Closed-Ended Mutual Funds: यदि आप लोंग-टर्म के लिए एकमुश्त निवेश कर सकते हैं और 3 या 5 साल के लॉक-इन पीरियड के साथ निवेश करने में कोई परेशानी नहीं है तो शायद आपके लिए म्यूचुअल फंड की क्लोज-एंडेड स्कीम (close ended mutual fund) अच्छा विकल्प बन सकती है. लॉक-इन-पीरियड से सुनिश्चित हो जाता है कि मार्केट डाउन होने की स्थिति में निवेशक पैनिक में आकर अपने निवेश को बेचने से बचा रहेगा और लंबी अवधि पर अच्छा रिटर्न का लाभ ले सकेगा. क्लोज-एंडेड फंड (close ended mutual fund) के फायदे और नुकसान को समझने के बाद आपको अपनी जरूरत, टार्गेट, उम्र, रिस्क-केपेसिटी जैसे पहलुओं के हिसाब से फैसला लेना चाहिए.
क्लोज-एंडेड फंड क्या हैं?
क्लोज-एंडेड म्यूचुअल फंड (close ended mutual fund) में एक निश्चित समय के लिए निश्चित संख्या में फंड यूनिट प्रदान किए जाते हैं. ये फंड ज्यादातर एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड (ETF) की तरह कार्य करते हैं. फंड हाउस द्वारा पैसे जुटाने के लिए NFO (New Fund offer) के माध्यम से क्लोज-एंडेड म्यूचुअल फंड (close ended mutual fund) प्रस्तुत किए जाते हैं.
NFO के खुले रहने के दौरान आप क्लोज स्कीम (close ended mutual fund) में खरीदारी कर सकते हैं. NFO की अवधि समाप्त होने पर आप नयी यूनिट खरीद या बेच नहीं सकते. इसमें मैच्योरिटी फिक्स होती हैं और अवधि से पहले यूनिट्स को रीडिम करना भी संभव नहीं है.
क्लोज-एंडेड फंड के फायदे (close ended mutual fund)
लिक्विडिटीः आप केवल एक्स्चेंज पर ब्रोकर के माध्यम से मौजूदा बाजार कीमतों पर क्लोज-एंडेड फंड (close ended mutual fund) की यूनिट को खरीद या बेच सकते हैं. आप ट्रेडिंग दिवस के दौरान उपलब्ध रियल-टाइम कीमतों का उपयोग करके सौदा कर सकते हैं.
स्थिर एसेट बेसः क्लोज-एंडेड फंड्स (close ended mutual fund) में केवल मैच्योरिटी के बाद ही रिडीम मुमकिन है, इसलिए फंड मैनेजर को निवेश रणनीति तैयार करने के लिए एक स्थिर एसेट आधार मिलता है. फंड मैनेजर को फंड मैनेज करने में दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ता और इनफ्लो और आउटफ्लो की चिंता किए बिना फंड के उद्देश्यों को समग्र रूप से ध्यान में रखने में आसानी होती है.
ट्रेडिंगः क्लोज-एंडेड फंड (close ended mutual fund) भी ETF और स्टॉक्स के जैसे ही एक्सचेंज पर ट्रेड होते हैं. एक्सचेंज पर ट्रेड होने के कारण इनका मूल्य डिमांड और सप्लाई के आधार पर नियमित रूप से बदलता रहता हैं. एक्सचेंज पर ट्रेड होने के कारण आप इन्हें बिना मैच्योरिटी से पहले भी भी बेच सकते हैं.
लोंग टर्म बेनिफिटः क्लोज एंडेड फंड (close ended mutual fund) में लॉक-इन-पीरियड होने से शॉर्ट टर्म में होने वाली रिस्क से सुरक्षा मिलती हैं. लंबे समय तक निवेशित रहने के कारण रिस्क कम हो जाती हैं और अच्छे रिटर्न मिलने की संभावना बढ़ जाती हैं.
क्लोज-एंडेड फंड के नुकसान
घटिया रिटर्नः ओपन-एंडेड फंड के मुकाबले क्लोज-एंडेड फंड (close ended mutual fund) में पिछले कई वर्षों से अच्छा रिटर्न नहीं मिला है. क्लोज-एंडेड फंड (close ended mutual fund) में मैनेजर को स्थिर एसेट बेस मिलता है, इसके बावजूद भी इन्हें बेहतर रिटर्न हासिल करने में सफलता नहीं मिली है.
एकमुश्त निवेश: इसमें आपको एकमुश्त निवेश करना पडता है, इसलिए छोटे और सैलरीड क्लास के निवेशक इससे दूर रहते है, क्योंकि उन्हें SIP के जरिए निवेश करने में ज्यादा आसानी रहती है. एकमुश्त निवेश में जोखिम बढ़ सकता है.
लॉक-इन-पीरियडः यदि आपने क्लोज-एंडेड फंड (close ended mutual fund) में एकमुश्त निवेश कर दिया है और बाद में यदि फंड की जरूरत पड़ती है तो आप लॉक-इन अवधि से पहले इसे रिडीम नहीं कर सकते. इसलिए आपको एक्सचेंज पर जाकर इन्हें बेचना पड़ता है.
ट्रैक रिकार्ड उपलब्ध नहीः ओपन एंडेड म्यूचुअल फंड का प्रदर्शन चेक करना आसान है, लेकिन क्लोज-एंडेड फंड (close ended mutual fund) का प्रदर्शन ट्रैक नहीं कर सकते क्योंकि इनका हिस्टोरिकल डाटा ही उपलब्ध नहीं होता है.