बाजार नियामक सेबी (Sebi) ने फाइनेंशियल मार्केट का दायरा बढ़ाने के उद्देश्य से 28 सितंबर को गोल्ड एक्सचेंज (gold exchange) और सोशल स्टॉक एक्सचेंज (social stock exchange – SSE) से जुड़े फ्रेमवर्क को मंजूरी दे दी है. SSE के जरिए सामाजिक क्षेत्र की कंपनियां खुद को मार्केट पर लिस्ट कर के फंड जुटा सकते हैं.
सेबी ने सिल्वर एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (silver exchange traded fund) पेश करने के लिए भी नियमों में बदलाव किए हैं. इन्हें गोल्ड ETF के मौजूदा रेगुलेटरी नियमों के साथ कुछ अतिरिक्त सुरक्षा बढ़ाते हुए लाया गया है.
देशव्यापी गोल्ड स्पॉट एक्सचेंज से धातु की असल कीमतों का पता लगा पाना आसान हो जाएगा. अभी स्पॉट गोल्ड राज्य से राज्य में बदल जाता है, जबकि GST रेट वही रहता है. यह भी गौर करने वाली बात है कि गोल्ड को इधर से उधर ले जाना जोखिम से भरा होता है. देश में अब तक ई-गोल्ड या डीमैट का चलन नहीं बन पाया है. MCX जैसे सभी बड़े एक्सचेंज पर यह एक डेरिवेटिव इंस्ट्रूमेंट की तरह ही ट्रेड होता है. इनपर गोल्ड की फिजिकल डिलीवरी (इलेक्ट्रॉनिक रूप में) बिल्कुल न के बराबर है.
सिल्वर ETF लॉन्च होने से इसमें निवेश करना आसान हो जाएगा. जो निवेशक फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स और उनसे जुड़े खतरों से परेशान हो चुके हैं, उनको यह तरीका बेहतर लगेगा. उन्हें धातु की शुद्धता या चोरी की चिंता नहीं करनी पड़ेगी. एसेट को प्रोफेशनल वॉल्ट मैनेजर संभालेंगे.
वहीं, SSE से सोशल एंटरप्राइजेज को फंड जुटाने में मदद मिलेगी. यह मौजूदा स्टॉक एक्सचेंज का एक अलग सेगमेंट होगा. यह एक अच्छा कदम है और इससे प्राइवेट और नॉन-प्रॉफिट सेक्टर की कंपनियों के लिए कैपिटल का नया रास्ता खोलेगा.
सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाली वे फर्में SSE का हिस्सा बन सकती हैं जो नॉन-प्रॉफिट ऑर्गनाइजेशन (NGO) या फॉर-प्रॉफिट सोशल एंटरप्राइज होने के साथ सामाजिक बदलाव लाने के लक्ष्य के साथ काम कर रही हैं. नए फैसले से NGO खुद को बाजार पर लिस्ट करा सकेंगी.