इंडियन इक्विटी मार्केट पर अपने तेजी के व्यू को बरकरार रखते हुए जैफरीज में इक्विटी स्ट्रैटेजी के ग्लोबल हेड क्रिस्टोफर वुड (Chris Wood) का मानना है कि ग्लोबल रिस्क ऑफ के चलते भारतीय इक्विटी बाजारों के कमजोर पड़ने की संभावना है, लेकिन वह अपने तेजी के व्यू को बरकरार रखे हुए हैं. साथ ही अपने पोर्टफोलियो में 2 फीसदी हिस्सेदारी भी बढ़ा चुके हैं.
निवेशकों के लिए अपने साप्ताहिक नोट में ग्रीड एंड फियर को लेकर उन्होंने कहा कि अगर भारतीय इक्विटी बाजार में टेपरिंग के डर से एक शार्प करेक्शन आता है, तो उनके हिसाब से ये खरीदारी करने का बहुत अच्छा मौका होगा.
वुड के मुताबिक 12 महीने की फॉरवर्ड अर्निंग्स के 21.5 गुना के हाई वैल्यूएशन के बावजूद भारतीय बाजार पर उनका व्यू पॉजिटिव है और आने वाले समय में उन्हें भारतीय बाजार में अच्छी ग्रोथ की उम्मीद है.
वुड ने आगे कहा कि एक नई मनी साइकल की शुरुआत हो चुकी है. एक व्यापक पूंजीगत व्यय चक्र भी जल्दी या बाद में आना चाहिए, जबकि सबसे अच्छी कंपनियों ने आवासीय संपत्ति और आवास वित्त और वास्तव में सामान्य रूप से उपभोक्ता वित्त जैसे क्षेत्रों में ट्रिगर से लाभ उठाया है. इस बीच, केंद्र सरकार मजबूती से विकास समर्थक बनी हुई है.
ग्रीड एंड फियर से भी बड़ा रिस्क अभी कोरोना महामारी की तीसरी लहर है. लेकिन इस रिस्क को दुनिया के साथ बांटा जा सकता है. वहीं, वुड का मानना है दूसरा रिस्क केंद्रीय बैंक की डोविश पॉलिसी में बदलाव है. भारतीय रिजर्व बैंक हाल में हुई बैठकों में इन्फ्लेशन फॉरकास्ट के अनुमान बढ़ा रहा है, लेकिन अभी तक नीति में बदलाव का निर्देश नहीं दिया है.
आरबीआई ने 4-6 अगस्त को अपनी बैठक में इस वित्तीय वर्ष के लिए अपने सीपीआई इन्फ्लेशन फॉरकास्ट को बढ़ाकर 5.7% कर दिया. जो जून में 5.1 % प्रोजेक्टेड थी. अभी भी ओपन मार्केट ऑपरेशंस (OMO) कार्यक्रम के तहत RBI की बॉन्ड खरीद जारी है, जबकि दरों में बढ़ोतरी के बारे में अभी तक कोई बात नहीं कही गयी है. पॉलिसी रेपो रेट वर्तमान में 4.0% है. आपको बता दें RBI की अगली बैठक 6-8 अक्टूबर होनी है.
शेयर मार्किट के स्टैंडपॉइन्ट पर वुड का कहना है कि उम्मीद से जल्द ही टेपरिंग आ रही है. इससे इक्विटी में ट्रेड पर रिस्क में कुछ उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकते हैं. और ये ट्रेजरी बॉन्ड यील्ड्स को अधिक बढ़ने का एक कारण दे सकती है.
यह इस फैक्ट के बावजूद है कि अपस्फीति के युग में टेपरिंग साइकल के लगभग 13 साल के इतिहास से पता चलता है कि ट्रेजरी बॉन्ड की कीमतों के लिए टेपरिंग तेज रही है. क्योंकि यह केंद्रीय बैंक की संपत्ति की खरीद और बॉन्ड के लिए मंदी की तरह रहा है.