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बाजार में लिक्विडिटी घटने का असर, शॉर्ट टर्म फाइनेंस दरों में अचानक आया उछाल

Finance Rates: छह महीने के गेज के लिए कट-ऑफ यील्ड की प्राथमिक नीलामी में 3.83 प्रतिशत थी, जो 20 अक्टूबर को 3.70 प्रतिशत और 13 अक्टूबर को 3.64 फीसद थी.

  • Money9 Hindi
  • Last Updated : October 28, 2021, 14:14 IST
बांड पर मिलने वाले ब्याज को बांड यील्ड कहा जाता है. बांड पर पहले से ही तय दरों पर ब्याज मिलता है. इसमें किसी तरह का कोई बदलाव नहीं होता
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Finance Rates: बीते दो हफ्ते में भारत के शॉर्ट टर्म Finance Rates में वृद्धि हुई है. क्योंकि, केंद्रीय बैंक ने लिक्विडिटी के सामान्य स्तर के साथ अर्थव्यवस्था को संचालित करने की तैयारी कर रहा है. इसके चलते सामान्य रूप से उच्च आधार वाले बाजार गेज को नजरअंदाज किया जा रहा है. इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार भारतीय रिजर्व बैंक की पिछली दो बोलियों की प्राथमिक नीलामी में बुधवार को ट्रेजरी में 14-19 बेसिस प्वाइंट्स की वृद्धि हुई है. बाजार की अटकलें हैं कि रेपो दर, या जिस दर पर बैंक आरबीआई से अल्पावधि उधार लेते हैं, वह जल्द ही रिवर्स रेपो के बजाय ऑपरेशनल रेट बन जाएगा, जिससे प्रतिफल भी सख्त होगा. रेपो रेट अभी 4 प्रतिशत पर है जबकि रिवर्स रेपो रेट 3.35 प्रतिशत पर. ये वो दर है जिस पर बैंक अपना सरप्लस सेंट्रल बैंक के पास रखते हैं.

लिक्विडिटी सामान्य बनाने के प्रयास

जेएम फाइनेंशियल के डेट कैपिटल मार्केट के मैनेजिंग डायरेक्टर अजय मंगलुनिया ने कहा, टी-बिल्स यील्ड में बढ़ोतरी से दरों में धीरे-धीरे सख्त होने की स्पष्ट झलक मिलती है. हमारे पास जल्द ही रिवर्स रेपो के बजाय ऑपरेटिंग दर के रूप में रेपो होगा.

केंद्रीय बैंक भी लिक्विडिटी को सामान्य बनाए रखने के लिए इस कदम का समर्थन कर रहा है. जेएम फाइनेंशियल रिसर्च के आंकड़ों के अनुसार छह महीने के गेज के लिए कट-ऑफ यील्ड बुधवार की प्राथमिक नीलामी में 3.83 प्रतिशत थी, जो 20 अक्टूबर को 3.70 प्रतिशत और 13 अक्टूबर को 3.64 प्रतिशत थी.

ट्रेजरी बिल अल्पकालिक संप्रभु ऋण प्रतिभूतियां हैं. वर्किंग कैपिटल जुटाने के लिए कंपनी जो कमर्शियल पेपर बेचती है और छोटी अवधि के डेब्ट इंस्ट्रूमेंट्स के लिए ये एक बेंचमार्क व्यू देती हैं.

तीन महीने का गेज कट-ऑफ 3.56 प्रतिशत बनाम 3.45 प्रतिशत एक सप्ताह पहले और एक पखवाड़े पहले 3.39 प्रतिशत था.

Emkay Global के इंवेस्टमेंट हेड यतिन सिंह के मुताबिक वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतों के बढ़ने जैसे मैक्रो इकोनॉमिक फैक्टर्स के चलते दरों के नॉर्थवार्ड जाने की संभावना है.

राज्य सरकारें और कॉरपोरेट्स भी, अब अर्थव्यवस्था के फिर से खुलने के साथ और अधिक उधार लेंगे. आने वाले समय में लिक्विडिटी सामान्य होने से फंडिंग की लागत भी बढ़ना शुरू होगी.

आरबीआई का सुझाव

आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक 26 अक्टूबर को बैंकिंग प्रणाली में लगभग 6.94 लाख करोड़ रुपये का सरप्लस था, जबकि 12 अक्टूबर को यह 7.71 लाख करोड़ रुपये था.

सप्लाई के संकट के बीच कच्चे तेल की कीमतों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में 13 प्रतिशत का उछाल आया है. Goldman Sachs के अनुमान के मुताबिक, अगले साल तक कच्चे तेल की कीमतें 110 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती हैं, जो मौजूदा स्तर से 30 फीसदी ज्यादा है.

मॉनेटरी पॉलिसीज की समीक्षा करते हुए आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि लिक्विडिटी पर एक बिंदू पर सहमति बन रही है.

फाइनेंशियल स्थिरता बनाए रखने के लिए संकट के इस दौर में सामान्य लिक्विडिटी बनाए रखने के लिए वित्तीय स्थिरता और आर्थिक सुधारों के बीच तालमेल बनाए रखने की जरूरत होगी.

आठ नवंबर को उन्होंने ये बात कही कि आर्थिक सुधारों के लिए इस प्रक्रिया को धीरे धीरे आगे बढ़ने देना होगा.

Published - October 28, 2021, 02:14 IST

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