ग्लोबल ब्रोकरेज फर्म मॉर्गन स्टेनली का मानना है कि भारत अगले साल तक ग्लोबल बांड सूचकांक (global bond index) में शामिल हो जाएगा. इसने यह भी अनुमान लगाया कि अगले दशक में बेस और बुल परिदृश्य में इंडेक्स इनक्लूसन बांड में इनफ्लो क्रमशः 170 अरब डॉलर और 250 अरब डॉलर को आकर्षित करेगा.नतीजतन, इसका अर्थव्यवस्था, विदेशी मुद्रा, बांड प्रतिफल और इक्विटी बाजारों पर भारी प्रभाव पड़ेगा.
इक्विटी बाजार पर अपने विचार साझा करते हुए, मॉर्गन स्टेनली ने कहा कि सॉवरेन बॉन्ड बाजार के खुलने और इनफ्लो के परिणाम से इक्विटी रिटर्न के लिए अच्छी खबर आनी चाहिए. ग्रोथ में पॉजिटिव प्रभाव दिखने के लिए ब्याज दरों में कमी का शुक्रिया कहना चाहिए.
मॉर्गन ने कहा “हमारा मानना है कि यह भारत की वापसी सहसंबंधों में गिरावट के मामले को बढ़ा देता है. हम देखते हैं कि बैंकों को मजबूत विकास और कम उधारी लागत से फायदा हो रहा है. बड़े निजी बैंकों को इसमें ज्यादा फायदा है. गैर-बैंक फाइनेंशियल्स में जिनको फायदा हुआ उनमें प्रमुख रूप से एचडीएफसी, बजाज फाइनेंस, एसबीआई कार्ड्स, महिंद्रा फाइनेंस और चोलामंडलम फाइनेंस शामिल हैं.”
विदेशी फाइनेंशियल फर्म का ये कहना है कि लंबी अवधि की ब्याज दरें, जैसा कि 10 साल की यील्ड में देखने को मिल सकता है, इक्विटी वैल्यूएशन के रिलेटिव लॉन्ग टर्म ब्याज दरों में इक्विटी रिटर्न भविष्य में अपार संभावनाएं. इक्विटी/बॉन्ड वैल्यूएशन 2010-21 की रेंज के शीर्ष पर हैं – ये एक ऐसी अवधि है जिस दौरान भारत ने सबसे लंबा मंदी का दौर देखा है.
मॉर्गन स्टेनली के मुताबिक “अगर ग्रोथ की रफ्तार यहां से तेज होती है, तो जैसा कि हम उम्मीद करते हैं, तो यह संभावना है कि इक्विटी इस सीमा को लांघ जाए. जैसा उन्होंने 2004 और 2007 के बीच देखा गया.”
रिपोर्ट के मुताबिक भारत सरकार के बॉन्ड (IGB) के विदेशी स्वामित्व में गिरावट आ रही है, लेकिन 2022 एक महत्वपूर्ण मोड़ होगा जो बॉन्ड प्रवाह में तेजी ला सकता है. GBI-EM और ग्लोबल एग्रीगेट इंडेक्स में 2022 की शुरुआत में भारत को शामिल करने की संभावना है.
आगे कहा गया कि “हमें उम्मीद है कि 2022/23 में एकबारगी इंडेक्स इनफ्लो $40 अरब होगा, इसके बाद अगले दशक में 18.5 बिलियन डॉलर का सालाना इनफ्लो देखने को मिल सकता है, जो 2031 तक विदेशी स्वामित्व को 9% तक बढ़ा देगा.”
मॉर्गन स्टेनली ने आगे बताया कि नीति निर्माताओं का निवेश के जरिए ग्रोथ रेट को आगे बढ़ाना एक अच्छा संकेत है.” यह भारत के पेमेंट बैलेंस को स्ट्रक्चरअल सरप्लस जोन में धकेलेगा, अप्रत्यक्ष रूप से कैपिटल की कम लागत के लिए एक वातावरण तैयार होगा और आखिरकार जो विकास के लिए सकारात्मक होगा.”
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