सेंसेक्स (Sensex) के 60 हजार के पार और निफ्टी (Nifty) के 18 हजार के आंकड़े को छूने के बाद, अब वैल्यूएशन (valuation) और ओवर वैल्यूएशन (over valuation) को लेकर निवेशकों के मन में बहुत सारे सवाल हैं. अंदाजन 4008 में से 99 स्टॉक्स, मतलब तकरीबन 25 फीसदी स्टॉक अभी भी अपने 200 दिन के मूविंग औसत पर हैं. हालांकि वैल्यूएशन के लिहाज से इसका ज्यादा मतलब नहीं है, लेकिन यह संकेत देता है कि हम अभी भी पूरी तरह से तेजी के बाजार में नहीं हैं.
वैल्यूएशन के मामले में कई फैक्टर काम करते हैं, लेकिन आंतरिक मूल्य और स्टॉक के लेनदेन मूल्य पर प्रमुख रूप से निर्भरता होती है. लेन-देन मूल्य बाहरी कारकों, जैसे बाजार आशावाद/निराशावाद, लिक्विडिटी की स्थिति, मांग और आपूर्ति अंतराल आदि को शामिल करने का प्रयास करता है.
जैसा कि हमने देखा है कि ग्लोबल लिक्विडिटी की बाढ़ है, जिसे दुनियाभर के सेंट्रल बैंकों द्वारा फैलाया गया है. उस पैसे का बड़ा हिस्सा सीधे रिटेल निवेशकों को ट्रांसफर कर दिया गया है, जिन्होंने क्रिप्टोकरेंसी, कमॉडिटी और इक्विटी जैसी जोखिम वाली संपत्तियों में रास्ता खोज लिया है.
इसके अलावा, जेनरेशन Z की एंट्री के साथ बहुत सारा नया पैसा भी बाजारों में आया है. महामारी ने लोगों को घर पर रहने के लिए मजबूर किया तो ट्रेड के जरिए लोगों ने खुद को व्यस्त रखना शुरू कर दिया.
निफ्टी 500, जो एक व्यापक मार्केट इंडेक्स है, उसका प्राइज-टू-इक्विटी (P/E) 28 और प्राइज-टू-बुक (P/B) 4.3 के साथ-साथ 1% डिविडेंट यील्ड है. यह ऐसे समय में है जब महामारी के कारण पिछले 12 महीनों की कॉरपोरेट कमाई पर शायद प्रभाव पड़ा है. अगर आप 10% की औसत आय वृद्धि और अन्य 6% की महंगाई पर विचार करते हैं, तो P/E रेशियो और भी कम हो जाएगा.
निवेशक के रूप में, आपको उन व्यवसायों पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो आपके पास हैं. इंडेक्स स्तरों पर तय करने के बजाय मूल्यांकन, विकास की संभावनाओं और उनमें जोखिम को देखना चाहिए.
वर्तमान में बेंचमार्क सेंसेक्स लगभग 150 अंक बढ़कर 60,196 पर कारोबार कर रहा है, जो रिलायंस इंडस्ट्रीज, HDFC बैंक और मारुति सुजुकी जैसे बड़े स्टॉक्स में बढ़त के कारण है. दूसरी ओर, NSE निफ्टी इंडेक्स करीब 38 अंक बढ़कर 17,890 पर दिखा.
(लेखक इंटेलसेंस कैपिटल के चीफ इक्विटी एडवाइजर हैं. ये उनके निजी विचार हैं)