म्यूचुअल फंड इन्वेस्टमेंट से जुड़े सबसे महत्वपूर्ण प्रश्नों में से एक यह है कि क्या कोई इक्विटी म्यूचुअल फंड की जगह अपने पूरे इन्वेस्टमेंट का चार्ज खुद ले सकता है? इसका उत्तर साफ तौर से हां है लेकिन ऐसा करने का सबसे अच्छा तरीका क्या है? इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स अक्सर इस सवाल के समाधान के रूप में फैक्टर इन्वेस्टिंग (Factors Investing) की ओर इशारा करते हैं. फैक्टर इन्वेस्टिंग (Factors Investing) एक इन्वेस्टमेंट अप्रोच है जिसमें एसेट क्लास में रिटर्न के स्पेसिफिक ड्राइवर्स को टारगेट करना शामिल है. दो खास तरह के फैक्टर हैं जिनमें मैक्रोइकोनॉमिक्स और स्टाइल शामिल हैं.
“फैक्टर्स इन्वेस्टिंग (Factors Investing) से पोर्टफोलियो के परिणामों में सुधार, वोलैटिलिटी को कम करने और डायवर्सिफिकेशन को बढ़ाने में मदद मिल सकती है. प्रॉफिटमार्ट सिक्योरिटीज के रिसर्च डायरेक्टर अविनाश गोरक्षकर ने कहा, ये फैक्टर्स निवेशकों को रिटर्न जनरेट करने, रिस्क कम करने और डायवर्सिफिकेशन में सुधार करने में मदद करने के लिए महत्वपूर्ण हैं.”
फैक्टर्स इन्वेस्टिंग के पीछे आयडिया खास तौर से यह है – आपके इन्वेस्ट यूनिवर्स की सभी कंपनियों को एक पोर्टफोलियो बनाने के लिए एक स्पेसिफिक एट्रीब्यूट के आधार पर रैंक किया जाता है. इन्वेस्टर को हाई रैंकिंग वाले शेयरों में अधिक और कम रैंकिंग वाले शेयरों में कम निवेश करना चाहिए.
फैक्टर एसेट रिटर्न को प्रभावित और ड्राइव दोनों कर सकते हैं. पिछले 50 सालों में, एकेडमिक रिसर्च ने स्टॉक रिटर्न को प्रभावित करने वाले सैकड़ों फैक्टर्स की पहचान की है.
इन फैक्टर्स को जानने और अपने पोर्टफोलियो में इनके इस्तेमाल से निवेशकों को अल्फा जनरेट करने में मदद मिल सकती है. फैक्टर्स के उदाहरण हैं इकोनॉमिक ग्रोथ, इन्फ्लेशन, कॉर्पोरेट की क्रेडिट स्टैंडिंग, इंटरेस्ट रेट में परिवर्तन, यील्ड, आदि.
गोरक्षकर ने समझाया, “इकोनॉमिक ग्रोथ के दौरान, यह अधिक संभावना है कि उपभोक्ता खर्च में वृद्धि के कारण कंपनियां अपने मुनाफे में वृद्धि करेंगी. हालांकि, हमेशा ऐसा नहीं होता है, क्योंकि अर्थव्यवस्था में मंदी के दौरान, कंपनियों को स्टॉक की कीमतों में गिरावट के कारण समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. इस बीच, इन्फ्लेशन स्टॉक की कीमतों को प्रभावित करता है क्योंकि यह मुख्य रूप से लोगों की खर्च करने की क्षमता को प्रभावित करता है. इसलिए जब भी वस्तुओं की कीमतें
अधिक होती हैं, तो उपभोक्ताओं के पैसे खर्च करने की संभावना कम होती है. नतीजतन, यह बिजनेस पर नेगेटिव इम्पैक्ट डालता है.”
कंपनी के क्रेडिट के आधार पर फैक्टर इन्वेस्टिंग में उन शेयरों में निवेश करना शामिल है जो निवेशक को डिफॉल्ट रिस्क वाले स्टॉक रखने की क्षतिपूर्ति करते हैं. विभिन्न प्रकार के बांड डिफॉल्ट रिस्क की अलग-अलग डिग्री के साथ आते हैं, इसलिए निवेशकों को मार्केट रिस्क के एक्सपोजर के साथ स्पेसिफिक बांड चुनना चाहिए.
बढ़े हुए इंटरेस्ट रेट ने बिजनेस और इंडिविजुअल को पैसे उधार लेने या बैंक से लोन लेने से रोक दिया है. इस वजह से, उपभोक्ता खर्च भी प्रभावित होता है और आर्थिक गतिविधि भी प्रभावित होती है. यील्ड भी एक महत्वपूर्ण फैक्टर है जो हाई डिविडेंड यील्ड वाले शेयरों के एक्सेस रिटर्न को कैप्चर करता है.
गोरक्षकर ने बताया, “इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स और एक्टिव मैनेजर्स दशकों से पोर्टफोलियो को मैनेज करने के लिए फैक्टर्स का इस्तेमाल कर रहे हैं. आज, डेटा और टेक्नोलॉजी ने सभी निवेशकों को रिटर्न के इन हिस्टोरिकल ड्राइवर्स तक पहुंच प्रदान करने के लिए फैक्टर इन्वेस्टिंग को लोकतांत्रिक बना दिया है. पोर्टफोलियो एक्सपोजर के रिस्क को कम करना सबसे अच्छा एडवानटेज हो सकता है जो कि फैक्टर इन्वेस्टिंग के जरिए मिलता है. यह खास तौर से प्रोवाइड किए गए डायवर्सिफिकेशन के
बेनिफिट से संबंधित है”
स्टाइल और मैक्रोइकोनॉमिक्स फैक्टर इकोनॉमिक साइकिल में विभिन्न स्थितियों को कवर करते हैं, और वो डायवर्सीफिकेश की क्वालिटी इम्प्रूव करते हैं. बैलेंस्ड स्ट्रेटजी की वजह से फैक्टर इन्वेस्टिंग हाई प्रॉफिट और रिटर्न से लिंक्ड है.
फैक्टर परफॉर्मेंस ट्रेंड साइक्लिकल (चक्रीय) होता है, लेकिन ज्यादातर फैक्टर रिटर्न आम तौर पर एक दूसरे के साथ ज्यादा कोरिलेटेड नहीं होते हैं, इसलिए इन्वेस्टर्स मल्टीपल फैक्टर एक्सपोजर के कॉम्बिनेशन से डायवर्सिफिकेशन का बेनिफिट उठा सकते हैं. फैक्टर-बेस्ड स्ट्रेटजी इन्वेस्टर्स को कुछ इन्वेस्टमेंट ऑब्जेक्टिव को पूरा करने में मदद कर सकती हैं जैसे कि संभावित रूप से रिटर्न में सुधार या लंबी अवधि में रिस्क को कम करना.
गोरक्षकर ने कहा, “फैक्टर-बेस्ड इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटजी सिस्टमैटिक एनालिसिस, सिलेक्शन, भार और पोर्टफोलियो के रीबैलेंसिंग पर आधारित होती है, कुछ विशेषताओं वाले शेयरों के पक्ष में जो समय के साथ रिस्क-एडजस्टेड रिटर्न को बढ़ाने के लिए जाने जाते हैं. आमतौर पर, इन्वेस्टर क्वांटिटेटिव, एक्टिव रूप से मैनेज्ड फंड या कस्टम इंडेक्स को ट्रैक करने के लिए डिजाइन किए गए रूल-बेस्ड ETF का इस्तेमाल करते हैं.”
फैक्टर-बेस्ड इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटजी आकर्षक विकल्प हो सकती हैं क्योंकि ये इन्वेस्टर्स को फैक्टर एक्सपोजर के लिए टारगेटेड और स्ट्रीमलाइन एक्सेस देती हैं. फैक्टर अप्रोच ने लोकप्रियता हासिल की है क्योंकि वैल्यू, क्वालिटी, साइज, मूमेंटम या वोलैटिलिटी फैक्टर का इस्तेमाल करके इनडेक्स ने लंबी अवधि में बेहतर प्रदर्शन किया है.
फैक्टर इन्वेस्टिंग का नजरिया भारत में अपेक्षाकृत नया है, लेकिन म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री में अपनी जगह बना रहा है. ये इंस्टीट्यूशनल और रिटेल इन्वेस्टर्स दोनों के लिए उपयोगी है. यहां, फैक्टर फंड के फंड मैनेजर, फैक्टर-बेस्ड निफ्टी इंडेक्स को पैसिवली ट्रैक करते हैं जो एक्टिवली मैनेज होते हैं.
निफ्टी वैल्यू 20 इंडेक्स, निफ्टी क्वालिटी लो-वोलैटिलिटी 30, निफ्टी 100 लो वोलैटिलिटी 30, निफ्टी 200 मोमेंटम 30 और निफ्टी अल्फा लो-वोलैटिलिटी 30 कुछ व्यापक रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले फैक्टर इंडेक्स हैं. ऊपर के पांच फैक्टर्स के कॉम्बिनेशन का इस्तेमाल करके, शेयर सिलेक्ट किए जाते हैं.
गोरक्षकर ने कहा, “ग्रोथ, क्वालिटी, वैल्यू और मोमेंटम जैसे सभी फैक्टर्स ने साबित कर दिया है कि भारत में फैक्टर प्रीमियम मौजूद है. पूर्वानुमान के साथ फंडामेंटल रिसर्च को बेहतर परिणाम देने के लिए क्वानटेटिव फैक्टर्स के साथ मिलाया जाना चाहिए. इस तरह, एक क्वानटेटिव अप्रोच (क्वानटेटिव + फंडामेंटल) को समय के साथ बेहतर प्रदर्शन करना चाहिए. ” इसलिए, यदि आप अपना खुद का पोर्टफोलियो बनाना चाहते हैं और एक स्मार्ट स्ट्रेटजी की तलाश में हैं तो यह एक अच्छा विकल्प है.