प्रमुख स्टॉक एक्सचेंज एनएसई (NSE) ने देश में लोगों की बचत करने की परंपरा को इक्विटी निवेश की ओर लाने में मदद की है. चालू वित्त वर्ष में 50 लाख से अधिक नए निवेशक बाजार में आए हैं. एनएसई के एमडी और सीईओ विक्रम लिमये ने इस बात की रविवार को जानकारी दी. उन्होंने कहा कि यह पिछले वित्त वर्ष (2020-2021) में जोड़े गए लगभग 80 लाख नए निवेशकों के पंजीकरणों की कुल संख्या के 62.5 प्रतिशत के बराबर है.
लिमये के मुताबिक, एनएसई, जो छोटे ऑर्गेनाइजेशन और खुदरा निवेशकों को समर्थन देने में सबसे आगे रहा है, इसमें इस साल अप्रैल से अभी तक 50 लाख से ज्यादा नए निवेशकों के रजिस्ट्रेशन हुए हैं. पिछले कुछ वर्षों के दौरान डायरेक्ट रिटेल पार्टनरिशप काफी मजबूत हुई है. इसके चलते जो नए इंवेस्टरों में तेज वृद्धि और ओवरऑल मॉर्केट टर्नओवर में इंडीविजुवल इंवेस्टर की हिस्सेदारी में वृद्धि में हुई है.
लिमये ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर कहा कि, 600 से ज्यादा शहरों में एनएसई के वाइड इंवेस्टर एजूकेशन पोग्राम पूरे भारत में फाइनेंशियल लिटरेसी में उल्लेखनीय वृद्धि, जिससे रिटेल भागीदारी में सुधार हुआ है. वहीं इक्विटी बाजारों में निरंतर वृद्धि हुई है, जिससे एनएसई में 1.70 करोड़ की वृद्धि हुई है. उन्होंने कहा कि एनएसई के इक्विटी और इक्विटी डेरिवेटिव सेगमेंट में औसत दैनिक कारोबार में पिछले वित्त वर्ष में क्रमशः 70 प्रतिशत और 32 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई, जो कि खुदरा क्षेत्र की भागीदारी में वृद्धि के कारण हुई है.
उन्होंने कहा कि भारत की युवा जनसांख्यिकी इसकी सबसे बड़ी संपत्ति है जो विश्व स्तर पर अपनी कांप्पीटेटिवनेस और प्रभाव को मजबूत कर सकती है. वहीं जैसे-जैसे भारत एक आत्मनिर्भर राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर होता है. हम सभी को दीर्घकालिक सतत विकास और विकास के लिए अनुकूल सही वातावरण और बुनियादी ढांचे के निर्माण की दिशा में प्रयास करने की जरूरत है. लिमये ने भारत के इकोनॉमिक लिब्राइजेशन के 30 साल पूरे होने का जिक्र करते हुए कहा कि “दो महत्वपूर्ण विकास जिन्होंने 1990 के दशक की उदारीकरण नीति के दौरान पूंजी बाजार के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया उनमें से एक बाजार रेगुलेटर की स्थापना – सेबी और स्टॉक एक्सचेंजों का डिमॉटाइजेशन शामिल था.
उन्होंने माल और सेवा कर (जीएसटी) शासन की शुरुआत का उल्लेख किया जिसने कर संरचना में क्रांति ला दी और सिंगल इंटीग्रेटेड मार्केट की सुविधा प्रदान की. वहीं दिवाला और दिवालियापन संहिता (आईबीसी) की शुरुआत की जिसने देनदारों और लेनदारों और मेक इन इंडिया और स्टार्ट अप के लिए एक फॉर्मल रेगुलेशन फ्रेमवर्क उपलब्ध कराया. उनके मुताबिक, इन उपायों से भारतीय अर्थव्यवस्था को नई गति मिलने की उम्मीद है.
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