बाजार नियामक सेबी (SEBI) के बोर्ड ने मंगलवार को कई सुधारों का ऐलान किया है. इसमें गोल्ड एक्सचेंज के साथ ही सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियों के लिये पूंजी जुटाने का रास्ता खोलते हुए सोशल स्टॉक एक्सचेंज (Social stock exchange) खोलने के लिए फ्रेमवर्क को मंजूरी दे दी है. सेबी के चेयरमैन अजय त्यागी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा है कि सोशल स्टॉक एक्सचेंज को लाने के प्रस्ताव को सेबी के बोर्ड ने मंजूरी दे दी है. इस दरवाजे के खुलने से सामाजिक सेक्टर में काम करने वाली कंपनियां आसानी से बाजार से पैसा जुटा सकेंगी.
यहां हम आपको इस बारे में बताने जा रहे हैं कि आखिर ये सोशल स्टॉक एक्सचेंज कैसा होगा और किस तरह से काम करेगाः
क्या है सोशल स्टॉक एक्सचेंज?
SSE यानी सोशल स्टॉक एक्सचेंज के जरिए नॉन-प्रॉफिट या नॉन-गवर्नमेंट ऑर्गनाइजेशंस खुद को स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट करा पाएंगे. इस तरह से इन संगठनों को पैसे जुटाने का एक वैकल्पिक तरीका मिल जाएगा. इन्हें बीएसई या नेशनल स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट किया जा सकता है. कनाडा, यूके और ब्राजील जैसे देशों में SSE हैं.
मार्केट साइज
सेबी के मुताबिक, भारत में कम से कम 31 लाख NPO हैं. ये संख्या देश में मौजूद कुल स्कूलों का तकरीबन दोगुना है और सरकारी हॉस्पिटलों का करीब 250 गुना है. हर 400 भारतीयों पर करीब एक NPO मौजूद है.
मकसद
ड्राफ्ट रिपोर्ट के मुताबिक, SSE सोशल कैपिटल के एक बड़े पूल का इस्तेमाल कर पाएंगे और इससे एक ब्लेंडेड फाइनेंस स्ट्रक्चर को बढ़ावा मिलेगा ताकि परंपरागत पूंजी सोशल कैपिटल के साथ मिलकर कोविड19 की मौजूदा चुनौती का सामना करने में इस्तेमाल हो सके.
ये कैसे काम करेगा?
सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE) मौजूदा स्टॉक एक्सचेंजों के तहत एक अलग सेगमेंट होगा. इसका मतलब है कि SSE न सिर्फ एक ऐसी जगह होगी जहां सिक्योरिटीज या दूसरे फंडिंग स्ट्रक्चर्स लिस्टेड होंगे, बल्कि इसमें कई प्रक्रियाएं भी शामिल होंगी.
टैक्स बेनेफिट
पिछले साल ड्राफ्ट रिपोर्ट में कहा गया था कि SSE कॉरपोरेट्स और सामाजिक कामों में लगे संगठनों को योगदान देने के लिए आमंत्रित कर सकता है. इस तरह से इन्हें 80G के तहत टैक्स के फायदे मिल सकते हैं.