड का एक मुख्य बेनिफिशियरी होने की संभावना है. जिसके चलते जिन सेक्टर को फायदा होगा वो हैं कमिकल, फार्मास्युटिकल API, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटो कंपोनेंट्स, आदि.
-रियल एस्टेट – भारत में रेसिडेंशियल रियल एस्टेट की अफोर्डेबिलिटी 2003 के लेवल के करीब है. इसके अलावा, मॉर्गेज रेट अब तक के निचले स्तर पर हैं. कई दूसरे फैक्टर्स के अलावा, ये फैक्टर RE साइकिल के रिवाइवल के लिए अच्छा संकेत देते हैं. हम अनुमान लगाते हैं कि बिल्डिंग मटेरियल मैन्युफैक्चरर, RE डेवलपर्स, कंज्यूमर ड्यूरेबल कंपनियों, इलेक्ट्रिक कंपनियों, आदि को इस ट्रेंड से फायदा होना चाहिए.
-डोमेस्टिक कंजम्पशन – $2.9 Trn की टोटल GPD में से, लगभग $1.7 Trn का कंट्रीब्यूट कंजम्पशन द्वारा किया जाता है (सोर्स: CEIC, मॉर्गन स्टेनली रिसर्च). इसके अलावा, ग्रोसरी, इलेक्ट्रॉनिक्स, अपैरल और शूज आदि जैसे सेगमेंट की रिटेल सेल लगभग $ 700 बिलियन है. जैसे-जैसे वैक्सीनेशन बढ़ता है, हम उम्मीद करते हैं कि कंजम्पशन में तेजी आएगी, यह देखते हुए कि कुछ अनुमानों के मुताबिक एक्सेस हाउसहोल्ड सेविंग $140 बिलियन की रेंज में रही है.
-डोमेस्टिक कैपिटल एक्सपेंडिचर- बढ़े हुए कंजम्पशन के साथ, कैपेसिटी तेजी से भर रही हैं और कंपनियां नए कैपेसिटी सेटअप के लिए तैयार हैं. मार्च 20 के बाद से भारत के प्राइवेट सेक्टर द्वारा लगभग 6Tr कैपिटल एक्सपेंडिचर की अनाउंसमेंट की गई है. सरकारी अनाउंसमेंट सहित, टोटल कैपेक्स अनाउंसमेंट अब लगभग 10 करोड़ रुपये (सोर्स: निर्मल बांग रिसर्च) हैं. कैपिटल गुड्स, मैन्युफैक्चरिंग, इंफ्रा कंपनियों को इस ट्रेंड से फायदा होगा.
कौन से फैक्टर अब मार्केट को नीचे खींच सकते हैं?
मार्केट के लिए कुछ रिस्क फैक्टर हैं:
-कोविड का नया वेरिएंट और उससे बचाव के लिए वैक्सीनेशन की अक्षमता.
-सेंट्रल बैंकों की ईजी मनी पॉलिसी से महंगाई बढ़ी.
-बैंक NPA साइकिल का वापस आना और ग्रोथ का पीछे जाना.
– डिमांड में कमी के चलते अर्निंग साइकिल का कम होना
आप Q1 अर्निंग सीजन को कैसे देखते हैं? और Q2से आपकी क्या उम्मीदें हैं?
PBT ग्रोथ (एक्स-फाइनेंशियल) 100% के साथ, अर्निंग सीजन स्ट्रीट एक्सपेक्टेशन से बेहतर रहा. Q2 में बेस हाई है, क्योंकि पिछले साल के समान क्वार्टर में अर्निंग में काफी सुधार हुआ था. इसके अलावा, इस साल एडवर्टाइजमेंट/ट्रेवल जैसे कुछ खर्च कुछ हद तक वापस आ गए हैं. ये खर्च पिछले साल न के बराबर थे. रियलाइजेशन और मार्जिन पर कच्चे माल की बढ़ती कीमतों का भी असर दिखेगा. इसलिए, हम Q2 में एक म्यूटेड प्रॉफिटेबल ग्रोथ नंबर देख सकते हैं, जबकि रेवेन्यू ग्रोथ वॉल्यूम और रियलाइजेशन दोनों की वजह से मजबूत हो सकती है.
आपका डेली रूटीन क्या है?
सुबह की शुरुआत पिछले दिन के डेवलपमेंट, कंपनियों पर रिसर्च या मैक्रो रिपोर्ट की डिटेल देने वाले एनालिस्ट की ईमेल पढ़ने से होती है. हम दिन के दौरान कम से कम एक कंपनी की डिटेल एनालाइज करने की कोशिश करते हैं. इसमें एनुअल रिपोर्ट/कॉन कॉल/प्रेजेंटेशन और मैनेजमेंट/स्टेकहोल्डर्स के साथ मीटिंग शामिल हैं. हम अपनी पोर्टफोलियो कंपनियों के डेवलपमेंट पर भी लगातार नज़र रखते हैं. समय-समय पर, हम यह पता लगाने के लिए मैनेजमेंट से बात करते हैं कि परफॉर्मेंस हमारी थीसिस के अनुसार है या नहीं.
बिजनेस के एनालिसिस में नंबर इंपॉर्टेंट होते हैं, लेकिन बिजनेस के नरम पहलुओं को समझना भी उतना ही जरूरी है. प्रॉफिटेबिलिटी मैट्रिक्स, कैपिटल एफिशिएंसी, बैलेंस शीट रेशियो आदि जैसे ऑब्जेक्टिव बिजनेस फैक्टर्स को समझने में नंबर बहुत इंपॉर्टेंट है. स्टेकहोल्डर्स (इंप्लॉई, सप्लायर, कस्टमर), कॉम्पिटेटिव एडवांटेज या इकोनॉमिक मोट और ऑपरेशनल एफिशिएंसी जैसे नरम पहलुओं को समझना भी उतना ही जरूरी है. इसके आधार पर ही, हम तय करते हैं कि किसी अपॉर्चुनिटी में इन्वेस्ट करना है या नहीं.
नए इन्वेस्टर्स को आपकी क्या सलाह है?
मेरी दो सलाह हैं:
-कई महान निवेशकों ने अपने अनुभवों के बारे में विस्तार से लिखा है. मार्केट में रुचि रखने वाला कोई भी निवेशक इन्हें पढ़कर काफी कुछ सीख सकता है. नए निवेशकों को इन लेखों को विस्तार से पढ़ना चाहिए. ये गलतियों को कम करने में मदद करते हैं और निवेशकों को उन पैरामीटर को समझने में मदद करते हैं जो किसी स्टॉक की रिसर्च करने के लिए जरूरी हैं.
-हर दिन एक एनुअल रिपोर्ट पढ़ने की कोशिश करें और कंपनी के बारे में सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी यानी वेबसाइटों, जर्नल्स के जरिए कंपनी को समझने की कोशिश करें. इनका इस्तेमाल करते हुए, एक्सेल फाइनेंशियल मॉडल बनाने का प्रयास करें. यह बिजनेस मॉडल को डीकंस्ट्रक्ट करने में मदद करता है जो कंपनियों को एनालाइज करने के लिए बहुत जरूरी है.
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