शेयर मार्केट निवेशकों में इन दिनों स्मॉलकेस (Smallcase) को लेकर काफी हलचल दिखाई दे रही है. स्मॉलकेस (Smallcase) में 200 फीसदी तक के रिटर्न का कारण बताकर कुछ इनवेस्टमेंट एडवाइजर्स निवेशकों को इसके साथ जुड़ने की सलाह दे रहे हैं.
ऐसे हालात में क्या उनकी सलाह माननी चाहिए? म्यूचुअल फंड के मुकाबले ज्यादा रिटर्न कमाने का मौका पाने की उनकी सलाह क्या सही है? ये सवालों के जवाब ढूंढने से पहले स्मॉलकेस (Smallcase) को समझना जरूरी है.
स्मॉलकेस (Smallcase) क्या है?
स्मॉलकेस (Smallcase) यानी ऐसी बास्केट जिसमें कोई आइडिया, स्ट्रैटेजी, थीम या सेक्टर आधारित 12-15 स्टॉक्स/ETFs एक साथ इकट्ठा किए गए होते हैं.
इसको SEBI-रजिस्टर्ड प्रोफेशनल्स द्वारा तैयार किया जाता है और मैनेज किया जाता है. स्मॉलकेस (Smallcase) इक्विटी निवेश का प्लेटफॉर्म है जो कि खासतौर पर थीमेटिक और पोर्टफोलियो आधारित निवेश को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं.
स्मॉलकेस (Smallcase) का उदाहरण
मान लीजिए, इनवेस्टमेंट प्रोफेशनल्स को ऐसा लगता है कि कोरोना की वजह से फार्मा सेक्टर के शेयरों में निवेश करने से अच्छा रिटर्न मिल सकता है.
सिर्फ एक फार्मा शेयर में निवेश करने का जोखिम कम करने के लिए वे फार्मा सेक्टर के 10-15 स्टॉक को इकट्ठा करके एक बास्केट तैयार करते हैं, जिसे फार्मा स्मॉलकेस (Smallcase) कह सकते है.
ऐसे ही विभिन्न सेक्टर या थीम या स्ट्रैटेजी के आधार पर स्मॉलकेस (Smallcase) तैयार किए जाते हैं और उसमें निवेश करने की कीमत तय की जाती है. एक स्मॉलकेस (Smallcase) 11,000 रुपये से लेकर 50,000 रुपये तक का हो सकता है.
चार्ज
स्मॉलकेस (Smallcase) को बनाना और उसे मैनेज करने का काम प्रोफेशनल करते हैं, जिसके के लिए वो फिक्स्ड चार्ज लेते हैं, ये चार्ज आपके पॉर्टफोलियो का 1-2 फीसदी हो सकता है या अधिकतम 10,000 रुपये सालाना हो सकता है.
शेयर खरीदने या बेचने पर ब्रोकरेज कंपनी को अलग-अलग चार्ज देने पड़ते हैं, वैसे ही स्मॉलकेस (Smallcase) में ये चार्ज जितने शेयर होंगे उस हिसाब से देना पड़ता है. म्यूचुअल फंड में ऐसे चार्ज नहीं चुकाने पड़ते, लेकिन एक्सपेंस रेशियो के तहत 1.5-3% तक चार्ज लगता है.
रीबैलेंसिंग से जुड़ा रिस्क
स्मॉलकेस (Smallcase) में रीबैलेंसिंग होती रहती है, यानी कि कुछ शेयर बेचे जाते हैं और नए शेयर खरीदे जाते हैं. जब ऐसा होगा तब आपको नए ट्रांजैक्शंस के लिए चार्ज देने होंगे. पोर्टफोलियो रीबैलेंसिंग करते वक्त टैक्स भी चुकाना पड़ता है.
म्यूचुअल फंड में तो फंड मेनेजर सिक्योरिटीज का रीबैलेंसिंग करता है, वहीं स्मॉलकेस (Smallcase) में ये आजादी निवेशक को मिलती है, जिसकी वजह से उनके पोर्टफोलियो पर असर पड़ने की संभावना बढ़ जाती है.
म्यूचुअल फंड बनाम स्मॉलकेस (Smallcase)
म्यूच्युअल फंड इनवेस्टमेंट का साधन है, वहीं स्मॉलकेस (Smallcase) एक प्लेटफॉर्म है, इसलिए दोनों की तुलना नहीं हो सकती.
आनंद राठी प्राइवेट वेल्थ के डिप्टी CEO फिरोज अजीज बताते हैं, “म्यूचुअल फंड का सबसे बड़ा फायदा कंपाउंडिंग का है, क्योंकि डिविडेंड पूरी तरह से वापस इनवेस्ट किया जाता है. स्मॉलकेस (Smallcase) में जो डिविडेंड मिलेगा उसे बैंक अकाउंट में जमा किया जाता है, ऐसे में उसे वापस इनवेस्ट करने से पहले टैक्स चुकाना पड़ेगा. आप ऐसा बकेट तो नहीं चाहेंगे जिसमें लीकेज हो.”
स्मॉलकेस (Smallcase) किनके लिए बेहतर हैं
स्मॉलकेस (Smallcase) ऐसे निवेशकों के लिए बेहतर प्रोडक्ट हैं जो पहले से म्यूचुअल फंड के जरिए शेयर मार्केट के साथ जुड़े हुए हैं.
एक्सपर्ट बताते हैं कि 3-4 चार वर्षों से म्यूचुअल फंड में निवेश करने के बाद जिनको ऐसा लगता है कि उन्हें शेयर मार्केट में सीधे निवेश करना है उनके लिए ये अच्छा प्रोडक्ट है.
यदि म्यूचुअल फंड को बोर्ड एग्जाम मान लें तो स्मॉलकेस (Smallcase) को ग्रेजुएशन कोर्स कह सकते हैं क्योंकि इसमें आपको रिसर्च करने का मौका मिलता है.