वित्त मंत्रालय ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को डिफॉल्ट हो चुके 20 लाख से एक करोड़ रुपए तक के लोन हेयरकट लेकर एकमुश्त समाधान योजना (OTS) के तहत निपटाने के लिए कहा है. ऐसा करने से ऋण वसूली प्राधिकरण पर बोझ कम होगा और बैंकों को फंसा कर्ज (NPA) वसूलने में मदद मिलेगी. हेयरकट का मतलब है कि कर्ज की कुल बकाया राशि का जो हिस्सा मिल जाए, उसे लेकर मामले को निपटाना.
बैंक जिन खातों से तीन सालों तक कोई वसूली नहीं कर पाते है और राशि 20 लाख रुपए से अधिक होती है तो उस मामले को कर्ज वसूली प्राधिकरण (डीआरटी) में डाल दिया जाता है.
समझौते से निपटने वाले इन मामलों में निपटान के लिए कोई एक राशि निश्चित नहीं की गई है. किस मामले में कितनी राशि वसूली जाएगी इस बारे में संबंधित बैंक का बोर्ड फैसला करेगा. ये प्राथमिक सिक्योरिटी के मूल्य, गांरटी देने वाले की नेट वर्थ के आधार पर तय होता है.
1.58 लाख मामले लंबित
वित्त मंत्रालय ने इस साल की शुरुआत में लोकसभा को बताया था कि डीआरटी में फरवरी 2023 तक लंबित मामलों की संख्या 1,58,000 है. तमाम बैंकों और वित्तीय संस्थानों ने वित्त वर्ष 22 के पहले के पांच सालों में 4.43 लाख मामले दर्ज किए थे. इनमें से प्राधिकरण ने 110498 मामले निपटा पाए थे.
क्या है नियम?
सुप्रीम कोर्ट ने बीते साल नवंबर में जनौर अर्बन कॉपरेटिव बैंक के मामले में आदेश दिया था कि हाई कोर्ट दोनों पक्षों के बीच आपसी समझौते पर हुए एकमुश्त समाधान में हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं. साथ ही वे ऋण के पुन: भुगतान के लिए अवधि को भी नहीं बढ़ा सकते हैं. इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि ऋण देने वाला ओटीएस के लिए अपने अधिकार का दावा नहीं कर सकता है.
बता दें अभी देश में 39 ऋण वसूली प्राधिकरण और पांच ऋण वसूली अपीलीय प्राधिकरण हैं. डीआरटी में आमतौर पर कम राशि लेकर मामले को हल नहीं किया जाता है इसलिए यहां कम मामले निपट पाते हैं जबकि राष्ट्रीय कंपनी विधि पंचाट (NCLT) में ऐसा हो जाता है. ऐसे में बैंक अगर आपसी सहमति और एक बार समझौते के आधार पर लोन के मामले निपटा लेते हैं तो बैंकों का बड़ी संख्या में लोन रिकवर हो सकता है.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
सर्टिफ़ाइड फ़ाइनेंशियल एक्सपर्ट जितेंद्र सोलंकी कहते हैं कि लोन निपटाने के लिए एकमुश्त समाधान योजना एक अच्छा विकल्प है लेकिन इसका असर लोन लेने वाले के क्रेडिट स्कोर पर भी होता है. अगली बार अगर कोई व्यक्ति या कंपनी बैंक से लोन जाएंगे तो उन्हें लोन मिलने में दिक्कत आ सकती है. ऐसे लोगों को सिबिल स्कोर खराब हो जाता है. बैंक और वित्तीय संस्थान ऐसे लोगों को राशि डूबने के डर से लोन देने से कतराएंगे.