कहते हैं “देर से आए पर दुरुस्त आए”, ये कहावत सही बैठती है बाजार नियामक सेबी (Securities exchange board of India – SEBI) के नए फ्रेमवर्क पर. दरअसल सेबी ने नया फ्रेमवर्क बनाया है जिसमें ग्राहकों स्तर पर कोलैट्रल के सेग्रीगेशन (segregation) और मॉनिटरिंग (monitoring) की बात की गई है. यह कदम तब उठाया गया है जब दलालों के डिफॉल्ट करने और ग्राहकों की सिक्योरिटीज और फंड्स के दुरुपयोग के कई मामले सामने आए हैं. हालांकि, डेरिवेटिव्स ट्रेडिंग (derivatives trading) के लिए ब्रोकरों द्वारा मार्जिन लेना लगभग दो दशक पहले शुरू हुआ था.
अब तक, स्टॉक एक्सचेंजों के क्लियरिंग कॉरपोरेशन्स (CC) ने इकट्ठे किए गए सभी मार्जिन को ट्रेडिंग सदस्यों (TM, जो कि एक ब्रोकर है) या क्लियरिंग सदस्यों (CM) का ही माना था फिर चाहे वो ग्राहकों से संबंधित ही क्यों ना हों.
सेबी के सर्कुलर में क्या है?
सेबी (Sebi ) ने अपने सर्कुलर में कहा है, क्लियरिंग कॉर्पोरेशन्स को अब एक रिपोर्टिंग मैकेनिजम बनाने की जरूरत होगी जो ग्राहकों के कोलैट्रल के बारे में सारी जानकारी रखेगा जिसमें कैश और नॉन-कैश दोनों ही शामिल होंगे. रिपोर्टिंग संरचना कुछ ऐसी होनी चाहिए जहां हर ग्राहक के कोलैट्रल के सेगमेंट आधारित (segment wise) और एसेट टाइप वाइस (asset type-wise) दोनों ही ब्रेकअप की जानकारी अलग-अलग हो.
इस कदम से ग्राहक के कोलैट्रल की सुरक्षा के सिस्टम को और मजबूती मिलेगी. अब चाहे वो ट्रेडिंग सदस्य (TM) या क्लियरिंग सदस्य (CM) द्वारा कोलैट्रल के दुरुपयोग की बात हो या फिर और दूसरे ग्राहकों की किसी भी चूक की वजह से खड़ी परेशानी की.
रेगुलेटर ने कहा कि स्टॉक एक्सचेंजों द्वारा एक वेब पोर्टल की सुविधा भी दी जानी चाहिए ताकि ग्राहकों को दलालों द्वारा पेश की गई अलग-अलग कोलैट्रल रिपोर्टिंग देखने की अनुमति मिल सके.
सेबी ने यह भी कहा कि बैंक गारंटी के मामले में ब्रोकर बैंक गारंटी के बिना फंड वाले हिस्से को मालिकाना कोलैट्रल के तौर पर मान सकता है. सेबी ने मंगलवार को एक सर्कुलर में कहा, “सदस्यों द्वारा किसी भी गलत एलोकेशन को उल्लंघन माना जाएगा और इस तरह के सदस्यों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी.”