बाजार नियामक ने बीते दिनों ओपन-एंडेड म्यूचुअल फंड डेट स्कीम के लिए स्विंग प्राइसिंग प्रणाली का प्रस्ताव रखा. 29 सितंबर से सेबी इस प्रणाली को लागू करने का फैसला किया है. इस प्रणाली से निवेशक, जोखिम का बेहतर प्रबंधन कर सकेंगे. यह प्रणाली तभी काम करेगी जब इन स्कीमों में बहुत अधिक पैसा निकल रहा हो.
म्यूचुअल फंड स्कीम के लिए जब फंड शेयर खरीदते या बेचते हैं तो उन्हें कई तरह का खर्च उठाना होता है. इनमें ब्रोकरेज चार्ज, टैक्स, अतिरिक्त शुल्क वगैरह शामिल हैं. शेयर बाजार में अस्थिरता के दौरान ये लागतें और भी महत्वपूर्ण हो जाती हैं. बहुत अधिक निवेश या फिर निकासी की वजह से बाजार अस्थिर हो जाते हैं.
इस स्थिति में उन निवेशकों पर बुरा असर पड़ता है जो लगातार निवेश कर रहे हैं. यदि किसी स्कीम से बहुत अधिक निकासी हो रही है तो फंड मैनेजरों को किसी भी कीमत पर भारी मात्रा में शेयर बेचने पड़ जाते हैं. और इसका खर्च उन निवेशकों को उठाना पड़ता है जो अभी भी उस स्कीम पर बने हुए हैं.
TRUST Mutual Fund के सीईओ संदीप बागला का कहना है, “विकसित देशों में स्विंग प्राइस प्रणाली लागू है और इसे भारतीय MF बाजार में भी लागू किया जा रहा है. इससे उन मौजूदा निवेशकों को फायदा होगा, जिन्हें स्कीम में से निकासी की वजह से अतिरिक्त लागत का बोझ उठाना पड़ता है.”
स्विंग प्राइसिंग की न्यूनतम सीमा तय करने का मापदंड एम्फी तय करेगी और एसेट मैनेजमेंट कंपनियों (AMC) को इसका पालन करना होगा. इस दौरान AMC को उन तत्वों को शामिल करने की अनुमति दी जा सकती है, जो संबंधित म्यूचुअल फंड स्कीम के अनुसार जरूरी हों. AMC स्विंग प्राइस का निर्धारण करेगी और स्कीम-विशिष्ट मामलों के हिसाब से सामान्य समय के लिए स्विंग की मात्रा तय करेगी. AMC, इन जानकारियों को अपने स्कीम इनफार्मेशन डाक्यूमेंट (SID) में जारी करेगी.
AMFI सेबी के समक्ष इस बारे में मापदंड उपलब्ध कराएगी, ताकि सेबी बाजार की अस्थिरता की माप कर सके. अस्थिर बाजार की घोषणा के बाद सेबी निवेशकों के लिए एक निश्चित अवधि के लिए स्विंग प्राइसिंग की सूचना देगा. स्विंग प्राइसिंग प्रणाली केवल ओपन-एंडेड डेट स्कीमों पर लागू होगी. यह ओवरनाइट फंड, गिल्ट फंड या 10 साल के गिल्ट फंड पर लागू नहीं होगी.
इस प्रणाली को लंबी अवधि के निवेशकों के हित को अपनाया जा रहा है. सेबी चाहता है कि किसी स्कीम से भारी निकासी की स्थिति में मौजूदा निवेशकों को कोई नुकसान न हो.
मसलन, जब डेट फंड से भारी निकासी होती है तो फंड मैनेजरों को उच्च गुणवत्ता वाले लिक्विड पेपर को बेचना पड़ता है, ताकि निकासी के दबाव से बचा जा सके. इससे मौजूदा निवेशकों को दोयम दर्जे के पेपर से संतोष करना पड़ता है, जिन्हें सेकेंडरी मार्केट में बेचने में दिक्कत होती है, क्योंकि शेयर मार्केट की तरह तरल नहीं होते.
स्विंग प्राइसिंग से फंड के नेट एसेट वैल्यू को एडजस्ट करना आसान हो जाएगा. इससे फंड से भारी निकासी के दौरान होने वाले खर्च का प्रबंधन किया जा सकेगा. यानी इस खर्च को उन निवेशकों को उठाना होगा, जो फंड से भारी निकासी या भारी निवेश कर रहे हैं.
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